मनेन्द्रगढ़। आमाखेरवा में संचालित नेत्रहीन विद्यालय में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के तीन दर्जन से ज्यादा नेत्रहीन बच्चे घर से, माता-पिता से दूर रह कर पढ़ाई करते हैं. यहां काम करने वाली गीता इन बच्चों को कभी एहसास ही नहीं होने देती की वे अपनी मां से दूर हैं.
बीते 15 सालों से नेत्रहीन विद्यालय में काम करने वाली 53 वर्षीय गीता जगत मां का दर्जा प्राप्त कर नेत्रहीन बच्चों की ज्योति बनकर पालन कर रही है. नेत्रहीन विद्यालय में अध्ययनरत बच्चे भी गीता को ‘गीता मां’ कह कर पुकारते हैं. गीता को भी इन बच्चों की सेवा करने किसी पुण्य से कम नहीं लगता. गीता कहती है कि मैं इनको नेत्रहीन बच्चे समझती ही नहीं हूं. मैं अपने बच्चे जैसा मानकर इन बच्चों की सेवा करती हूं.
गीता रजक खुद तीन बच्चों की माँ है. एक बेटे की मौत बीमारी से हो गई. दो बच्चे अब है. एक बेटी और बेटा. 10 साल पहले पति की बीमारी से मौत के बाद गीता हार नहीं मानी और बच्चों को बड़ा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया. गीता के बेटे और बेटी की शादी हो चुकी है, और अब ज्यादातर समय गीता रजक नेत्रहीन विद्यालय में ही गुजारती है. गीता रजक बताती है कि उसके दो बच्चे हैं, एक बेटी और एक बेटा. जैसे मैं अपने बच्चों को पालती थी, वैसे इन बच्चों को पालती हूं.