पटना के युवाओं को लग रही ब्राउन शुगर की लत

नशीले पदार्थों की लत युवाओं और किशोरों की जान ले रही

Update: 2024-05-08 03:53 GMT

पटना: जिले की युवा शक्ति नशे की दलदल में डूबती जा रही है. यह नशा शराब, सिगरेट या गुटखा का नहीं है. ब्राउन शुगर, चरस, गांजा और नशे की इंजेक्शन से नई पीढ़ी बर्बाद हो रही है. नशीले पदार्थों की लत युवाओं और किशोरों की जान ले रही है. वर्ष 20 में अभी तक ऐसे पांच मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें नशे के कारण मौत होने का अंदेशा है. वास्तविक संख्या इससे कई गुणा अधिक हो सकती है. शहरी इलाकों में ब्राउन शुगर की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है. को भी बिहार थाना क्षेत्र में ब्राउन शुगर के साथ युवकों को पकड़ा गया है. नशे के लिए इंजेक्शन लेने का चलन और भी अधिक जानलेवा बनता जा रहा है. युवाओं की मानसिक स्थिति बिगड़ती जा रही है. कई आत्महत्या या इसका प्रयास कर चुके हैं. दर्जनों युवाओं का इलाज अस्पताल में चल रहा है. परिजन बदनामी के डर से इस बात को छिपाते हैं. आज से दो-तीन साल पहले जिले में ब्राउन शुगर का नाम इक्का-दुक्का लोग ही जानते थे. अब तो गली-गली में मिलता है. इसके अलावा, बॉनफिक्स, बोंग जैसे रसायनों को सूंघकर नशा करते हैं. अब इंजेक्शन लेने का मामला बढ़ गया है. जानकारों की मानें तो एविल जैसी इंजेक्शन का प्रयोग नशे के लिए करते हैं. जो अधिक आदी हो जाते हैं, वे ब्राउन शुगर व इंजेक्शन को मिक्स कर नशे का सेवन करते हैं.

ब्राउन शुगर की एक पुड़िया आमतौर पर 300 से 500 रुपये में मिलती है. लड़कों के लिए इतने रुपये की व्यवस्था करना आसान नहीं है.

इस वजह से अपराध का रास्ता अपना रहे हैं. चोरी, छीनतई, बाइक चोरी, सड़क लूट जैसी घटनाओं में अधिकतर 15 से 20 साल के लड़के पकड़े जा रहे हैं. इनमें से 80 फीसद नशे के गुलाम होते हैं. यह सिर्फ बिहारशरीफ, राजगीर, हरनौत, करायपरसुराय या हिलसा की बात नहीं है. ग्रामीण इलाकों में भी लड़के आपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं.

हर वर्ग के युवा बन रहे शिकार: ऐसा नहीं है कि नशे के शिकार सिर्फ गरीब तबके के किशोर या युवा हैं. अच्छे घरों के लड़के भी इस दलदल में गिर रहे हैं. स्कूली छात्र भी इसकी चपेट में आ रहे हैं. जिले के सभी प्रखंडों, शहरों और गांवों में इस तरह के लड़कों का झुंड आपको दिख जाएगा. कई लड़के नशे की लत को पूरा करने के लिए इसे बेचने के काम में लग जाते हैं. शुरुआत में तस्कर फ्री में नशा कराते हैं. बाद में आदी हो जाने पर उनसे मनमाना रुपया वसूलते हैं.

लोगों को दिख रहा है, प्रशासन को नहीं: आमलोगों को तो यह दुर्दशा नजर आ रही है, पुलिस-प्रशासन को नहीं. आसानी से किशोरों को पुड़िया मिल रही है. दुकानों मे दवाइयां व इंजेक्शन भी मिल रही हैं. नशे के छोटे-मोटे धंधेबाजों को पकड़कर पुलिस खुश हो जाती है. गिरोह की तह तक जाने का प्रयास नहीं करती. पुलिसिया कार्रवाई में यह बात कई बार सामने आयी है कि इस धंधे का कनेक्शन आरा से है. कई धंधेबाजों ने स्वीकार किया है कि आरा से माल लाकर यहां सप्लाई करते हैं. इसके बाद भी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई.

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