रायपुर। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के बाल रोग विभाग के अंतर्गत संचालित अति गंभीर कुपोषण प्रबंधन के लिए राज्य उत्कृष्टता केंद्र ने ब्लॉक स्तर तक समन्वयक नियुक्त कर दिए हैं। यह सभी अति कुपोषित बच्चों की पहचान कर उन्हें एम्स संदर्भित करेंगे। इसके लिए एम्स द्वारा सतत जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। दो चरणों में दिए गए प्रशिक्षण में अब तक 100 से अधिक चिकित्सकों और काउंसलर्स को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल कुमार गोयल ने बताया कि राज्य के बच्चों में अति कुपोषण की रोकथाम के लिए राज्यस्तर, जिला स्तर और ब्लॉक स्तर पर समन्वयक नियुक्त किए गए हैं। इनमें स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सक, महिला एवं बाल विकास विभाग के कर्मचारी, आंगनबाड़ी कार्यकत्री और आशा कार्यकत्री शामिल हैं। इन्हें कुपोषित बच्चों और उनकी मां की पहचान कर तुरंत इसकी जानकारी संबंधित अस्पताल या एम्स को देने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।
निदेशक प्रो. (डॉ.) नितिन एम. नागरकर ने बताया कि प्रदेश के दूरस्थ जिलों में अभी भी कुपोषण की दर अधिक है। इस दिशा में एम्स का उत्कृष्टता केंद्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने इस दिशा केंद्र द्वारा दिए जा रहे प्रशिक्षण की प्रशंसा की और अति कुपोषण को पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिए सभी से मिलकर संयुक्त प्रयास करने का आह्वान किया।
पांच से सात जून को आयोजित पहले चरण में 30 जिलों के 50 शिशु रोग विशेषज्ञों को इस संबंध में प्रशिक्षण प्रदान किया गया। 12 जून से प्रारंभ दूसरे चरण में 50 से अधिक काउंसलर्स को प्रशिक्षण प्रदान किया गया। उत्कृष्टता केंद्र के माध्यम से यह सभी समन्वयक समय पूर्व जन्मे बच्चों की पहचान, नवजात बच्चों के विकास की निगरानी और कुपोषित माताओं की जानकारी एकत्रित कर उन्हें उपचार प्रदान करेंगे।
कार्यक्रम में यूनिसेफ के पोषण अधिकारी डॉ. महेंद्र प्रजापति ने प्रदेश में बच्चों को स्तनपान संबंधी जानकारी प्रदान की। महाराष्ट्र की विशेषज्ञ डॉ. स्वाति, डॉ. सुचिता, डॉ. सरिता और डॉ. मंजू ने प्रसव के तुरंत पश्चात स्तनपान, शिशु के जन्म के छह माह बाद तक सिर्फ स्तनपान की महत्वता, पूरक पोषण आहार, सतत स्तनपान और स्कूलों में आयरन फोलिक एसिड वितरण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।