मधुबनी न्यूज़: जयनगर रेलखंड के पंडौल स्टेशन से लोहट चीनी मिल गयी रेल लाइन को काटकर बेचे जाने की खबर से अशोक पेपर मिल गोलीकांड की याद ताजा हो गयी है. दरभंगा-समस्तीपुर रेलखंड के थलवारा स्टेशन से भी अशोक पेपर मिल परिसर में छोटी लाइन गयी थी. इस बंद मिल को जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से नोभ्यू कैपिटल फिनांस लिमिटेड (एनसीएफएल) को सौंपा गया तो इसके निदेशक ने मिल का स्क्रैप बेचना शुरू कर दिया.
इसकी शिकायत मजदूरों ने उद्योग विभाग एवं सुप्रीम कोर्ट से की थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ. बाद में मिल मालिक ने इसकी पटरियों को उखाड़कर बेचना शुरू किया. इस पर मजदूरों ने हंगामा शुरू कर दिया. लेकिन फिर उस समय भी सरकार एवं जिला प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया. मजबूरन आक्रोशित मजदूरों ने 10 नवम्बर 2012 को ट्रक पर लदी रेल पटरियों को बाहर जाने से रोक दिया. प्रशासन को खबर गयी, लेकिन उल्टे अशोक पेपर मिल थाने की पुलिस एवं मिल के निजी सुरक्षा गार्डों ने अंधाधुंध गोली चला दी. नतीजतन बलहा गांव निवासी मिल के मजदूर बासो साह के पुत्र सुशील साह की मौके पर ही मौत हो गयी. लेकिन तब तक उस दिन चार ट्रक रेल परियों को मिल से बाहर भेजा जा चुका था. पांचवें ट्रक को मजदूरों ने पकड़ लिया. हालांकि उस ट्रक पर इलेक्ट्रिकल गुड्स होने की बात लिखी गयी थी.
इस घटना के बाद भारी बवाल हुआ. सुशील की हत्या के बाद भी पुलिस हत्या का मामला दर्ज नहीं कर रही थी. लाश के पोस्टमॉर्टम के बाद अशोक पेपर मिल कामगार यूनियन के अध्यक्ष सह पूर्व विधायक स्व. उमाधर प्रसाद सिंह व मजदूर पंचायत यूनियन के अध्यक्ष डॉ. शाहनवाज अहमद कैफी समेत जिले के लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेता मिल परिसर में जुट गए. यूनियन ने लाश जलाने से इनकार कर दिया. उधर, पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर रही थी. बाद में पहले पुलिस ने अपनी ओर से दो प्राथमिकी मजदूरों एवं उनके नेताओं पर दर्ज की. बाद में हो-हुज्जत के बाद सुशील साह की हत्या की प्राथमिकी दर्ज की गयी. इसमें पुलिस समेत मिल के मालिक धरम गोधा, उनके सहयोगी एवं निजी सुरक्षा गार्डों को आरोपित किया गया.
उसके बाद मिल परिसर में ही सुशील की लाश की अंत्येष्टि की गयी. मिल मालिक को जेल जाना पड़ा. बाद में मामले को आर्थिक अपराध इकाई को सौंपा गया. नतीजा सिफर है. अभी भी उक्त मामला दरभंगा व्यवहार न्यायालय में लंबित है. इधर, सुशील की विधवा को उसके बूढ़े सास-ससुर ने खुद हाथ पीले कर उसे विदा कर दिया. आठ वर्षों के बाद मानवाधिकार आयोग के आदेश के बाद मृतक के परिजनों को लगभग एक लाख की नकदी देकर सांत्वना का लॉलीपॉप थमा दिया गया. बहरहाल उक्त घटना के बाद भी मिल प्रबंधन ने कई बार स्क्रैप को बेचा लेकिन मिल को नहीं चलाया. आज भी अशोक पेपर मिल प्रबंधन के पास मजदूरों का बकाया है और मिल बंद पड़ी है.