महागठबंधन सरकार के लिए दलित मैनेजमेंट जरूरी हो गया है
नामों पर विचार शुरू हो गया है।
बिहार | नीतीश कुमार सरकार को अनुसूचित जाति-जनजाति मंत्री संतोष सुमन उर्फ संतोष मांझी के इस्तीफे के बाद अब महागठबंधन सरकार के लिए दलित मैनेजमेंट जरूरी हो गया है। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार अब क्राइसिस मैनेजमेंट के तहत किसी दलित टाइटल वाले को मंत्री बनाकर ही मैसेज देना विकल्प है। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि चिराग पासवान पहले से नीतीश कुमार के खिलाफ हैं और मुकेश सहनी को भी महागठबंधन से बहुत वास्ता रखते नहीं देखा जा रहा है। हिन्दुस्तानी आवामी मोर्चा के इकलौते मंत्री के कैबिनेट से इस्तीफे के साथ ही यह मजबूरी दिखने लगी है। मंगलवार को जीतन राम मांझी के बेटे के इस्तीफे के साथ महागठबंधन में ऐसे नामों पर विचार शुरू हो गया है।
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड (जदयू) को छोड़कर जीतन राम मांझी ने हिन्दुस्तानी आवामी मोर्चा (हम) पार्टी बनाई थी। मांझी भले ही जदयू से अलग हुए, लेकिन पार्टी ने उन्हें अपने ही कोटे का माना। ठीक उसी तरह जैसे विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को भाजपा ने अपने कोटे का माना। चुनाव के दौरान सीटों के बंटवारे में भी यही फॉर्मूला रहा। फिर मंत्रिमंडल गठन में भी। यहां तक कि एमएलसी की जिस सीट पर मई 2024 तक संतोष सुमन उर्फ संतोष मांझी कायम रहेंगे, वह भी जदयू कोटे से है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संतोष मांझी को अक्सर साथ भी रखते थे, खासकर दलित प्रभाव वाले क्षेत्रों में जाते समय। ऐसे में अब संतोष मांझी के मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद जदयू को अपने कोटे से ही एक मंत्री रखना होगा और वह भी दलित। संतोष मांझी का मंत्रीपद भी जदयू के कोटे का ही था, इसलिए उनकी जगह किसी को मंत्री बनाने में तकनीकी रूप से राजद के साथ कोई मतभेद भी होना संभव नहीं है।
23 जून को बिहार में विपक्षी दलों की बैठक है। इस बैठक में कांग्रेस को बुलाने के लिए जदयू को वह भी करना पड़ा, जो पार्टी में कोई नहीं चाहता था। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद को आगे किए बगैर यह संभव नहीं हो सका। ऐसे में कांग्रेस अगर यह चाहे कि उसकी दो और मंत्री पदों की मांग इसी झटके में पूरी हो जाए तो आश्चर्य नहीं। महागठबंधन सरकार बनते समय कांग्रेस में इसके लिए बवाल नहीं था, लेकिन अखिलेश प्रसाद सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष बनते के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दो और मंत्री पद के लिए मना लिया था। उस समय राजद के युवराज तेजस्वी यादव ने इस संभावना से इनकार किया तो मुख्यमंत्री ने भी कह दिया कि जदयू का इससे कोई वास्ता नहीं है, राजद-कांग्रेस मिलकर तय कर ले। अब राजद की ही मध्यस्थता के बाद पटना में विपक्षी दलों की बैठक के दौरान कांग्रेस से राहुल गांधी और अध्यक्ष मल्लिार्जुन खरगे के आने की पुष्टि हो रही है, इसलिए पार्टी अपनी उस मांग को पूरा कराने का प्रयास कर सकती है। इस्तीफा स्वीकार कर मंत्रिमंडल विस्तार करने को नीतीश राजी हुए तो कांग्रेस से दो नए मंत्री बन सकते हैं। जदयू से एक दलित टाइटल का मंत्री बनाया जा सकता है। और, इसी क्रम में राजद अपने इस्तीफा देने वाले दो मंत्रियों की कुर्सी पर भी जातीय समीकरण के हिसाब से दो नेताओं को जगह दे सकता है।