स्लीपर कोच में जनरल बोगी से भी स्थिति बदतर, सफर दुश्वार
आम यात्री के लिए अब भी रेल में सफर करना काफी कठिन बना है
भागलपुर: बरौनी स्टेशन से देश को कोने-कोने से जोड़ने वाली सौ से अधिक यात्री ट्रेनों का संचालन होता है. रेलवे ने इंजन से लेकर कोच तक में बहुत से बदलाव किए हैं. अब हाई स्पीड ट्रेन भी चलनी शुरू हो गई है. लेकिन, आम यात्री के लिए अब भी रेल में सफर करना काफी कठिन बना है. खासकर स्लीपर व जनरल कोच की स्थिति काफी विकट बनी है. आलम यह है कि ट्रेन के टॉयलेट के सामने 12 से घंटे बैठकर यात्रा करना मुसाफिरों की मजबूरी है.
की शाम बरौनी जंक्शन से खुलने वाली बलिया-सियालदह ट्रेन के स्लीपर और जनरल कोच की स्थिति एक जैसी बनी थी. आलम यह था कि स्लीपर की एक सीट पर तीन यात्रियों की जगह 6 से 7 यात्री ठेलमठेल कर बैठे थे. कोच की गैलरी से लेकर दरवाजे और टॉयलेट तक यात्री खड़े और बैठे थे. भीड़ इतनी थी कि लोग स्लीपर कोच में भी जेनरल की तरह ठसाठस भरे थे. इससे जिन यात्रियों के पास कंफर्म बर्थ थी वे काफी परेशान बने थे. काफी मशक्कत से मिलने वाली अपनी ही कंफर्म सीट पर यात्री किसी तरह यात्रा करने को विवश दिखे. बरौनी से सियालदह तक स्लीपर कोच एस-6 में यात्रा कर रहे बेगूसराय निवासी सुधीर कुमार ने बताया कि रेल प्रशासन को यात्रियों की सुविधा से कोई लेना-देना नहीं है.
काफी मुश्किल से कंफर्म टिकट मिल पाता है. टिकट मिलने के बाद ट्रेन में स्लीपर क्लास की स्थिति काफी दयनीय बनी रहती है. अपनी सीट पर भी लोग आराम से बैठ नहीं पाते हैं. यात्रियों के बीच सीट पर बैठने के लिए तू-तू मैं-मैं की स्थिति बनी रहती है जिसे देखने वाला कोई नहीं है. विदित हो कि ऐसी स्थिति सिर्फ बलिया-सियालदह एक्सप्रेस की ही नहीं है बल्कि बरौनी स्टेशन से होकर गुजरने वाली लगभग मेल एक्सप्रेस व सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेनों की बनी है.
रेल प्रशासन को यात्रियों की परेशानियों से नहीं है कोई लेना देनाट्रेनों में लगातार भीड़ बढ़ने से कंफर्म टिकट होने के बावजूद यात्रियों को आरामदायक रेल यात्रा से वंचित होना पड़ रहा है. लेकिन, रेल प्रशासन को यात्रियों की सुविधा से कोई लेना-देना नहीं है. या यूं कहें कि रेलवे का स्लोगन यात्रियों की सुविधा मुस्कान के साथ यात्रियों का मुंह चिढ़ा रहा है. ट्रेन में तैनात टीटीई व एस्कॉर्ट पार्टी सहित अन्य रेलकर्मी आरक्षित सीटों पर जबरन कब्जा जमा कर बैठने वाले लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं कर पाते हैं. ऐसी सूरत में कंफर्म टिकट लेकर यात्रा करने वाले यात्रियों को आर्थिक, मानसिक व शारीरिक रूप से कितनी फजीहत झेलनी पड़ती होगी इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. ये एक दिन की बात नहीं है. ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी रेल अधिकारी व कर्मी को नहीं है. बावजूद स्थिति जस की तस बनी है.