आईपीएस की वर्दी पहनकर भी साधना संगीत

Update: 2023-08-12 07:05 GMT

बिहार का DGP बनाने के लिए जब केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से 1990 बैच के IPS आरएस भट्ठी को बुलाया गया तो यह मान लिया गया कि नीतीश सरकार को राज्य में सेवा दे रहे सबसे सीनियर IPS अधिकारी आलोक राज पर भरोसा नहीं। नजदीक से देखें तो बात भरोसे की थी ही नहीं, तटस्थता-सौम्यता वाली छवि की थी। भारतीय पुलिस सेवा के 1989 बैच के अधिकारी आलोक राज पुलिस की सारी जिम्मेदारी निभाते रहे हैं, लेकिन कड़ियल छवि कभी नहीं रही। वजह है उनकी शास्त्रीय संगीत साधना। इस सावन-अधिकमास में बाबा भोला पर गाया उनका वीडियो गीत वायरल हो रहा है। 'अमर उजाला’ के लिए कृष्ण बल्लभ नारायण और आदित्य आनंद से लंबी बातचीत में उन्होंने संगीत साधना की वजह बताई।

कर्तव्यपथ से अलग है शौक, इसलिए...

ज्यादातर अधिकारी तो मीडिया वालों को घर पर नहीं बुलाते हैं, लेकिन उन्होंने निजी आवास पर बुलाया। क्यों? जवाब दिया- कर्तव्य। कैसे? डीजी आलोक राज कहते हैं कि "कार्यस्थल पर आपकी छवि सिर्फ जिम्मेदार-कर्तव्यनिष्ठ कर्मी की होनी चाहिए। वह कर्तव्यपथ है, जिसके साथ समझौता नहीं करता हूं। कार्यावधि और कार्यस्थल से अलग अपनी निजी दुनिया में आप खुद को अलग ढाल सकते हैं। जहां कोई बंधन नहीं होता। बंधन नहीं होता तो आप अपने शौक को जिंदा रख सकते हैं। मैं यह काम घर पर करता हूं। घर वाली बात यहीं होनी चाहिए।"

संगीत तो हर इंसान की जिंदगी में है

डीजी विजिलेंस आलोक राज का गाया गीत 'ये भोला सबसे बड़ा है...’ अलग-अलग सोशल मीडिया पर चल रहा है। लोग टी-सीरीज़ के इस एलबम को ऑर्डर कर मंगा रहे हैं। संगीत की इस साधना पर वह कहते हैं- “संगीत तो हर इंसान की जिंदगी में होता है। अपने सुना जरूर होगा कि हर इंसान बाथरूम सिंगर जरूर होता है। कुछ सुख में गुनगुनाते हैं तो कोई दु:ख में भी नगमे गाता है। मुझे स्कूल-कॉलेज के समय फिल्मी गानों का बहुत शौक था। 20 अगस्त 1989 को जब आईपीएस के रूप में सेवा शुरू की तो यह सब किनारे हो गया। पुलिस का काम और जिम्मेदारी अलग होती है। करीब 22 साल तक उस छवि में बंधा रहा। फिर लगा कि कर्तव्यपथ की छवि अपनी जगह कायम रहे, लेकिन उसकी नकारात्मकता को दूर करने के लिए अपने शौक को परवान चढ़ाया जाए। दिसंबर 2011 में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा लेने लगा। बड़े अच्छे गुरुजी भी मिल गए। श्रीअशोक कुमार प्रसाद के सानिध्य और मार्गदर्शन में संगीत का यह सफर निरंतर चल रहा है। और, मैं कहूंगा कि निश्चित तौर पर यह बहुत ही मधुर सफर है।”

छह साल रियाज के बाद गाया अलबम में

राज्य में सेवारत सबसे सीनियर आईपीएस अधिकारी के घर में उनके अलबम करीने से रखे मिले। सभी टी-सीरीज़ के ही हैं, लेकिन हरेक अलबम की कहानी अलग है। हमने उनसे उन कहानियों को भी जाना। उन्होंने बताया- “छह साल रियाज किया, तब जाकर अलबम के रूप में गाने की शुरुआत की। 2017 में आया पहला अलबम- 'साईं रचना'। उसके बाद देश के विख्यात गीतकार और कवि पद्मभूषण गोपालदास नीरज से अलीगढ़ जाकर मिला। उनके गानों का राइट्स लिया और फिर अलबम रिलीज हुआ- 'नीरज के गीत रिलीज' हुआ। इसे लोगों ने पसंद किया तो मैंने विख्यात शायर और कवि दुष्यंत कुमार जी के पुत्र से मुलाकात की। उनसे अनुमति लेकर मैंने दुष्यंत कुमार के गजलों का भी अलबम किया। पिछले साल सावन में कबीर भजन का अलबम रिलीज हुआ और इस बार बाबा भोलेनाथ का भजन रिलीज हुआ। एक भजन और गाया है। वह भी जल्द ही रिलीज होगा।"

पुलिस में होकर ऐसी छवि क्यों बनाई

इस सवाल का जवाब उन्होंने बड़ी स्पष्टता के साथ दिया। कहा- “दोनों छवि अलग हैं। कार्यस्थल पर यह सौम्य छवि नहीं और संगीत-साधना के दरम्यान पुलिस वाला असर नहीं रखता। मेरा यह मानना है कि संगीत इंसान के व्यक्तित्व को पूर्ण करता है। मैं एक पुलिस ऑफिसर हूं। पुलिस सेवा में एक नकारात्मकता आती है, नेगेटिविटी आती है... वह अस्वाभाविक नहीं है। ऐसे ही केस, ऐसी ही परिस्थिति से पाला पड़ता है वहां। पुलिस की नौकरी, वर्क स्टाइल और अंतत: इसके कारण हुआ तनाव व्यक्ति पर हावी हो जाता है। इंसान तो इंसान ही है। आप महसूस करते होंगे कि पुलिस ऑफिसर तनावग्रस्त रहते हैं और उनके आचरण में चिड़चिड़ाहट आ जाती है। गुस्सा स्वाभाविक तौर पर आता रहता है। इसलिए, मेरा यह मानना है कि कला ही एक माध्यम है, जिससे सहनशीलता बढ़ती है। क्रिएटिविटी बढ़ती है और निगेटिविटी कम होती है। खराब या गलत काम करने से भी यह भाव रोकता है।"

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