पटना : बिहार का औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है, ऐसे में महागठबंधन की ओर से पहली बार भाग्य आजमाने उतरे राजद के लिए यहां की राह आसान नहीं दिखती। झारखंड से सटे इस संसदीय क्षेत्र में 50 वर्षों से अधिक समय तक दो परिवारों का दबदबा रहा है।
बिहार की राजनीति में दखल रखने वाला यह क्षेत्र राजपूत जाति से आने वाले सांसदों को चुनता रहा है, यही कारण है कि इस क्षेत्र की पहचान चितौड़गढ़ के रूप में होती है। औरंगाबाद क्षेत्र के इतिहास पर नजर डालें तो इस क्षेत्र पर दो परिवारों का 50 से अधिक सालों तक कब्ज़ा रहा।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह उर्फ़ छोटे साहब छह बार इस संसदीय क्षेत्र से विजयी रहे तो उनके पुत्र निखिल कुमार और बहू श्यामा सिंह ने भी संसद में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
राम नरेश सिंह उर्फ़ लुटन सिंह इस क्षेत्र से दो बार सांसद बने। जबकि, उनके पुत्र सुशील सिंह इस क्षेत्र का चार बार लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। सुशील सिंह को इस चुनाव में भाजपा ने एकबार फिर से प्रत्याशी बनाया है। पिछले चुनाव में औरंगाबाद सीट पर भाजपा के प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह ने जीत हासिल की थी। उन्होंने 4 लाख 27 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे।
जबकि, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रत्याशी उपेंद्र प्रसाद ने 3 लाख 57 हजार से अधिक वोट लाकर दूसरा स्थान हासिल किया था। बीएसपी प्रत्याशी नरेश यादव ने 33 हजार 772 वोट लाकर तीसरा स्थान हासिल किया था। कांग्रेस की ओर से निखिल कुमार ने इस चुनाव में दावा ठोंका था, लेकिन यह सीट राजद के खाते में चली गई।
पहली बार यहां से चुनाव मैदान में उतरे राजद ने जदयू से आए अभय कुशवाहा को टिकट थमाया है। राजनीतिक विश्लेषक राजद के लिए इस सीट को आसान नहीं बताते हैं। उनका मानना है कि राजपूत बहुल मतदाता वाले इस क्षेत्र के लोग राजपूत जाति से आने वाले प्रत्याशियों को जीत दिलाते रहे हैं। हालांकि, दो बार इसमें सेंध लगाने की कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली।
विश्लेषकों का मानना है कि राजद ने कुशवाहा जाति से आने वाले अभय कुशवाहा को मैदान में उतारकर समीकरण बदलने की कोशिश की है, लेकिन राह बहुत आसान नहीं है। वैसे मुकाबला कड़ा और दिलचस्प होने की उम्मीद है।
औरंगाबाद, रफीगंज, टिकारी, गुरुआ, कुटुम्बा और इमामगंज विधानसभा क्षेत्र वाले औरंगाबाद में मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। यहां दूसरे स्थान पर यादव मतदाताओं की संख्या है। इसके बाद मुस्लिम और भूमिहार मतदाताओं की संख्या है। इस सीट पर महादलित वोटर भी निर्णायक भूमिका अदा करते हैं।
--आईएएनएस