वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गैनाइज़ेशन के आंकड़ों की मानें तो दुनिया में हर 40 सेकेंड में एक मृत्यु सूसाइड यानी आत्महत्या के चलते होती है. भारत की बात करें तो नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले 10 वर्षों में देशभर में सूसाइड के मामले 17.3 प्रतिशत तक बढ़े हैं. हर वर्ष 10 सितंबर को वर्ल्ड सूसाइड प्रिवेंशन डे मनाया जाता है. ताकि आत्महत्या के कारणों को समझा जा सके और लोगों को आत्महत्या जैसा जानलेवा क़दम उठाने से रोका जा सके. आइए हम भी इस वैश्विक समस्या के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करते हैं.
लोग क्यों आत्महत्या करते हैं?
अपना जीवन समाप्त कर लेने का ख़्याल आने के कई कारण हो सकते हैं. जैसे-
* आमतौर पर जिन लोगों में ख़ुद को समाप्त करने की भावना आती है, उनका सोचना होता है कि ज़िंदा रहने का कोई मतलब नहीं है.
* वे नकारात्मक विचारों से भरे होते हैं. उन्हें जीवन दुख से भरा लगता है. उनका मानना होता है कि इस दर्द से मुक्ति का आत्महत्या के अलावा कोई और रास्ता नहीं है.
* वे ख़ुद को बेकार मानते हैं. धीरे-धीरे उन्हें लगने लगता है कि उनके आसपास के लोग उन्हें पसंद नहीं करते. कोई उनसे प्यार नहीं करता. वे महत्वहीन हैं. लोग उनके बिना बेहतर रह सकते हैं. वे अपनी और अपनों की ज़िंदगी की बेहतरी का रास्ता अपने जीवन की समाप्ति में ही देखते हैं.
* कभी-कभी लोग क्रोध, निराशा और शर्मिंदगी से भरकर ऐसा क़दम उठाते हैं. चूंकि उनकी मनोस्थिति स्थिर नहीं होती अत: ये विचार उनमें आते-जाते रहते हैं. कभी-कभी वे बिल्कुल अच्छे से बिहेव करने लगते हैं और कभी-कभी फिर से अवसाद में चले जाते हैं.
* एक बड़ी आबादी कभी न कभी सूसाइड करने के बारे में सोच चुकी होती है. कुछ लोगों में आत्महत्या करने के विचार बड़े तीव्र होते हैं. और लंबे समय तक बने रहते है, तो कुछ में ऐसे विचार क्षणिक होते हैं. कुछ समय बाद उन्हें हैरानी होती है कि आख़िर वे ऐसा कैसे सोच सकते हैं.
* पैनिक अटैक और दूसरों पर ख़ुद को बोझ समझने की भावना भी यह क़दम उठाने को उकसाती है.
* भारत में अभी भी प्रेम संबंध आत्महत्या करने का एक बड़ा कारण हैं. आधुनिकता का दम भरनेवाला समाज अभी भी प्रेम और प्रेमी जोड़ों को लेकर उतना ओपनअप नहीं हुआ है. हालांकि पिछले दशक की तुलना में अब इस तरह के मामलों में उल्लेखनीय कमी देेेखने मिली है.
क्या इसके कुछ बाहरी लक्षण भी होते हैं?
हालांकि आप किसी को देखकर तो यह नहीं बता सकते कि इस व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है इसलिए आमतौर पर सूसाइडल प्रवृत्तिवालों की पहचान नहीं कर सकते. यहां कुछ बाहरी लक्षण हैं, जो आत्महत्या करने की मनोस्थिति के बारे में थोड़ा-बहुत आइडिया दे देते हैं.
* जिन लोगों के मन में लगातार इस तरह के नकारात्मक विचार चलते रहते हैं उन्हें ठीक से नींद नहीं आती.
* उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है. वे अपने मनोभावों को व्यक्त करने में कन्फ़्यूज़ रहते हैं.
* उनकी खानपान की आदतों में अचानक बड़ा बदलाव देखने मिलता है. या तो वे बहुत कम खाते हैं या बहुत ज़्यादा, जिसके चलते उनका वज़न या तो एकदम से घट जाता है या उसमें अचानक बढ़ोतरी देखने मिलती है.
* आमतौर वे लोग अपने फ़िज़िकल अपियरेंस को लेकर उदासीन हो जाते हैं. उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वे कैसे दिख रहे हैं.
* और एक बात जो सूसाइडल प्रवृत्ति वालों में देखी जाती है वह यह कि वे लोगों से कटने लगते हैं.
* वे ख़ुद को नुक़सान पहुंचा सकते हैं. कई बार वे ख़ुद को छोटा-मोटा नुक़सान पहुंचाते भी हैं.
किन लोगों में होती है सूसाइडल प्रवृत्ति?
हालांकि यह बता पाना संभव नहीं है कि कौन-सा व्यक्ति किस बात को लेकर इतना बड़ा क़दम उठा सकता है. पर नीचे बताई गई परिस्थितियां सूसाइडल प्रवृत्ति को उकसाने का काम करती हैं:
* जिन लोगों को जीवन में असफलता का सामना करना पड़ता है वे दुनिया का सामना करने से डरते हैं और आत्महत्या की ओर क़दम बढ़ाते हैं.
* जिन लोगों के परिवार या दोस्तों में किसी ने आत्महत्या का रास्ता अपनाया होता है वे भी यह राह चुनने को प्रेरित होते हैं.
* जो लोग असल ज़िंदगी में लोगों से मिलने-जुलने के बजाय आभासी दुनिया यानी वर्चुअल वर्ल्ड में अधिक समय बिताते हैं, वे भी इस मानसिकता से गुज़रते हैं. ब्लू व्हेल गेम के प्रभाव में आकर सूसाइड करनेवाली की संख्या को देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आभासी दुनिया का असर कितना ख़तरनाक हो सकता है.
* जो लोग समाज द्वारा ठुकरा दिए गए होते हैं, उनमें भी ख़ुद को ख़त्म करने की प्रवृत्ति होती है. यही कारण है कि एलजीबीटी समुदाय में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बाक़ियों से तुलनात्मक रूप से अधिक होती है.
* अकेलेपन और अवसाद का सामना कर रहे लोग भी इसके आसान शिकार हो जाते हैं.
* जिन लोगों को कोई असाध्य बीमारी हो जाती है, वे भी निराशा के दौर में यह क़दम उठा लेते हैं. मुंबई पुलिस के जानेमाने नाम हिमांशु रॉय द्वारा आत्महत्या करना इसका उदाहरण है.
* शराब और ड्रग्स जैसे नशे के आदी लोग भी आत्महत्या करने की दृष्टि से काफ़ी संवेदनशील होते हैं.
* कभी-कभी आर्थिक और भावनात्मक क्षति भी लोगों को इस मुक़ाम तक पहुंचा देती है.
क्या करें यदि आपके मन में ऐसे विचार आते हों?
* सबसे पहले आप एक ब्रेक लें और अपनी ज़िंदगी, अपने चुनावों का आकलन करें. जैसा कि होता है हमारी ज़्यादातर समस्याएं अस्त-व्यस्त ज़िंदगी और ग़लत जीवनशैली के चलते पैदा होती हैं. आप भी देखें कि कहीं आपकी ज़िंदगी भी इस तरह के भंवर में तो नहीं फंसी है. यदि ऐसा है तो अपनी लाइफ़स्टाल में बदलाव लाएं. ख़ुद पर ध्यान देना शुरू करें. खानपान को संतुलित करें. नियमित रूप से कुछ समय व्यायाम या योग करते हुए बिताएं.
* नकारात्मक सोच को बाहर का रास्ता दिखाएं. उन लोगों की पहचान करें, जिनसे मिलकर, जिनसे बात कर आप नेगेटिव फ़ील करने लगते हैं. ऐसे लोगों को अपनी ज़िंदगी से निकाल दें. उन लोगों से दोस्ती करें, जो आपको हंसाते हों. आपको अच्छा महसूस कराते हों. आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हों.
* अपने शौक़ की ओर ध्यान देना शुरू करें. सोचिए आप बचपन में क्या बनना चाहते थे. अब भी उस ओर क़दम बढ़ाने के लिए देर नहीं हुई है.
* दुखी कर देनेवाली फ़िल्में न देखें और न ही दुखद अंत वाली कहानियां, नॉवेल पढ़ें. आप हल्के-फुल्के गाने सुनकर मूड को फ्रेश कर सकते हैं.
* यदि आप नकारात्मक भावना से भरा हुआ महसूस कर रहे हों तो उन दोस्तों से बात करें, जिनसे बातकर आपको अच्छा लगता है. जिनके सामने अपने दिल की सभी बातें बयां कर सकते हों. उन्हें बताएं कि आपको ऐसा क्यों लगता है. वे आपको चीज़ों को देखने की नई दृष्टि दे सकते हैं. यदि आप किसी परिचित से अपने इन मनोभावों को व्यक्त करने में झिझक रहे हों तो किसी मनोचिकित्सक से मिलें.
* सबसे अहम् बात अकेले तो भूलकर भी न रहें. परिवार और दोस्तों के संग रहें. उनके संग यात्रा प्लैन कर सकते हैं. नई जगह पर जाने से आप तरोताज़ा महसूस करेंगे.
* सकारात्मक कहानियां और कोट्स पढ़ें. याद रखें, ज़िंदगी से ज़्यादा महत्वपूर्ण कुछ और नहीं होता.