पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही

Update: 2023-04-28 14:44 GMT

पटना न्यूज़: जलवायु परिवर्तन का ही असर है कि राज्य में असामान्य बारिश बढ़ गई है. इस साल के आंकड़ों को देखें तो जनवरी फरवरी में कम तो मार्च-अप्रैल में अधिक बारिश दर्ज की गई है. प्रदेश में जनवरी माह में सामान्य से 9.2 मिलीमीटर कम बारिश हुई. राज्य के औसत 9.4 मिलीमीटर बारिश में 0.2 मिलीमीटर ही बारिश हुई. इस दौरान 32 जिलों में बारिश नहीं हुई. वहीं 5 जिलों में बारिश हुई. जिसमें सबसे अधिक 4.8 मिलीमीटर बक्सर में, 1.9 मिलीमीटर भभुआ और सबसे कम 1 मिलीमीटर बारिश सिवान में दर्ज की गई.

मार्च में सामान्य से 11.5 मिलीमीटर अधिक हुई बारिश प्रदेश के सभी जिलों में मार्च में सामान्य से 11.5 मिलीमीटर अधिक बारिश हुई. मौसम विभाग के अनुसार मार्च में औसत 8.2 मिली मीटर बारिश होनी थी. लेकिन 19.7 मिलीमीटर बारिश हुई. इस दौरान सबसे अधिक गोपालगंज में 47 मिलीमीटर, किशनगंज में 37.6 मिलीमीटर, पूर्वी चंपारण में 36.9 मिलीमीटर बारिश हुई. वहीं सबसे कम बारिश 4.7 मिलीमीटर औरंगाबाद में, 7.1 मिलीमीटर रोहतास में और 8.4 मिलीमीटर जहानाबाद में हुई.

अप्रैल में सामान्य से 1.1 मिलीमीटर अधिक हुई बारिश प्रदेश में अप्रैल में (सामान्य से 1.1 मिलीमीटर अधिक बारिश हुई है. इस दौरान 19 जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई और 18 जिलों में सामान्य से अधिक बारिश हुई. वहीं शिवहर जिले में बारिश ही नहीं हुई है. मौसम विभाग के अनुसार अप्रैल में औसत से सबसे अधिक बारिश अरवल में 37.7 मिलीमीटर हुई. यहां 3.1 मिलीमीटर बारिश होनी थी. पूर्वी चंपारण में सामान्य से सबसे कम बारिश हुई. यहां औसत 12.9 मिलीमीटर बारिश होनी थी लेकिन 0.9 मिलीमीटर ही हुई.

17 मार्च को बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि से सीतामढ़ी जिले के रुन्नीसैदपुर प्रखंड के महिन्दवारा समेत आसपास की पंचायतों में गेहूं, दलहन व तेलहन फसल को नुकसान हुआ था. गेहूं के गिरे फसल को देखता किसान.

जलवायु परिवर्तन के कारण पेड़ असमय सूखने लगे है. उनके पत्ते काले पड़ जा रहे हैं. सारण में एनएच 19 के किनारे के पेड़ के पत्ते पूरी तरह झड़ चुके हैं.

बढ़ रहे ओले के आकार, वज्रपात से मौतें भी बढ़ीं

पटना. हाल के दिनों में कई जिलों में वज्रपात के साथ ओले के आकार में भी वृद्धि देखी गई है. इससे जानमाल का नुकसान बढ़ा है. इसे भी जलवायु परिवर्तन के असर के रूप में देखा जा रहा है.

कुछ वर्षों के दौरान सभी इलाकों में बड़े आकार के ओले गिरे हैं. इसी तरह आंधी के साथ वज्रपात की घटनाएं बढ़ी हैं. आपदा के आंकड़ों को देखें तो इससे जानमाल का नुकसान हरेक साल बढ़ रहा है. 2018 में 139, 2019 में 253 व 2020 में 443 मौत वज्रपात से हुई. 2021 में 280 व 2022 में यह संख्या 400 तक पहुंच गई है. पिछले साल अप्रैल में वैशाली के भगवानपुर, मोतिहारी इलाके में बड़े आकार के ओले गिरे थे.

अधिकतम तापमान में अंतर

● कृषि, स्वास्थ्य, बाजार सहित सभी क्षेत्रों पर दिख रहा दुष्प्रभाव

● जनवरी-फरवरी में कम, मार्च-अप्रैल में अधिक बारिश

● जलवायु परिवर्तन के चलते सूबे में हो रही असामान्य बारिश

20 अप्रैल (सामान्य से ऊपर) 24 अप्रैल (सामान्य से नीचे) तापमान का अंतर

पटना 43.3 डिग्री (5.5 ) 32.7 डिग्री (पांच डिग्री) 10.6 डिग्री

गया 42.5 डिग्री (3.0) 33.6 डिग्री (छह डिग्री) 09 डिग्री

पूर्णिया 40.2 डिग्री (4.5) 33.5 डिग्री (दो डिग्री) लगभग सात डिग्री

वाल्मिीकीनगर 42.2 डिग्री (4.9) 29.1 डिग्री (सात डिग्री) 13 डिग्री

भागलपुर 42.3 डिग्री (4.6 ) 31 डिग्री (चार डिग्री ) 11.3 डिग्री

मुजफ्फरपुर 40.6 डिग्री (4.2) 29.5 डिग्री (6.7) 11.1 डिग्री

तापमान की उछलकूद से जनजीवन प्रभावित

तापमान की उछलकूद से जनजीवन बेहाल है. सूबे में हरेक मौसम में ऐसी स्थिति देखने को मिल रही है. इस साल भी अप्रैल में पारे में रिकार्ड वृद्धि हुई. वहीं, बारिश के कारण तापमान गिरने से सुबह में सिहरन होने लगी.

मौसम विभाग के आंकड़ों को देखें तो दस दिनों में ज्यादातर शहरों का यही हाल रहा. 20 -21 अप्रैल तक सूरज आग बरसा रहा था. पारा 44 डिग्री तक पहुंच गया था. उसके बाद मौसम ने अचानक करवट ली और तापमान नीचे आ गया. न्यूनतम व अधिकतम तापमान में अंतर का असर जनजीवन पर पड़ा है. इस संबंध में जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ प्रो. प्रधान पार्थ सारथी का कहना है कि इस मौसम में तापमान का सामान्य से काफी ऊपर जाना अस्वाभाविक है.

फरवरी में नहीं हुई वर्षा

मौसम विभाग के अनुसार बिहार में फरवरी में औसत 10.4 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी. लेकिन पूरे प्रदेश में कहीं भी बारिश नहीं हुई.

जलवायु परिवर्तन के रूप में हमारे यहां सबसे बड़ा प्रभाव मानसून सीजन में दिखता है. हाल के वर्षों में राज्य में सूखे की स्थिति बढ़ी है. जाड़े का सीजन भी शिफ्ट हुआ है. अतिवृष्टि, अनावृष्टि जैसे प्रभाव भी दिख रहे हैं. शहरीकरण से बादलों के बनने की स्थिति और उसके बरसने की प्रकृति शहर और उसके आसपास अलग है.

- प्रो. प्रधान पार्थसारथी

जलवायु विशेषज्ञ

जलवायु परिवर्तन के असर से ही अत्यधिक गर्मी, लू, अत्यधिक ठंड, पाला और अति बारिश हो रही है. इसका असर फसल चक्र पर पड़ रहा है. तापमान और आर्द्रता बढ़ने से खरीफ, रबी फसलों में नए-नए कीड़े पनपने लगे हैं. फसल की उत्पादकता पर इसका असर दिख रहा है.

- डॉ. सुनील कुमार, मौसम कृषि

Tags:    

Similar News

-->