पतित पावनी गंगा की तलहटी माफियाओं के चंगुल में, आसपास के गावों में खुलेआम बिक रहा देसी 'जहर'
बिहार के मुंगेर जिले में पतित पावनी गंगा की तलहटी अब कच्ची शराब माफियाओं के चंगुल में है. जानकारी के मुताबिक गंगा के वे इलाके जहां पुलिस को भी जानें में कठिनाई होती है. वहां शराब माफिया बड़े आराम से देसी शराब का उत्पादन करते हैं. स्थानीय लोग तो यहां तक बताते हैं कि क्षेत्र में कई अवैध शराब बनाने की भट्टियां सुलग रही हैं. यहां एकदम शुद्ध देसी शराब आसानी से मिल जाता है. शराब बनाने के बाद इसे गंगा के तटीय इलाके के मार्गों से होते हुए इसकी सप्लाई भी की जा रही है.
गंगा घाट सदियों से बदनाम
नाम नहीं छापने के शर्त पर मुंगेर जिले के चड़ौन गांव निवासी एक युवक ने बताया कि गंगा घाट सदियों से बदनाम रहा है. वजह पहले यहां अवैध देसी कट्टा बनाया जाता है, आज देसी शराब. युवक ने बताया कि यहां गंगा किनारे आपको महज 200 से 300 रुपये प्रति लीटर तक देसी शराब बड़े आराम से मिल जाएगा. जबकि गांव में देसी शराब आपको 350 से लेकर 400 रुपये प्रति लीटर तक मिल जाएगा. यह स्थिति केवल चड़ौन गांव की नहीं है. गंगा तट के आसपास ही दर्जनों गांव हैं जैसे नौवागढ़ी उत्तरी और दक्षिणी पंचायत के कमोबेश सभी गांवों का यही हाल है. इन गांवों में शराब माफियाओं का घर गांव के एकदम बीच में होता है. यहां फिर वे गांव के मध्य से ही शराब का व्यापार किया करते हैं. इस वजह से गांव में पुलिस के प्रवेश करते ही, माफियाओं को इसकी भनक लग जाती है. जिसके बाद वे सतर्क हो जाते हैं.
कभी गांव में जलती थी शिक्षा की दीप
मुंगेर जिला से लगभग दस किमी दूरी पर स्थित चड़ौन गांव के ही एक अन्य युवक ने भी नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि गांव में पहले कभी शिक्षा की दीप जलती थी. लेकिन आज शिक्षा की लौ गांव में कमजोर हो गयी है. चंद पैसे के लालच में नाबालिग से लेकर नवयुवक देसी शराब बिक्री के चंगुल में फंसते जा रहे हैं. वहीं, एक अन्य युवक ने बताया कि गांव में इंजीनियर से लेकर कई वरीय अधिकारी तक हैं. हाल के दिनों में बेरोजगारी जिस कदर से हावी हुई. उसके बाद से गांव के युवा शराब के व्यापार में कूद गए. युवाओं को शराब के व्यापार में मिल रही तरक्की को देखने के बाद गांव के किशोरों ने भी गलत राह पकड़ ली है.
गांव के युवाओं ने पुलिस पर लगाए गंभीर आरोप
गांव के युवाओं ने बताया कि ऐसा नहीं है कि शराब की तस्करी और बिक्री के बारे में अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है. अधिकारी मिलीभगत के चलते किसी बड़ी कार्रवाई को अंजाम नहीं देते हैं. ऊपर से फटकार लगने के बाद चंद छोटे कारोबारियों को गिरफ्त में लेकर पूरे मामले की इतिश्री कर दी जाती है.
कैसे बनाया जाता है देसी शराब
गांव के एक युवक ने बताया कि सर्दियों का मौसम कच्ची शराब की पैदावार के लिए एकदम सही समय होता है. पारा जैसे-जैसे बदलता है, नशे का अवैध कारोबार बढ़ता जाता है. शराब माफिया गंगा की तलहटी में गड्ढा खोकर पहले उसमें पॉलीथीन बिछाते हैं. इसके बाद उसमें पानी भरकर देसी शराब को तैयार किया जाता है. गंगा के तलहटी में शराब बनाने का यह पूरा खेल, एक पूरे गिरोह के द्वारा संचालित किया जाते हैं. गिरोह में एक दर्जन से अधिक लोग रहते हैं. पुलिस टीम आते देख माफिया और उनके गुर्गे गंगा पार कर इधर-उधर शरण ले लेते हैं और पुलिस देखती रह जाती है.
शराब नहीं बनाया जाता है जहर
एक पुराने शराब माफिया ने नाम नहीं छापने के शर्त पर जानकारी देते हुए बताया कि वे अब शराब का कारोबार नहीं करते हैं. बिहार में जब शराबबंदी लागू नहीं थी. तब वे देसी शराब बनाने का काम किया करते थे. लेकिन आजकल जिस तरह से शराब का निर्माण किया जा रहा है. वह अब केवल नशा नहीं रहा. प्रतिदिन जहर का उत्पादन किया जा रहा है. आजकल महुआ को सड़ाने के बाद उसे भट्ठी पर चढ़ाया जाता है. इसके बाद नली लगाकर बूंद-बूंद शराब टपकाई जाती है. शारब को अधिक नशीला बनाने के लिए इस शराब में नौसादर, चूना, यूरिया, डिटरजेंट पाउडर व हानिकारक केमिकल भी डाला जाता है. अगर केमिकल की मात्रा महज कुछ एमएल ही इधर का उधर होता है, तो वह शराब जहर की बूंद बन जाती है.