Raipur. रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय आज शाम 6 बजे ग्रास मेमोरियल मैदान पहुंचे है। जहां उनके द्वारा नुआखाई शोभायात्रा कार्यक्रम में शामिल हुए।
नुआखाई की शोभायात्रा रायपुर में पहली बार निकली. जिसमें भारी संख्या में लोग शामिल हुए। तेलीबांधा से अंबेडकर चौक तक नुआखाई की शोभायात्रा निकाली गई. ऐसा माना जाता है कि नुआखाई उत्सव सबसे पहले वैदिक काल में शुरू हुआ था जब ऋषियों ने पंचयज्ञ पर विचार-विमर्श किया था.पंचयज्ञ का एक हिस्सा प्रलम्बन यज्ञ था जिसमें नई फसलों की कटाई और उन्हें देवी माँ को अर्पित करने का उत्सव मनाया जाता था तबसे नुआखाई मनाने की परंपरा चली आ रही है.लोग आज अपने घरों में नए फसल का स्वागत करते हैं और नए फसल से पकवान बनाकर पूजा पाठ करते है.पकवान में मुख्यताः अरसा बनाते है इसे भाजा भी कहते है जिसे चावल के आटे से बनाया जाता है.
नवाखाई दो शब्दों नवा + खाई से मिलकर बना है जिसका अर्थ है नया खाना. नवाखाई मुख्यतः किसानों का त्योहार है, जिसे नए फसल के स्वागत के लिए मनाया जाता है. नुआखाई गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाने वाला यह त्योहार पश्चिमी ओडिशा का सबसे शुभ और महत्वपूर्ण सामाजिक त्योहार है.बता दें कि नुआखाई का इतिहास उड़ीसा से जुड़ा हुआ है या यूं कहें कि नुवाखाई की शुरुवात उड़ीसा से हुई है तो ये गंवारा न होगा .कुछ इतिहासकार जनश्रुतियों का उल्लेख करते हुए पश्चिम ओड़िशा में नुआखाई की परम्परा शुरू करने का श्रेय बारहवीं शताब्दी में हुए चौहान वंश के प्रथम राजा रमईदेव को देते है. वह तत्कालीन पटना (वर्तमान पाटनागढ़) के राजा थे. पाटनागढ़ वर्तमान में बलांगीर जिले में है. कुछ जानकारों का कहना है कि पहले बलांगीर को ही पाटनागढ़ कहा जाता था.रमईदेव ने लोगों के जीवन में स्थायित्व लाने के लिए उन्हें स्थायी खेती के लिए प्रोत्साहित करने की सोची और इसके लिए धार्मिक विधि-विधान के साथ नुआखाई पर्व मनाने की शुरुआत की. कालान्तर में यह पश्चिम ओड़िशा के लोकजीवन का एक प्रमुख पर्व बन गया.