भारत की नागरिकता साबित करने की लड़ाई में हसीना भानु और उनके बीमार पति को शारीरिक और मानसिक रूप से पहुंचा नुकसान
हसीना भानु और उनके बीमार पति को शारीरिक और मानसिक रूप से पहुंचा नुकसान
भारत की नागरिकता साबित (prove citizenship) करने की लड़ाई ने 55 साल की हसीना भानु (Hasina Bhanu) और उनके बीमार पति को शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाया हो, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि गुवाहाटी हाई कोर्ट (Guwahati High Court) सुनिश्चित करेगा कि उन्हें पर्याप्त मुआवजा दिया जाए। हाई कोर्ट ने महिला को असम की तेजपुर सेंट्रल जेल (Tezpur Central Jail) से रिहा करने का आदेश दिया था।
अपनी रिहाई के एक दिन बाद दरांग जिले के श्यामपुर गांव में अपने घर पहुंची भानु ने शुक्रवार को कहा कि उनका जीवन तबाह हो गया है क्योंकि उनके पति को कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए अपनी खेती वाली जमीन बेचनी पड़ी ताकि यह साबित कर सकें कि वह विदेशी नहीं हैं, बल्कि वास्तविक भारतीय नागरिक (Indian citizens) हैं।
भानू ने फोन पर पीटीआई-भाषा से कहा, ''मेरे साथ घोर अन्याय हुआ...मेरा स्वाभिमान चकनाचूर हो गया, हमें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और हम आर्थिक रूप से मुश्किलों में फंस गए हैं। मेरी रिहाई सुनिश्चित करने के लिए मैं गुवाहाटी उच्च न्यायालय और अपने वकील जाकिर हुसैन का आभार जताती हूं। मुझे उम्मीद है कि अदालत अधिकारियों को हमें पर्याप्त मुआवजा देने का निर्देश देगी, नहीं तो हम बर्बाद हो जाएंगे।''
हसीना भानु उर्फ हसना भानु को 2016 में 'भारतीय' और 2021 में 'विदेशी' घोषित किया गया था, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया और अक्टूबर 2021 में तेजपुर जेल में एक नजरबंदी शिविर में रखा गया था। हालांकि, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने एक न्यायाधिकरण के पूर्व के फैसले को इस सप्ताह पलट दिया। दरांग विदेशी न्यायाधिकरण ने अगस्त 2016 में भानु की भारतीय नागरिकता को बरकरार रखा था, लेकिन उसी न्यायाधिकरण ने उन्हें तब विदेशी घोषित कर दिया, जब असम पुलिस ने कहा कि वह एक संदिग्ध बांग्लादेशी थीं।