दुर्ग। अक्सर सुना जाता है कि प्यार कभी मरता नहीं बल्कि प्यार करने वाले इस दुनिया से जुदा हो जाते हैं और पीछे छोड़ जाते हैं अपने प्यार की निशानियां जो सदियों तक जिंदा रहती है. जैसे शाहजहां ने अपने प्यार को साबित करने के लिए मुमताज के लिए ताज महल बनया था और उस देखने के लिए देश विदेशों के लोग आते है. एक ऐसे प्यार की निशानी दुर्ग जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलो मीटर दूर कडरका गांव में बना एक तालाब है. ये तालाब लगभग 400 सालों से वहां पर मौजूद है. आइये आपको बताते है इस प्यार की कहानी ......
दरअसल 400 साल पहले इस गांव में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था. उनकी शादी शुदा जिंदगी बहुत ही सुखमय तरीके गुजर रही थी. उसी गांव के बीचोबीच एक तालाब था. एक दिन साहूकार किसी काम से गांव के बाहर गया हुआ था और उसकी पत्नी अपनी दिन चरिया का काम काज करके उस तालाब में नहाने गई हुई थी. जैसे ही उसने अपने बालो को धोने के लिए बालो पर मिटटी तभी एक व्यक्ति तालाब के रास्ते से जा रहा थे उसे आता देखकर साहूकार की पत्नी ने शर्म से अपना सिर ढक लिया।
इसके बाद उस उस व्यक्ति ने साहूकार की पत्नी को कहा कि, इतनी ही लोक लज्जा का डर है तो क्यों ना खुद का तालाब बनाकर उसी में नहाने चले जाती. बस यही बात साहूकार की पत्नी को चूब गई और वो उसी हालात में अपने घर चली गई और घर के कोप भवन में जा कर बैठ गई. जब रात को साहूकार घर आया तो घर में अन्धेरा देखकर परेशान हो गया और अपनी पत्नी को खोजने लगा बहुत देर बाद जब पत्नी गुस्से की हालत में कोप भवन में बैठे देखा तो उसने इसका कारण पूछा तो पत्नी गुस्से से तलाब पर हुई पूरी घटना को बताई और पत्नी ने कहा की अब मैं अपने बाल धोऊंगी तो सिर्फ अपने खुद के तलाब में नहीं तो मैं जिंदगी भर इसी हालत में रहूंगी.
पत्नी की बाते सुनकर पति बहुत परेशान हो गया चूंकि साहूकार अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था. तो अपनी पत्नी को खुश करने की लिए इस समस्या का समाधान सोचने लगा. उन दिनों उस इलाके में कही भी पानी नहीं था सिर्फ एक ही तालाब था जो गांव के बीच में था. फिर अगले दिन सुबह साहूकार की एक भैंस जो 18 दिनों से लापता थी उसे घर आता देखा साहूकार ने भैंस को घर में बांध रहा था की तभी उसकी निगाहे भैंस के सिंग और पैर पड़ी उसने देखा की उसके सिंग और पैर पर कीचड़ और हरे घांस लगे हुए थे.
भैंस को देखकर साहूकार को अंदाजा हो गया की इस इलाके में कही ना कही पानी है फिर क्या साहूकार भैंस जिस ओर से आया था उसी दिशा में पानी का स्रोत ढूंढने के लिए निकाल पड़ा और लगभग गांव के बाहर 1 किलोमीटर की दूरी पर उसे वो जगह मिल गई, जहां पर पानी था साहूकार ने तत्काल पूजा पाठ करके वहा तालाब खुदवा दी और जब तालाब पूरी तरह से तैयार हो गया तब वो अपनी पत्नी को तालाब ले जाकर बाल धोने को कहा और फिर उसकी पत्नी अपने मिट्टी लगे बालो को धोया व नहाई.
वहीं गांव में रहने वाले रघुनन्दन सिंह राजपूत ने बताया कि अब गांव के लोग उस तलाब को गंगा मां के रूप में देखते है. गांव के लोगों का कहना है की ये तालाब कई सालों से कभी नहीं सूखा है लोग बताते है की इस तालाब का पानी इतना साफ़ था की आसपास के कई गांव के लोग इस तालाब का पाने पीने के लिए ले जाया करते थे. वहीं अब गांव वाले सरकार से गुहार लगा रहे है की इस ऐतिहासिक तालाब का कुछ कायाकलप करें.