कटिहार में बाढ़ ने घटाया कलाय की खेती के प्रति किसानों का आकर्षण, गंगा और कोसी के घाटे में वृद्धि से नुकसान, बेमौसम बारिश से भी हो रही है गिरावट
की खेती के प्रति किसानों का आकर्षण, गंगा और कोसी के घाटे में वृद्धि से नुकसान, बेमौसम बारिश से भी हो रही है गिरावट
बिहार जिले के गंगा एवं कोसी नदी तथा महानंदा नदी के किनारे पहले विशाल दियारा क्षेत्र के 65 हजार हेक्टेयर में काला सोना के नाम से चर्चित कलाई फसल को किसान नकदी फसल के रूप में विगत कई दशक से ऊपजाते आ रहे हैं. इसका मुख्य कारण है कि जैसे-जैसे गंगा एवं कोसी नदी के जलस्तर में कमी आती है, किसान 5 से 7 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से बीज का छिड़काव करते हैं. इससे वे 7 से 8 क्विंटल उत्पादन कर लेते हैं.
सिकुड़ रहा है रकवा विगत कई सालों से इसका रकवा सिकुड़ते जा रहा है. अब वर्तमान समय में 18हजार हेक्टेयर में इसका रकवा सिमट कर आ गया है. भादो माह में गंगा एवं कोसी नदी के जलस्तर में हुई वृद्धि के कारण कई एकड़ में लगी कलाई की फसल डूब गई. वही लगातार बारिश के वजह से फसल की बर्बादी हुई है.
सितंबर की शुरुआत से बुवाई सनद रहे कि जिले के कुर्सेला, समेली, बरारी, अमदाबाद, मनिहारी के विशाल दियारा क्षेत्र में सितंबर माह के शुरुआत से ही कलाई की बुवाई शुरू हो जाती है. इस बार बाढ़ आने व लौट जाने के कारण किसानों को बेहतर पैदावार की उम्मीद थी. लेकिन दोबारा आई बाढ़ के कारण कलाई की फसल को नुकसान हुआ है. सनद रहे कि दियारा के किसान नकदी फसल के रूप में कलाई लगाते हैं. जिसके कारण इसे काला सोना के रूप में जाना जाता है. दियारा क्षेत्र के लिए यह फसल सबसे उपयुक्त होने के कारण इसकी खेती व्यापक पैमाने पर की जाती है. जिससे यहां के किसानों के परिवारों का खर्च निकलता है तथा बच्चों की पढ़ाई भी इसी पर निर्भर करता है.
इन क्षेत्रों में होती है कलाई की खेती कोसी नदी के किनारे कोसकीपुर,बाघमारा, कटरिया एवं गंगा नदी के किनारे पत्थर टोला, खेरिया, तिनघरिया, मलिनिया, गुमटी टोला बाड़ी नगर, बरारी, कांत नगर, बकिया दियारा काला दियारा, गदाई दियारा तथा महानंदा नदी के बाहर खाल दियारा ,मुकुरिया दियारा के क्षेत्र में इसकी व्यापक खेती होती है. लेकिन इस बार पहले तो बाढ़ एवं उसके बाद लगातार बारिश से फसल को क्षति हुई है.