धर्मारण्य वेदी पर पिंडदान करने से प्रेतयोनि से मुक्ति, महाराज युधिष्ठिर ने किया था पितृयज्ञ
गया (आईएएनएस)। दिवंगत आत्माओं को याद करने या उनकी शांति के लिए प्रार्थना करने की प्रथा एक संस्कृति तक ही सीमित नहीं है। कई संप्रदायों, धर्मों में इसके लिए अलग-अलग प्रथा और चलन है। सनातन धर्म में विश्वास करने वाले पितृपक्ष में अपने पुरखों की आत्मा की शांति और उनके उद्धार के लिए गया में पिंडदान करने के लिए पहुंचते हैं। पिंडदान के लिए गया को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।
पितृपक्ष की तृतीया तिथि में पिंडदान करने के लिए श्रद्धालु बोधगया में पहुंचते हैं। पितृपक्ष के तृतीया को धर्मारण्य और मतंगवापि में पिंडदान करने का विधान है। धर्मारण्य पिंडवेडी में मुख्य रूप से त्रिपिंडी श्राद्ध करने का विधान है।
जिन व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो जाती है, उनकी आत्मा प्रेतयोनि में न भटके, उसे मोक्ष दिलाने के लिए धर्मारण्य में पिंडदान किया जाता है। इसे त्रिपिंडी श्राद्ध भी कहा जाता है।
मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। गया शहर से करीब छह मिलोमीटर दूर बोधगया में अवस्थित धर्मारण्य वेदी की मान्यता है कि कुरूक्षेत्र में महाभारत युद्ध के बाद स्वयं भगवान कृष्ण यहां पांडवों को लेकर आए थे और पितृयज्ञ करवाया था।
हिंदू संस्कारों में पंचतीर्थ वेदी में धर्मारण्य वेदी की गणना की जाती है। मान्यता है कि धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान और त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है। यहां किए गए पिंडदान और त्रिपिंडी श्राद्ध से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है।
धर्मारण्य के पुजारी अशोक कुमार बताते हैं कि महाभारत के बाद महाराज युधिष्ठिर ने यहीं आकर पिंडदान कर अपने पितरों को मोक्ष की प्राप्ति कराई थी।
पंडित पांडेय ने बताया कि धर्मारण्य वेदी के नदी तट पर तर्पण का विधान एवं पंचरत्ण का दान का विधान के साथ परिसर में पीपल वृक्ष के परिक्रमा का विधान है।
गयाववाल तीर्थवृति सुधारिनी सभा के अध्यक्ष पंडा गजाधर लाल कहते हैं कि धर्मारण्य वेदी पर पिंडदान के कर्मकांड को संपन्न कर पिंड सामग्री को अष्टकमल आकार के धर्मारण्य यज्ञ कूप में श्रद्धालुओं द्वारा विसर्जित किया जाता है। कई पिंडदानी अरहट कूप में त्रिपिंडी श्राद्ध के बाद नारियल छोड़ने की भी परंपरा है।
उन्होंने बताया कि धर्मारण्य वेदी पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु का भय, पितृदोष से मुक्ति तथा घर में प्रेतबाधा से भी शांति मिलती है। यहां मुख्यरूप से तिल, जौ, चावल और गुड़ से पिंड देने की प्रथा है।
उल्लेखनीय है कि पितृपक्ष के मौके पर इन दिनों गया पिंडदानियों से पटा है। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पूरे पितृपक्ष की समाप्ति तक गया में आकर पिंडदान करते हैं।