राज्यपाल हरिचंदन को मुख्यमंत्री बघेल ने दी शुभकामनाएं

Update: 2023-02-23 06:58 GMT

रायपुर। राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन के छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के रूप में शपथ ग्रहण उपरांत प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पुष्पगुच्छ भेंटकर अभिवादन किया और शुभकामनाएं दी। बता दें कि आज विश्वभूषण हरिचंदन ने आज राजभवन के दरबार हॉल में आयोजित गरिमामय समारोह में छत्तीसगढ़ के नौवें राज्यपाल के रूप में अपने पद की शपथ ली। उच्च न्यायालय, बिलासपुर के मुख्य न्यायधिपति न्यायमूर्ति अरूप कुमार गोस्वामी ने उन्हें शपथ दिलाई। इस अवसर पर प्रथम महिला सुप्रभा हरिचंदन भी उपस्थित रहीं।

राजनीतिक कैरियर

वर्ष 1977 में कैबिनेट मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, आवश्यक वस्तुएं, जिनकी आपातकाल के दौरान कमी पाई गयी थी। उन्होनें आवश्यक वस्तुआंे को न केवल स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया बल्कि मूल्य-रेखा को लगातार बनाए रखा। कालाबाजारी करने वालों और जमाखोरों के खिलाफ उनकी कड़ी कार्रवाई जिसने उन्हें ओडिशा में बहुत लोकप्रिय बना दिया।

ओडिशा में राजस्व मंत्री के रूप में, उन्होंने प्रशासन की सुविधा के लिए भूमि अभिलेखों के कम्प्यूटरीकरण, सरलीकरण और राजस्व कानूनों को संहिताबद्ध करने पर जोर दिया और 1956 के विनियम 2 में संशोधन करके और इसे और अधिक कठोर बनाकर अवैध रूप से और धोखाधड़ी से हस्तांतरित की गई आदिवासी भूमि की बहाली के लिए साहसिक कदम उठाए तथा राजस्व प्रशासन को और अधिक जनहितैषी बनाकर पुनर्गठित किया। ओडिशा में उद्योग मंत्री के रूप में उन्होंने सिंगल विंडो सिस्टम शुरू करने की पहल की और उद्योग सुविधा अधिनियम पारित करवाया। उनके गहन प्रयासों के कारण ही राज्य की ‘आरआर’ (पुर्नवास एवं प्रतिस्थापन) नीति, उस समय देश की सर्वश्रेष्ठ आरआर नीति बनी थी।  हरिचंदन ने कैबिनेट उप समिति के अध्यक्ष के रूप में इस नीति को अमलीजामा पहनाया, जिससे विस्थापितों के पुनर्वास के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया।

राज्य सरकार के ऋणों की अदायगी के लिए सभी अधिशेष सरकारी भूमि की बिक्री के खिलाफ उन्होंने कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि जमीन की मालिक सरकार नहीं बल्कि राज्य होता है तथा सरकार के पास सिर्फ ट्रस्टी जैसी सीमित शक्तियां होती हैं। उन्होंने अधिशेष सरकारी भूमि की बिक्री का जोरदार विरोध किया जिस कारण राज्य मंत्रिमंडल को अपना निर्णय बदलना पड़ा। ब्रिटिश शासन के खिलाफ बख्शी जगबंधु के नेतृत्व में उड़िया लोगों द्वारा स्वतंत्रता के लिए ऐतिहासिक युद्ध 1817 के पाइक विद्रोह को राष्ट्रीय मान्यता दिलाने के लिए उन्होंने 1978 वर्ष से निरंतर प्रयासरत रहे। परिणाम स्वरूप माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने राष्ट्रीय स्तर पर इसके द्विशताब्दी समारोह आयोजित करने के निर्देश दिये।

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