बच्चों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली जिन दवाओं को प्रतिबंधित किया गया था स्टेट ड्रग कंट्रोलर ने दी उन्हें बनाने और वितरण की इजाजत, स्वास्थ्य विभाग ने स्पष्टीकरण मांगा
राज्य सरकार की जिस एजेंसी पर दवाओं की गुणवत्ता निर्धारित करने और उसे बेहतर बनाए रखने की जिम्मेदारी है, उसकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। राज्य औषधि
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राज्य सरकार की जिस एजेंसी पर दवाओं की गुणवत्ता निर्धारित करने और उसे बेहतर बनाए रखने की जिम्मेदारी है, उसकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। राज्य औषधि महानियंत्रक (स्टेट ड्रग कंट्रोलर) ने खुद ही प्रतिबंधित दवाओं के निर्माण व वितरण की अनुमति दे दी। पटना उच्च न्यायालय द्वारा सीडब्लूजेसी संख्या 15440/2019 में 13 जनवरी, 2021 को पारित न्यायादेश से स्पष्ट है कि निजी क्षेत्र के निर्माता को प्रतिबंधित औषधियों के निर्माण एवं वितरण की अनुमति ड्रग कंट्रोलर द्वारा दी गयी।
स्वास्थ्य विभाग ने स्टेट ड्रग कंट्रोलर से उन पर लगे गंभीर आरोपों व पटना उच्च न्यायालय द्वारा अलग-अलग मामलों में पारित न्यायादेशों के तहत स्पष्टीकरण मांगा है। स्वास्थ्य विभाग के सचिव गोरखनाथ ने प्रभारी स्टेट ड्रग कंट्रोलर रवींद्र कुमार सिन्हा से स्पष्टीकरण देने को कहा है। सूत्रों के अनुसार बच्चों के इलाज में प्रयुक्त होने वाली ओफ्लोक्सासिन एवं ओरनिडाजोल कंपोजीशन की जिस दवा को प्रतिबंधित किया गया था मुजफ्फरपुर में उसके निर्माण का लाइसेंस दे दिया गया।
उच्च न्यायालय में दाखिल सीडब्लूजेसी संख्या 18762 / 2019 में दोषी अधिकारी पर कार्रवाई का आदेश दिया गया है। विभाग का मानना है कि इस मामले में ड्रग कंट्रोलर ही दोषी हैं। वहीं, उच्च न्यायालय में दाखिल सीडब्लूजेसी संख्या 14573/2021 में प्रतिबंधित दवाओं की बिहार में बिक्री को लेकर कड़ी टिप्पणी की गयी है। विभाग के अनुसार पटना उच्च न्यायालय द्वारा तीन मामलों में की गयी टिप्पणी अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इनमें ड्रग कंट्रोलर की सहभागिता दिख रही है। विभाग ने उनसे इस बाबत स्पष्टीकरण मांगा है और विभागीय कार्रवाई शुरू करने की तैयारी की है।
कंपनियों से खुद ही किया संपर्क
विभाग के अनुसार वर्ष 2016 में 120 महत्वपूर्ण गोपनीय फाइल का सृजन आरोपित ड्रग कंट्रोलर द्वारा अपने कोषांग में किया गया और कंपनियों से सीधे संपर्क कर पत्राचार किया गया। इससे संबंधित अभिलेख (रिकॉर्ड) संबंधित प्रशाखा में उपलब्ध नहीं हैं। विभाग का मानना है कि वे गोपनीय व मनमाने तरीके से अपने काम करते रहे हैं। सूत्रों के अनुसार दवाओं की खरीद के नाम पर ये संपर्क किए गए।
दायित्वों के निर्वहन में असफल रहे
स्वास्थ्य विभाग को राज्य के सभी सहायक औषधि नियंत्रक के साथ समीक्षा बैठक में इस बात की जानकारी मिली कि वर्षों से पटना में दवाओं की बिक्री से जुड़े अधिकतर सीएनएफ व डिपो की जांच ही नहीं हुई है। विभाग का मानना है कि ड्रग कंट्रोलर के स्तर से उनके नियंत्रणाधीन संस्थानों की निगरानी सही तरीके से नहीं की जा रही है। वे अपने दायित्वों को निभाने में विफल रहे हैं।
दरभंगा में ड्रग इंस्पेक्टर रहने के दौरान भी की थी गड़बड़ी
ड्रग कंट्रोलर आरके सिन्हा पर आरोप है कि जब वह दरभंगा में ड्रग इंस्पेक्टर के रूप में तैनात थे, उस समय भी गड़बड़ी की थी और आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करने वाले दरभंगा के लालबाग, शिवाजी नगर स्थित औषधि विक्रय संस्थान के लाइसेंस का नवीनीकरण कर दिया था। इससे जुड़ा मामला लोकायुक्त के यहां विचाराधीन है। इस मामले में लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी द्वारा पारित आदेश का पालन भी सिन्हा द्वारा नहीं किया जा रहा है।