60 गांवों के किसानों ने मक्के की खेती से की तौबा
कृषि विभाग भी नियमों का हवाला देकर किसानों को अपने हाल पर छोड़ दिया
नालंदा: नालंदा के 10 से ज्यादा प्रखंडों में नीलगायों का आतंक है. राजगीर के जंगल क्षेत्र हो या फिर हरनौत, बिंद, अस्थावां, रहुई व अन्य प्रखंडों के टाल इलाके. हर तरफ नीलगायों के झुंड फसलों को तबाह कर रहे हैं. नौबत ऐसी कि 60 से अधिक गांवों के किसानों ने मक्के की खेती से तौबा कर ली है. इतना ही नहीं, धनिया, मूंग, सूर्यमुखी और सब्जियों की खेती भी छोड़ दी है. दिनों-दिन नीलगायों की बढ़ती फौज से मुक्ति के लिए न जिला प्रशासन कुछ पहल कर रही है और न ही वन विभाग. कृषि विभाग भी नियमों का हवाला देकर किसानों को अपने हाल पर छोड़ दिया है.
दिन में बगीचे, नदियों के किना और टाल क्षेत्रों में लगी झाड़ (बड़ी घास) में नीलगाएं छुपी रहती हैं. शाम ढलने के बाद झुंड बनाकर निकलती हैं. नीलगाएं फसलों को खाने के साथ ही पैरों से रौंदकर पूरी तरह से बर्बाद कर देती हैं. अगर किसी खेत में नीलगायों का झुंड बैठ गया तो समझिए सारी फसल चौपट हो गयी. इतनी चालाक होती हैं कि चारों दिशाओं में नजर रखती हैं. किसी के आने की थोड़ी-सी आहट होते ही तेज रफ्तार से भाग निकलती हैं. किसानों की मानें तो जिस रफ्तार से नीलगायों की संख्या बढ़ रही है, समय रहते इसपर रोक नहीं लगी तो आने वाले दिनों में कई अन्य गांवों के किसान भी मक्के, मूंग, धनिया और सब्जियों की खेती छोड़ देंगे.
बाली निकलते ही कर जाती हैं चट हरनौत प्रखंड के वरुणतर के किसान राजेश कुमार, शशिशेखर कुमार, सिद्धेश्वर कुमार, अरुण सिंह, धनंजय सिंह व अन्य कहते हैं कि आसपास के सिरसी, बराहिल, तेलमर और चोराकोण टाल को मिला दें तो यह करीब चार से पांच किलोमीटर में फैला है. पहले बड़े पैमाने पर इस इलाके में मक्के की खेती की जाती थी. जबसे नीलगायों का आतंक बढ़ा है, धीरे-धीरे खेती भी सिमटती गयी. समस्या यह कि नीलगायें मक्के की बाली निकलते ही उसे खा जाती है. नतीजा, उपज के नाम पर सिर्फ ठंडल हाथ लगता है. जबकि, मूंग और धनिया के पौधों के कोमल हिस्से को खा जाती है. फलन नहीं होता है.
भगाते हैं पर फिर आ जाती नीलगायों की शरणस्थली पंचाने, लोकाइन, सूढ़, जिराइन, सकरी व अन्य नदियों के किनारे है. राजगीर के जंगल सबसे सेफ इलाका है. टाल क्षेत्र में बड़ी-बड़ी घासों में छुपकर रहती है. गांवों से दूर आम के बगीचे भी रहने के लिए इनकी पसंदीदा जगह है. फसलों को नीलगायों से बचाने के लिए किसानों ने कई प्रयास किये गये हैं. लेकिन, अबतक कोई नतीजा नहीं निकला है. किसानों का कहना है कि झुंड को खदेड़कर दूसरे इलाकों में भगा दिया गया है. लेकिन, फिर से वापस आ जाता है. झुंड में 30 से 40 नीलगायें रहती हैं.
करें ये उपाय, नुकसान होगा कम पौधा संरक्षण विभाग के रिटायर्ड सहायक निदेशक अनिल कुमार कहते हैं कि कई तरीके हैं, जिनके प्रयोग से फसलों को नीलगायों से बचाया जा सकता है. सबसे सरल और सस्ता तरीका यह कि नीलगायें जहां पर रहती हैं वहां से उसकी लीद को किसान इकह्वा करें.
एक किलो गोबर को 10 लीटर पानी में घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव कर देने से नीलगायें उस खेत में नहीं आती हैं. कारण, नीलगायों को अपनी लीद से एलर्जी है.
इन इलाकों में नीलगायों का उत्पात अधिक
● बिंद कुशहर, सुरतपुर, ताजनीपुर, बकरा, मदनचक, राजोपुर, सैदपुर, नौरंगा, नीरपुर, मीराचक, छतरपुर
● हरनौत वरुणतर, सिरसी, तेलमर, ललुहाडीह, सागरपर, मोहन खंधा, पाकड़, मुस्तफापुर
● अस्थावां अन्दी, डेढ़धारा, झमटापर, नोआवां, बहादीबिगहा, नेरुत, सदरपुर, कैला
● कतरीसराय दरवेशपुरा, मैरा बरीठा
● एकंगरसराय जैतीपुर, मानसींगपुर, बड़ारी, कोरथू
● इस्लामपुर सरथुआ, मदारगंज, हरसिंगरा, खुदागंज
● हिलसा बढ़नपुरा और बदलपुर खंधा
● थरथरी चैनपुर, श्रीनगर, मकुनंदन बिगहा, धरमपुर, जैतपुर
● राजगीर जंगल और आयुध फैक्ट्री से सटे विस्थापित कॉलोनी का इलाका
अंदी के किसानों ने बीज लेने से किया इनकार
वैकल्पिक खेती के तौर पर हर प्रखंड में 200 हेक्टेयर का मक्का क्लस्टर बनाया गया है. किसानों को मुफ्त में बीज दिये जा रहे हैं. अस्थावां के अंदी पंचायत का भी चयन किया था. लेकिन, यहां के किसानों ने नीलगायों के डर से बीज लेने से ही साफ मना कर दिया. पदाधिकारियों द्वारा समझाने का भी कोई असर नहीं हुआ तो थक हारकर अस्थावां बीएओ ने जिला को रिपोर्ट भेज दूसरी पंचायत का चयन करने का आग्रह किया. बाद में डीएओ द्वारा डुमरावां का चयन कर बीज वितरण शुरू कराया गया.
वन्य प्राणी अधिनियम के तहत कार्रवाई
नीलगाय जंगली जीव है. इसलिए इन्हें छूने एवं मारने पर वन्य प्राणी अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाती है. इसके कारण नीलगायों को किसान मारने से डरते हैं. दूसरी परेशानी यह कि नीलगायों द्वारा की गयी फसल क्षति का मुआवजा नहीं मिलता है. डीएओ महेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं कि नीलगायों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने पर मुआवजा देने का कोई प्रावधान उनके विभाग में नहीं है. इतना जरूर है कि किसानों के फसलों को बचाने के लिए उपाय जरूर बताये जाते हैं. नीलगायों के प्रबंधन की जवाबदेही वन विभाग की है.