आजकल के दौर में बीमारियां बहुत बढ़ गई हैं और लगातार युवाओं को अपनी चपेट में ले रही हैं। आए दिन नए वायरस और संक्रमण सामने आ रहे हैं और जानलेवा साबित हो रहे है। हांलाकि कुछ रोग जल्दी ठीक हो जाते हैं और कुछ समय लेते हैं। वहीँ, कई बीमारियां ऐसी होती है जिनके लक्षण शुरुआती दौर में समझ नहीं आते और जब तक पता चलते हैं तब तक बीमारी एडवांस स्टेज में पहुंच चुकी होती है। इनमें कई ऐसी बीमारियां हैं जिसमें अतिरिक्त अटेंशन और देखभाल की ज़रूरत पड़ती है जिन्हें साइलेंट किलर माना जाता है। ये बीमारियां आपके शरीर में घुसकर इसे खोंखला करते हुए आपको मौत की तरफ धकेल रहे हैं। आइये जानते हैं ऐसी साइलेंट किलर बीमारियों के बारे में...
डायबिटीज
डायबिटीज को साइलेंट किलर के रूप में भी जाना जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि इसके कभी कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। ज्यादातर मामलों में, अस्पष्ट लक्षणों में बहुत ज्यादा प्यास, बार-बार यूरिन, और चिड़चिड़ापन के कारण इसका समय पर निदान भी नहीं होता है। इससे बचाव के लिए सभी को सचेत रहने की जरूरत है। इसके लिए अपनी दिनचर्या को सुधारने की आवश्यकता भी है। रोजाना एक्सरसाइज, खाने की गलत आदत को सुधारने के अलावा अगर कई तरह की गलत आदतों का त्याग दिया जाएं तो इससे आप बच पाएंगी।
हाई कोलेस्ट्रॉल
हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर भी कहा जाता है, क्योंकि यह रोगियों में तब तक कोई लक्षण पैदा नहीं करता है जब तक कि इसका लेवल बहुत ज्यादा नहीं हो जाता। हाई कोलेस्ट्रॉल तब होता है जब खून में एलडीएल 'खराब' कोलेस्ट्रॉल नामक वसायुक्त पदार्थ का अत्यधिक निर्माण होता है। यह वसायुक्त, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, जहरीली आदतें जैसे शराब का सेवन और धूम्रपान और व्यायाम की कमी के कारण होता है।
ऑस्टियोपोरोसिस
ऑस्टियोपोरोसिस एक हड्डी से जुड़ी बीमारी है, जिसमें प्रभावित व्यक्ति अक्सर अपनी स्थिति से अनजान होता है, क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण या संकेत नहीं होते। जब तक उन्हें फ्रैक्चर नहीं होता, तब तक इस बीमारी का पता नहीं चलता। इसलिए इस बीमारी को भी साइलेंट किलर कहा जाता है। इस बीमारी में न सिर्फ हड्डियां खोकली हो जाती है, बल्कि यह ओरल हेल्थ को भी प्रभावित करता है। हड्डियों के किसी भी प्रकार के रोगों को रोकने के लिए कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थ खाना आवश्यक है। साथ ही चलना, टहलना, सीढ़ी चढ़ना, वेट ट्रेनिंग आदि जैसे वर्कआउट भी करना चाहिए। रेगुलर चेकअप भी कराना ज़रूरी है।
फैटी लीवर डिजीज
फैटी लीवर रोग दो प्रकार के हो सकते हैं: नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर डिजीज और अल्कोहलिक फैटी लीवर डिजीज, जिसे अल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस भी कहा जाता है। नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर डिजीज एक प्रकार का फैटी लिवर है जो शराब के सेवन से संबंधित नहीं है, जबकि अल्कोहलिक फैटी लीवर डिजीज भारी मात्रा में शराब के सेवन के कारण होता है। फैटी लिवर की बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है, यही वजह है कि यह लक्षणों के रूप में खुद को प्रकट नहीं करती है। यह एक साइलेंट किलर है, जिसमें लोग कोई लक्षण महसूस नहीं होते हैं।
हाइपरटेंशन
हाइपरटेंशन, इसे हाई ब्लड प्रेशर भी कहा जाता है। ब्लड प्रेशर होता क्या है? पहले इसे समझ लेते हैं। हार्ट का काम बॉडी के विभिन्न आर्गन तक ब्लड पहुंचाने के लिए पंप करता है। एक निश्चित समय में ब्लड बॉडी के हर आर्गन से गुजर रहा होता है। लेकिन तनाव व अन्य कारण से हार्ट दबाव मानने लगता है और ब्लड पंप करने की गति को बढ़ा देता है। इसे ही हाई ब्लड प्रेशर होना कहा जाता है। नीचे वाला ब्लड प्रेशर 80 MMHG और उपर वाला 120 MMHG होना चाहिए। लेकिन कई बार मरीजों का ब्लड प्रेशर 180 से 200 MMHG तक चला जाता है। यह हाइ ब्लड प्रेशर यानि हाइपरटेंशन की स्थिति है। यह कंडीशन अलार्मिंग होती है। विशेष बात यह है कि ब्लड प्रशेर धीरे धीरे हाई होता है और इसके लक्षणों की जानकारी नहीं हो पाती है। इसलिए इस बीमारी को साइलेंट किलर कहा जाता है। इससे ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट अटैक आने का बहुत अधिक खतरा बढ़ जाता है।
सर्वाइकल कैंसर
नोएडा स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च द्वारा जारी किए गए आंकड़ों ने महिलाओं में बढ़ते कैंसर की समस्या पर कुछ प्रकाश डाला, क्योंकि अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो एक महामारी में बदलने की धमकी देता है। भारत में हर 8 मिनट में एक महिला की सर्वाइकल कैंसर से मौत हो जाती है। भारत में सर्वाइकल और ब्रेस्ट कैंसर की दर दुनिया में सबसे ज्यादा थी। रिपोर्ट के अनुसार, 2,000 महिलाओं में कैंसर का पता चला है, लेकिन लेट स्टेज में 1,200 का निदान किया गया था। इसका मतलब यह है कि यह सर्वाइकल कैंसर के लिए पहले वर्ष जीवित रहने की दर को 3 से 17 गुना कम हो जाती है। इसे साइलेंट किलर कहा जाता है क्योंकि शुरुआती चरणों से इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते है। अगर समय पर इसका निदान नहीं किया जाए तो कैंसर ब्लैडर, लिवर, आंतों और फेफड़ों तक फैल सकता है।
स्लीप एपनिया
स्लीप एपनिया एक गंभीर नींद विकार है जहां लोग सोते समय जोर से सांस लेते हैं। इसमें व्यक्ति सोते समय ज़ोर से खर्राटे लेता है, दिन के दौरान अत्यधिक थकावट और भी कई लक्षण महसूस करता है। स्लीप एपनिया से जूझ रहे मरीज़ों की अचानक मृत्यु और सोते समय स्ट्रोक आ सकता है, इसलिए यह बीमारी भी साइलेंट किलर है। ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया का सबसे आम प्रकार है, जहां आपके वायुमार्ग में सोते वक्त बंद हो जाते हैं। स्लीप एपनिया के हल्के मामलों में लाइफस्टाइल में बदलाव से काफी फर्क पड़ सकता है। वज़न घटाना, अच्छे से खाना, स्मोकिंग छोड़ना और नाक से जुड़ी एलर्जी का सही ट्रीटमेंट करवाना फायदेमंद साबित हो सकता है।