छत्तीसगढ़ वन विभाग: बाघ की गणना में फेल
अभ्यारण्य से नदारद होकर कागजों में कैद हो गए 'शेर'
ज़ाकिर घुरसेना
रायपुर। उदंती सीतानदी अभ्यारण्य में बाघ होने की खबर यदा कदा आते रहती है। पिछले कई बरसों से वन विभाग भी जानवरों की गिनती के आड़ में बाघ के नकली पग चिन्हों को दिखाता चला आ रहा है जिसकी वास्तविक पुष्टि करने वाला कोई भी नहीं है। वन्य जीवों की गणना हेतु लगाए गए ट्रेकिंग कैमरो में बाघ के कैद होने की अफवाहें भी फैला दी गई लेकिन धरातल पर बाघ तो क्या एक खरगोश का दिखाई देना भी अब इस इलाके में मुश्किल हो गया है। बरसों से उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के नाम पर जिप्सी में घूमते अधिकारी केवल टाइगर रिजर्व के नाम पर मिलने वाली सरकारी सुविधाओं का आनंद ले रहे है वास्तविक धरातल पर उपलब्धि नगण्य ही है सिवाए कागजी आकड़ों के। बाघ का होना भी कागजी शेर है। 247 वर्ग कि.मी में फैले पडोसी राज्य उड़ीसा से जुड़े इस नक्सल प्रभावित बेहद खूबसूरत अभ्यारण्य में देखने के लिए सिर्फ रेस्क्यू सेंटर में लुप्तप्राय वन भैसें ही बचे हैं। पर्यटन विभाग द्वारा दो स्थानों जुंगाड़ व कोयबा में करोड़ों रुपए लगाकर रिसोर्ट का निर्माण कराया गया था। जिसका उद्घाटन होने के पहले ही खंडहर में तब्दील हो गया। वन विभाग एवं पर्यटन विभाग में तालमेल की कमी या अधिकारियों की हठधर्मिता कहें बेहद खूबसूरत अभ्यारण्य में पर्यटकों की संख्या भी नगण्य है जिस प्रकार खूबसूरती लिए अभ्यारण्य है उस हिसाब से पर्यटक आ नहीं रहे हैं। उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में राजकीय पशु जुगाड़ू और श्यामू नामक वनभैंसा की मौत भी हो चुकी है। इन वन भैसों पर कॉलर आईडी लगाने के बावजूद भी वन विभाग नजऱ नहीं रख पा रहा था। प्रदेश के तेज़ तर्रार और स्वच्छ छवि के माने जाने वाले मो. अकबर के पास वन विभाग है लेकिन वन विभाग के अधिकारी उनके अनुभवों को लाभ उठा नहीं पा रहे है। विगत दिनों एक हाथी शावक की मौत उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के आमामोरा क्षेत्र में हुई। वन विभाग हाथी की मौत को बाघ के द्वारा हमला किया जाना साबित करने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाए हुए हैं जबकि ग्रामीणों ने इसे झूठा मनगणंत कहानी बताया। वन विभाग ने बाघ का पग चिन्ह भी दिखाया लेकिन अब प्रश्न उठता है कि अगर बाघ है तो जायेगा कहां, होगा तो आस-पास ही, इस पर वन विभाग के अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं। स्थानीय ग्रामीणों ने भी कभी बाघ दिखने की पुष्टि नहीं की है। इस संबंध में उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व को लेकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने वर्ष 2018 में जो रिपोर्ट जारी की है उसमें चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं उनके मुताबिक उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व से लगभग 32 गांव लगे हुए हैं अधिकांश गांव बाहर जाना चाहते है लेकिन वन विभाग की उदासीनता पूर्वक रवैया इसमें रोड़े अटका रहा है। कमोबेश यही स्थिति बारनवापारा अभ्यारण्य में है यहां भी काळा हिरण छोडऩे की तैयारी है वन ग्रामों को अभ्यारण्य से हटाया नहीं गया है। ऐसे में वन्य जीवों का संरक्षण और संवर्धन की बात बेमानी है। सबसे पहले वन विभाग को इन वन्य ग्रामों को अन्यत्र बसाना होगा ताकि वन्य जीवों का अवैध शिकार रुक सके। बारनवापारा हो या उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व या कोई भी अभ्यारण्य जब तक वन ग्रामों को शिफ्ट नहीं किया जाएगा तब तक अवैध शिकार रोका नहीं जा सकेगा। क्योंकि वन ग्राम के लोग उस एरिया के चप्पे-चप्पे से वाकिफ होते हैं और मौका देखते ही आसानी से शिकार कर लेते हैं।
वन्य जीवों की गणना हेतु लगाए गए ट्रेकिंग कैमरों में बाघ दिखने की अफवाह तो फैला दी गई लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है वहां बाघ तो क्या खरगोश भी दिखाई नहीं देता। पर्यटन विभाग द्वारा दो स्थानों जुंगाड़ व कोयबा में करोड़ों रुपए लगाकर रिसोर्ट का निर्माण कराया गया था। जिसका उद्घाटन होने के पहले ही खंडहर में तब्दील हो गया. -मो. फिऱोज़, वन्य जीव प्रेमी एवं समाजसेवी