बेकार समझा जाने यह वाला पौधा चर्म रोगों के इलाज में हो सकता है रामबाण, शोध को मिली मंजूरी

चर्म रोगों के इलाज में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के तहत ‘चिड़चिड़ी’ का पौधा रामबाण साबित हो सकता है।

Update: 2022-03-17 05:29 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चर्म रोगों के इलाज में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के तहत 'चिड़चिड़ी' का पौधा रामबाण साबित हो सकता है। राजकीय आयुर्वेद कॉलेज एवं अस्पताल, पटना में फंगल इन्फेक्शन में चिड़चिड़ी के पौधे के असर को लेकर शोध करने की तैयारी शुरू की गयी है। चिड़चिड़ी को आयुर्वेद में अपामार्ग कहा जाता है और इस पौधे के बहुत से गुणों का वर्णन प्राचीन आयुर्वेद के ग्रंथों में है। इस पौधे के माध्यम से आधुनिक रोगों के निदान को लेकर शोध अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगा।

राजकीय आयुर्वेद कॉलेज अस्पताल, पटना के प्राचार्य डॉ. एसएन पांडेय बताते हैं कि 'चिड़चिड़ी' के विविध तरीके से उपयोग से चर्म रोग से निदान पाया जा सकता है। इसे क्वाथ (पानी में उबाल कर) के रूप में अर्क निकाल कर पीने से खून साफ होता है, चर्म रोग दूर होते हैं।
फंगल इन्फेक्शन क्या होता है
फंगल इन्फेक्शन प्रमुख रूप से त्वचा से संबंधित है। मनुष्यों में, फंगल इन्फेक्शन तब होता है जब फंगस शरीर पर सीधे आक्रमण करते हैं। अगर व्यक्ति का इम्यून सिस्टम मजबूत नहीं होता है तो उसका इन्फेक्शन से बच पाना मुश्किल होता है। यह ऐसा इन्फेक्शन है जो शरीर पर कई प्रकार के फंफूद या कवक के कारण होता है। फंफूद मृत केराटिन में पनपता है और धीरे धीरे शरीर के ऐसे स्थानों में फैल जाता है जहां थोड़ी नमी होती है जैसे कि पैर की उँगलियों के बीच, एड़ी, नाखून, जननांग, स्तन इत्यादि।
फंगल इन्फेक्शन के कारण
शारीरिक रसायन और जीवन शैली फंगल इन्फेक्शन के जोखिम को बढ़ाती है। जैसे, यदि कोई धावक (एथलीट) है या यदि किसी को बहुत पसीना आता है तो उसे एथलीट फुट नामक फंगल इन्फेक्शन हो सकता हैं। फंगस अक्सर गर्म और नमी वाले वातावरण में बढ़ते हैं। पसीने से तर या गीले कपड़े पहनना भी त्वचा में इन्फेक्शन हो सकता है। त्वचा के कटने या फटने से भी बैक्टीरिया त्वचा की गहरी परतों में अंदर तक जा सकते हैं और विभिन्न प्रकार के इन्फेक्शन हो सकते हैं।
फंगल इंफेक्शन में चिड़चिड़ी के पौधे के असर पर शोध होगा। इसके गुणों का वर्णन प्राचीन आयुर्वेद के ग्रंथों में भी है। इस औषधीय पौधे को आयुर्वेद में अपामार्ग भी कहा जाता है।
अनुसंधान इकाई की प्राधिकृत समिति के गठन को सरकार ने दी मंजूरी
राज्य सरकार ने बहुत प्रयास करने के बाद अनुसंधान इकाई के लिए प्राधिकृत समिति का गठन कर उसका अनुमोदन कर दिया है। अनुमोदन प्राप्त करने के बाद प्राधिकृत समिति एवं कॉलेज के सभी विभागाध्यक्षों की बैठक सात फरवरी को हुई। बैठक में अनुसंधान पदाधिकारी डॉ. ठाकुर को इस दिशा में गतिविधि को आगे बढ़ाने की अनुमति दी गयी। क्लीनिकल अनुसंधान में आयुर्वेदिक दवा के असर का अध्ययन किया जाएगा। चर्मरोगों में सेरेसिस अर्थात विचर्चिका पर भी अनुसंधान को लेकर पहल की जाएगी। फंगल इंफेक्शन की सभी पैथी में कोई मान्य दवा नहीं है। ऐसे में, 'चिड़चिड़ी' के पौधे से इन्फेक्शन को दूर करने में बड़ी सहायता मिलेगी।
राजकीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अनुसंधान इकाई करेगी शोध
राजकीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अनुसंधान इकाई चर्म रोगों पर चिड़चिड़ी के पौधे से निर्मित दवाओं के असर को लेकर शोध करेगी। यह इकाई 1957 से आयुर्वेदिक कॉलेज अस्पताल, पटना में संचालित है। यह स्वतंत्र इकाई है, लेकिन अबतक अनुसंधानात्मक कार्य ठप पड़े हुए थे। इकाई के वर्तमान अनुसंधान पदाधिकारी डॉ. शिवादित्य ठाकुर ने शोध की दिशा में पहल की है। उनके अनुसार चिड़चिड़ी का पौधा ठंड के मौसम में फलते-फूलते हैं और गर्मी में बड़े हो जाते हैं। इसी मौसम में फलों के साथ चिड़चिड़ी का पौधा भी सूख जाता है। इसके फूल हरी गुलाबी कलियों से युक्त तथा बीज चावल जैसे होते हैं। इसके पत्ते बहुत ही छोटे व सफेद रोमों से ढके होते हैं। अपामार्ग एक से तीन फुट ऊंचा होता है और भारत में सब जगह पाया जाता है।
अपामार्ग की राख में पाए जाने वाले तत्व
13 प्रतिशत चूना
04 प्रतिशत लोहा
30 प्रतिशत क्षार
07 प्रतिशत शोराक्षार
02 प्रतिशत नमक
02 प्रतिशत गन्धक
03 मज्जा तन्तुओं के उपयुक्त क्षार
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