गया के लोकसभा व विधानसभा चुनाव का लेखा जोखा, NDA Vs INDIA? क्या कहते हैं आंकड़े
2024 लोकसभा चुनाव को लेकर हर पार्टी ने अपनी कमर कस ली है, जहां भाजपा को हराने के लिए देश की तमाम पार्टियों ने एकजुट होकर INDIA गठबंधन बनाया है तो वहीं भाजपा भी हैट्रिक जीत के लिए जोर-शोर से तैयारी कर रही है. देश में सरकार बनाने को लेकर बिहार की भी अहम भूमिका रहती है. आज हम बिहार के गया जिले की बात करेंगे, जो पिछले 56 सालों से अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित है. बता दें कि एससी के लिए आरक्षित गया सीट पर भी सभी जातियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इस सीट पर पिछड़े, अति पिछड़े और अगड़ी जातियों का वोट किसी भी उम्मीदवार के जीत और हार में अहम रोल निभाता है.
क्या है गया लोकसभा सीट का जातिगत समीकरण
2024 लोकसभा चुनाव को लेकर कुछ महीने ही बचे हैं, सभी पार्टियों की नजर लोकसभा चुनाव और 2025 बिहार विधासभा चुनाव पर है. गया लोकसभा सीट के पिछले कुछ सालों के चुनाव नतीजे पर नजर डालें तो यहां महादलित उम्मीदवार का ही कब्जा है. बता दें कि पिछले 25 सालों से इस सीट पर मांझी समाज का दबदबा है. आंकड़ों की मानें तो गया लोकसभा में करीब मांझी जाति के ढाई लाख से ज्यादा लोग है. इसके अलावा यहां मुस्लिम आबादी करीब 2 लाख, राजपूत और भूमिहार वोटर्स करीब 2.5 लाख, यादवों की आबाद करीब 2.5 लाख और वैश्य वोटर 2 लाख के करीब है.
गया के अंदर कुल 10 विधानसभा सीटें
गुरुआ
शेरघाटी
इमामगंज (अनु.)
बाराचट्टी (अनु.)
बोधगया (अनु.)
गया शहर
टिकारी
बेलागंज
अतरी
वजीरगंज
10 सीट में से 6 सीटों पर एक ही परिवार का कब्जा
गया विधानसभा सीट की बात करें तो यह बहुत दिलचस्प है. दरअसल, यहां 10 में से 6 विधासभा सीट पर एक ही परिवार का दबदबा है, वह भी पिछले 20-30 सालों से. यहां से कभी किसी दूसरे उम्मीदवार को जनता ने मौका ही नहीं दिया. राजनीतिक पार्टियां भी इन उम्मीदवारों के अलावा किसी दूसरे चेहरे पर दाव खेलने का खतरा नहीं उठाना चाहती. यानि कि एक उम्मीदवार करीब 1 विधानसभा क्षेत्र पर 7 बार से विधायक हैं.
बता दें कि गोविंदाचार्य ने एक शोधपरक रिपोर्ट में स्वच्छ राजनीति को लेकर यह सिफारिश की थी कि किसी भी विधायक या सांसद को 10 साल से अधिक समय ततक पद पर नहीं रहना चाहिए. कुछ सालों के गैप के बाद भले ही वह सत्ता में वापस आ जाए, लेकिन स्वच्छ राजनीति के लिए ऐसा करना जनता के लिए लाभदायक होता है. इससे अकाउंटबिलिटी भी बढ़ेगी.
2019 और 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे
गया लोकसभा सीट पर अनुसूचित जातियों का कब्जा होने के बावजूद 2019 लोकसभा चुनाव में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हम पार्टी के सुप्रीमो जीतनराम मांझी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था. इतना ही नहीं 2014 लोकसभा चुनाव में भी मांझी को हार मिली थी और वे तीसरे नंबर पर थे. फिलहाल गया में जदयू के विजय कुमार मांझी सांसद है. पिछले चुनाव में यह जीत उन्होंने एनडीए में रहकर दर्ज की थी. वहीं, अब उनकी पार्टी महागठबंधन में शामिल हो चुकी है.
जानिए गया के 10 विधासभा सीट पर किसकी सरकार
1 - प्रेम कुमार - गया टाउन विधायक
(भारतीय जनता पार्टी)
2 - सुरेंद्र कुमार यादव बेलागंज विधानसभा
(राष्ट्रीय जनता दल)
3 - विनय कुमार यादव गुरुआ विधानसभा
(राष्ट्रीय जनता दल)
4 - कुमार सर्वजीत - बोधगया विधानसभा
(राष्ट्रीय जनता दल)
5 - रंजीत यादव - अतरी विधानसभा
(राष्ट्रीय जनता दल)
6 - जीतन राम मांझी - इमामगंज विधानसभा
(हम पार्टी)
7 - मंजू अग्रवाल - शेरघाटी विधानसभा
(राष्ट्रीय जनता दल)
8 - वीरेंद्र सिंह वजीरगंज - विधानसभा
(भारतीय जनता पार्टी)
9 - अनिल सिंह - टेकारी विधानसभा
(हम पार्टी)
10 - ज्योति मांझी -बाराचट्टी विधानसभा-
(हम पार्टी)
25 सालों से मांझियों का गया सीट पर दबदबा
पिछले 25 सालों से गया लोकसभा सीट पर मांझी समाज का कब्जा है. 1999 में पहली बार रामजी मांझी बीजेपी के टिकट से यहां जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2004 में राजेश मांझी ने आरजेडी के टिकट से विजय हासिल किया. 2009 और 2014 में हरि मांझी ने गया सीट पर जीत हासिल की. जिसके बाद 2019 में विजय मांझी ने सीट पर कब्जा किया. आगामी चुनाव की बात करें तो एनडीए और महागठबंधन की सरकार महादलित उम्मीदवार को ही यहां से उतारेगी.