चाहे सी-सेक्‍शन हो या नॉर्मल डिलीवरी के बाद जरुर बांधे पेट, आयुर्वेद में भी है बेली बाइंडिंग का जिक्र

क‍िसी प्रकार की तकलीफ होने की गुजांइश भी कम रहती है।

Update: 2022-08-04 09:12 GMT

प्रेगनेंसी से लेकर डिलीवरी तक महिलाओं के शरीर में कई बदलाव आता हैं। डिलीवरी के बाद महिलाओं के शरीर को खास देखभाल की जरूरत होती है। मां बनने के बाद महिलाओं की बड़ी चिंताओं में से एक होती है वो है पेट को घटाना। पुराने जमाने में महिलाओं को डिलीवरी के बाद पेट को कसकर बांध दिया जाता था जिसे आजकल बेली बाइंडिंग और बेली रेप भी कहते है। इससे प्रसूता को आराम मिलने के साथ ही कुछ दिनों में पेट पहले की तरह शेप में आ जाता था।


सी-सेक्‍शन डिलीवरी के बाद डॉक्‍टर अक्‍सर महिलाओं को बेली बेल्‍ट पहनने की सलाह देते है ताक‍ि ऑपरेशन के बाद पेट लटक न जाएं। लेक‍िन आज भी कई जगह जहां दाई महिलाओं की डिलीवरी करवाती है वह महिला को वो पेट को क‍िसी सूती कपड़े या कॉटन साड़ी से बांधती हैं ताक‍ि आगे चलकर उनको आराम मिल सकें। आइए जानते हैं बेली बाइंडिंग के फायदे।

आयुर्वेद में भी है जिक्र
जिस महिला ने बच्‍चें को अभी-अभी जन्‍म दिया है उसे आयुर्वेद में सूथिका के रूप में जाना जाता है और आयुर्वेद में इस नई मां की देखभाल के ल‍िए विशेष सूथिका परिचार्य का वर्णन है। जब सूथिका परिचार्य की बात आती है तो प्रसवोत्तर पेट को बांधना बहुत महत्वपूर्ण होता है।

एब्डोमिनल बाइंडिंग या बेली बाइंडिंग ए‍क ऐसी तकनीक है जिसमें प्रतिदिन कम से कम 5 से 6 घंटे स्नान के बाद एक नई मां के पेट को एक लंबे सूती कपड़े या बेल्ट से कसकर बांधा जाता है। यह पीठ और पेट को सपोर्ट देता है, गर्भाशय गुहा में वात को कम करता है और प्रसव के बाद पीठ दर्द और पेट को फैलने से रोकता है। यह स्तनपान के लिए एक अच्छी मुद्रा बनाए रखने में भी मदद करता है।


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बेली बाइडिंग के फायदे
- सामान्य या सी-सेक्शन डिलीवरी के बाद पेट को कसकर बांधने से पेट को कुछ हद तक फ्लेट करने में मदद मिलती है और खतरनाक पेट की चर्बी और मोटापे से बचा जा सकता है। खासकर जो अक्सर सर्जिकल निशान के आसपास विकसित होती है।

- बेली बाइडिंग से आमतौर पर अंगों को पेट की शेप के साथ अपनी सही स्थिति में लौटने में मदद करता है।

- यह अभ्यास नई माताओं को गर्भावस्था से पहले के आकार में तेजी से लौटने में मदद करता है।

- बेली बाइंडिंग एब्डोमिनल मसल्‍स (पेट की मांसपेशियों) को मजबूत करता है जो गर्भावस्था के दौरान खिंच जाती है अलग हो जाती हैं।

- यह ढीले पड़ गए लिंगामेंट्स को भी स्थिर करता है और पीठ के निचले हिस्से में दर्द को रोकने में मदद करता है। इसके अलावा ये मां को अपने बच्चे को अधिक समय तक पकड़कर रखने में मदद करता है।

डिलीवरी के क‍ितने समय के बाद करनी चाह‍िए बेली बाइडिंग
पहले जहां दाई सूती साड़ी की मदद से महिलाओं के पेट को कसकर बांधा करती थी। अब साड़ी की जगह बेल्ट ने ले ली है, अब तो साड़ी से बनी रेडीमेड बेल्ट भी मिलने लगी हैं और महिलाएं साड़ी की जगह उन्हें पहनने लगी हैं। नॉर्मल डिलीवरी के चार दिन बाद और सीजेरियन डिलीवरी के आठ दिन बाद महिलाएं पेट पर साड़ी या बेल्ट बांध सकती हैं, इससे उन्हें काफी सपोर्ट और आराम मिलता है। डिलीवरी के बाद दो-तीन महीने तक महिलाओं को बेल्ट पहनने की सलाह दी जाती है।


ट्रेडिशनल तरीके से बेली बाइंडिंग का तरीका
चरण 1: कम से कम 5-6 मीटर सूती कपड़ा लें।

चरण 2: पेट के निचले हिस्से से ऊपरी पेट तक धीरे से लपेटना शुरू करें। ध्‍यान दें क‍ि लगभग 4-5 बार कपड़ा लपेटने में आएं।

चरण 3: लपेटने के बाद सूती कपड़े को पेट के दाहिनी ओर बांध दें। ध्‍यान रहें क‍ि कपड़ा बहुत कस‍कर बांधना हैं।

अपने आप बिल्‍कुल इसे करने से पहले क‍िसी प्रशिक्षित दाई से परामर्श जरुर लें। सही विधि और प्रक्रिया समझकर ही आप ज्‍यादा से फायदा पा सकते हैं। और क‍िसी प्रकार की तकलीफ होने की गुजांइश भी कम रहती है।



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