Gaya: ऑर्थोपेडिक में इंप्लांट बेचने का फिर हुआ खुलासा

अस्पताल प्रशासन की ओर से सभी इंप्लांट उपलब्ध रहने का दावा किया जाता है.

Update: 2024-06-05 05:35 GMT

गया: डीएमसीएच के ऑर्थोपेडिक विभाग में मरीजों को इंप्लांट (रॉड, स्क्रू आदि) बेचने का धंधा जोरों से चल रहा है. करीब दो महीने पहले विभाग के ऑपरेशन थिएटर में दो धंधेबाजों के रंगेहाथ धराने के बावजूद इस धंधे पर रोक नहीं लगाई जा सकी है. ऑपरेशन के लिए अधिकतर मरीजों को बिचौलियों से इंप्लांट खरीदने पड़ रहे हैं. वह भी जब अस्पताल प्रशासन की ओर से सभी इंप्लांट उपलब्ध रहने का दावा किया जाता है.

न्यू सर्जरी भवन में काफी देर तक चले हाई वोल्टेज ड्रामा ने ऑर्थोपेडिक विभाग में बाहरी लोगों द्वारा इंप्लांट बेचने के अवैध धंधे की एक बार फिर पुष्टि कर दी. हुआ यूं कि नकली इंप्लांट बेचने के शक में एक मरीज के परिजन दो-तीन दिनों से एक धंधेबाज की बेसब्री से तलाश कर रहे थे. आखिरकार परिजनों ने उसे इमरजेंसी विभाग परिसर से दबोच लिया. उसे अपनी गिरफ्त में लेकर वे न्यू सर्जरी विभाग परिसर पहुंचे. वे उसपर चार हजार रुपए लेकर नकली इंप्लांट बेचने का आरोप लगा रहे थे. बिचौलिया इस बात से इनकार करते हुए उन्हें चिकित्सक के पास चलने को बोल रहा था. वह कह रहा था कि उनके सामने स्पष्ट हो जाएगा कि इंप्लांट असली था या नकली. हालांकि परिजन उसकी एक सुनने को तैयार नहीं थे. परिजनों ने जबरन बिचौलिए से चार हजार रुपए वापस ले लिया और वहां से चलते बने.

पूछने पर बिचौलिए ने एक खास दुकान का नाम बताते हुए कहा कि वह वहां काम करता है. जिन मरीजों का ऑपरेशन होना है उनसे पैसे लेकर उन्हें इंप्लांट सप्लाई करता है. उसने दावा किया कि इंप्लांट की कीमत आठ हजार रुपए है.

मरीजों को वह चार हजार रुपए में उपलब्ध करा देता है. बहरहाल इस मामले ने एक बार फिर विभाग में चल रहे इंप्लांट बेचने के अवैध धंधे का पर्दाफाश कर दिया.

बता दें कि पूर्व में रंगेहाथ हाथ धराए दो बिचौलियों को कार्रवाई बिना जाने दिया गया था. बता दें कि ऑर्थोपेडिक इंप्लांट एक निर्मित उपकरण है जिसे क्षति या विकृति के कारण जोड़, हड्डी या उपास्थि को बदलने के लिए डिजाइन किया जाता है. जैसे कि पैर टूटने, अंग खोने या जन्मजात दोष के कारण.

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