नालंदा न्यूज़: लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी से आदेश पारित होने के बाद भी उसका अनुश्रवण करने में अधिकारी रुचि नहीं लेते हैं. आदेश के बाद भी 60 फीसद मामलों में कार्रवाई नहीं होती है. लोक शिकायत निवारण अधिनियम की समीक्षा रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है. इस तरह की लापरवाही बरतने में सबसे आगे जिले के अंचलाधिकारी हैं. यही कारण है कि लोक शिकायत निवारण अधिनियम से आदेश पारित होने के बाद भी काफी मामले लंबित हैं.
मुख्य सचिव स्तर से की गयी समीक्षा में भी इसपर खेद व्यक्त किया जा चुका है. अंचल स्तर पर अतिक्रमण मुक्त का आदेश पारित होने के बाद भी बिहारशरीफ सीओ द्वारा 94 में से मात्र 25 पर ही अमल किया गया है. इसी प्रकार, अस्थावां में 25 में महज एक, नूरसराय में 60 में 10, हरनौत द्वारा 46 में से 10, बिंद में 11 में से तीन, सरमेरा में 32 में पांच, रहुई में 25 में पांच, बेन 58 में से 19, गिरियक 21 में तीन, कतरीसराय 15 में तीन, राजगीर 79 में छह, सिलाव 62 में 12, इस्लामपुर मं 101 में पांच, एकंगरसराय 140 में 28, करायपरसुराय 23 में एक, चंडी 110 में 30, थरथरी 37 में दो, परवलपुर 28 में 15, हिलसा 146 में 29, नगरनौसा 63 में 21 का अतिक्रमण मुक्त कराया गया है. डीएम की अध्यक्षता में 22 जून को जिला स्तरीय बैठक के बाद जारी आदेश में अधिकारियों को इसके लिए चेतावनी दी गयी है.
थानाध्यक्ष भी नहीं लेते हैं रुचि
नियम से थोड़ा भी बायें-दायें हुए तो कानून का हवाला देकर डंडे बरसाने वाले थानाध्यक्ष भी आदेशों पर कार्रवाई करने में रुचि नहीं ले रहे हैं. मुख्य सचिव स्तर से समीक्षा में यह पाया गया कि सुनवाई के क्रम में थानाध्यक्ष द्वारा ऐसे पदाधिकारी को भेजा जाता है जिसे उक्त शिकायत के संबंध में जानकारी नहीं होती है. इससे शिकायत के निपटारे में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इस तरह के मामले संज्ञान में आने पर आदेश दिया गया है कि लोक शिकायत के सुनवाई में अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी, थानाध्यक्ष स्वयं उपस्थित रहें. यदि उन्हें किसी महत्वपूर्ण कार्य में व्यस्तता हो तो वैसे पदाधिकारी को सुनवाई में भेजें, जिन्हें परिवाद की जानकारी हो.