छत्तीसगढ़: महिला चलाती है चलता-फिरता किराने की दुकान...समूह से जुड़कर खरीदी छोटा हाथी
गरियाबंद के आसपास के गांव और बाजारों में यदि छोटा हाथी में चलता-फिरता दुकान दिखे और उसका संचालन कोई महिला कर रही हो तो चाैंकिये मत। ये मालगांव की हीरा निषाद हो सकती है। दरअसल जिला मुख्यालय गरियाबंद से लगे हुए ग्राम पंचायत मालगांव की श्रीमती हीरा निषाद आजकल छोटा हाथी (चार पहिया वाहन) से किराना सामान की बिक्री कर रही है। वे छोटा हाथी में चलता फिरता दुकान का संचालन कर रही है। बिहान के माताकृपा समूह के माध्यम से एक वर्ष पहले दो लाख रूपये का बैंक से ऋण लेकर छोटा हाथी की गाड़ी खरीदी। समूह के सहयोग से अब वे स्वयं बाजार में घुम-घुमकर किराना व् अन्य सामानों की बिक्री कर रही है।
बिहान से जुड़कर स्वावलंबन की राह पर चलने वाली हीरा निषाद योजना के अंतर्गत अपनी आजीविका के लिए समूह के माध्यम से वर्ष 2016-17 में पहली बार ऋण लेकर किराना दुकान खोली तथा आस-पास के लोगों को उचित मूल्य पर सही सामान उपलब्ध कराने लोगो को सहुलियत दी। उसके पश्चात पूर्व में लिए गए ऋण को चुकाकर बैंक से 1.50 लाख रूपये लोन लेकर स्वयं की दोना पत्तल मशीन खरीदकर दोना पत्तल के व्यवसाय से परिवार के सदस्यों को भी रोजगार उपलब्ध करा कर घर परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूती दी। इसके अलावा मुर्गी पालन, बकरी पालन, बतख पालन, कबूतर पालन और ग्रामीण स्तर पर वनोपज संग्रहण का कार्य कर अपनी आजीविका गतिविधि को और सुदृढ़ की। तब समूह के सुझाव अनुसार पुराने सभी ऋण को चुकाकर वर्ष 2018-19 में दो लाख रूपये का बैंक से ऋण लेकर छोटा हाथी टाटा की गाड़ी खरीदी। इससे समूह में महिलाओं का आत्माविश्वास बढ़ा और व्यवसाय रफ्तार पकड़ने लगी। हीरा के लगन को देखकर घर वाले भी अब उनका पूरा सहयोग करते है। अब ऑटोमैटिक अगरबत्ती मेकिंग मशीन भी खरीद ली है। जनपद पंचायत गरियाबंद की सीईओ श्रीमती शीतल बंसल ने बताया कि हीरा को बिहान योजना के अंतर्गत उत्कृष्ट योगदान के लिए वर्ष 2019 में 26 जनवरी को जिला कलेक्टर द्वारा बेस्ट महिला कैडर के रूप मे सम्मानित भी किया जा चुका है। इसका असर हुआ कि हीरा से प्रेरणा लेकर समूह के सभी दीदी अपना-अपना छोटा आजीविका शुरू कर स्वालम्बी बन रही है। समूह के सदस्य वनोपज के रूप में महुआ खरीदी का तथा शहद की बिक्री का कार्य भी करती है। इस वर्ष दीवाली में इनके समूह के माध्यम से गोबर के दीये और स्वास्तिक प्रतीक बनाकर विक्रय किया गया। जिससे आर्थिक लाभ भी हुआ और लोगों द्वारा सराहा भी गया।