असम सराकर ने 5 मुस्लिम समुदायों को दिया स्वदेशी का दर्जा

Update: 2022-07-07 06:38 GMT

असम न्यूज़: बांग्लादेशी मुसलमानों को देश से बाहर खदेड़ने की मांग के बीच असम सराकर ने राज्य के 5 मुस्लिम समुदाय गोरिया, मोरिया, जुला, देशी और सैयद को स्वदेशी मुसलमान का दर्जी देने का निर्णय लिया है. ये सभी असम के मूल निवासी हैं और असमिया बोलते हैं. असम की हिमंत बिस्व सरमा सरकार इन सभी समुदायों को जनजाति का दर्जा देगी. असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्व सरमा ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है. असम सरकार के एक विशेष पहल के तहत इनके स्वास्थ्य, शिक्षा का इंतजाम किया जाएगा. पिछले साल असम सरकार ने असम के मूल मुस्लिम निवासियों के साथ बैठक के बाद एक आयोग का गठन किया था. इसके बाद पांच समुदायों को असम में स्वदेशी मुसलमानों का दर्जा देने का निर्णय लिया गया है. सरकार के इस फैसले से राज्य के लगभग 40 लाख असमिया भाषी मुसलमानों को मान्यता मिल जाए.

क्या बांग्लादेशी मुसलमान बाहर होंगे: असम में मुसलमानों के दो संप्रदाय हैं. एक है खिलोंजिया मुस्लिम और दूसरा है मियां मुस्लिम. दरअसल, जिन मुसलमान परिवारों की जड़ें बांग्लादेश से जुड़ी हुई हैं लेकिन वे अवैध तरीके से भारत में घुसपैठ कर गए, उन्हें मियां मुस्लिम कहा जाता है. वहीं जिनकी जड़ें भारत से हैं उन्हें खिलोंजिया का दर्जा दिया जाता है. आमतौर पर खिलोंजिया मुसलमानों की धड़ों को ही यह दर्जा दिया गया है. अब असम सरकार के इस फैसले से भारतीय मुसलमानों को चिह्नित करने का काम तेज किया जाएगा. इससे यह भी माना जाता है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालने का काम शुरू हो जाएगा.

बांग्लादेश से कैसे घुसे भारत में: दरअसल, 1970 के दशक में पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में पाकिस्तानी सैनिकों का अत्याचार चरम पर पहुंच गया. बांग्लादेशी मुसलमानों पर तरह-तरह के जुल्म किए जाते थे. ये लोग अंततः भारत के पश्चिम बंगाल और असम में घुस आए. ये लोग बांग्ला बोलते हैं. पहले भारत सरकार को लगा कि युद्ध खत्म होने के बाद ये लोग बांग्लादेश चले जाएंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं. असम में धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ने लगी जिसके कारण मूल असमिया मुसलमान कम पड़ने लगे.

बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दे पर राजनीति: बीजेपी की शुरुआत से बांग्लादेशी मुसलमानों के प्रति रवैया स्पष्ट रहा है. बीजेपी बांग्लादेशी मुसलमान को बाहर करना चाहती है. एनआरसी कानून को इसी मकसद से लाया गया है. लेकिन यह मामला शुरू से राजनीति के केंद्र में रहा है. इसके खिलाफ असम में आंदोलन भी हो चुके हैं और बहुत सारे लोगों की जान भी जा चुकी है. वर्तमान में माना जाता है कि राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या 25 से 30 फीसदी हो गई. इसलिए उनका कई विधानसभा सीटों पर वर्चस्व हो गया जिसके कारण यहां की राजनीति के केंद्र में होते हैं. असम सरकार का कहना है कि बहुत सारे घुसपैठियों ने गलत तरीके से दस्तावेज भी बनवा लिए हैं. ऐसे में इन्हें मूल भारतीय मुसलमानों से अलग करना जरूरी हो गया है.

मियां मुसलमानों के प्रति सीएम का नजरिया सख्त: असम में मियां मुसलमानों के प्रति सीएम हिमंत विस्व सरमा का नजरिया हमेशा से सख्त रहा है. हिमंत बिस्वा सरमा जब असम सरकार में गृह मंत्री थे तब भी उन्होंने कहा था कि मियां मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देते हैं. उन्होंने साफ कह दिया था कि जहां मियां मुसलमान निर्णायक स्थिति में है वहां भाजपा को सफलता हाथ नहीं लगेगी.

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