पेरेंट्स द्वारा बोले गए ये 6 झूठ बच्चों के व्यवहार को करते है प्रभावित, बरतें सावधानी
बच्चों को अच्छा इंसान बनाने और उन्हें कई बातें समझाने के लिए पेरेंट्स हर संभव प्रयास करते हैं। लेकिन कई बार देखा जाता हैं कि पेरेंट्स इस दौरान कुछ झूठ बोल देते हैं जिसका असर बच्चों के व्यवहार को प्रभावित करता हैं। हांलाकि पेरेंट्स यह बच्चों को सुधारने के लिए करते हैं लेकिन इनका नकारात्मक असर पड़ता हैं। आज इस कड़ी में हम आपको पेरेंट्स के उन्हीं झूठ के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें बोलने में पेरेंट्स को सावधानी बरतनी चाहिए। तो आइये जानते हैं इनके बारे में।
तुम गॉड गिफ्ट हो
बच्चों के मन में जन्म से जुड़ी बातें जानने की बहुत जिज्ञासा होती है इसलिए वो पैरेंट्स से जानने की कोशिश करते हैं कि वो दुनिया में कब और कैसे आए। ऐसे में पैरेंट्स हिचकिचाहटवश उनकी बातों को टालने के लिए उनसे यूं ही कह देते हैं कि तुम गॉड गिफ्ट हो। भगवान ने ख़ुद तुम्हें हमारे पास भेजा है। ये ज़रूरी नहीं कि आप इस विषय में बच्चे से पूरा सच ही कहें, मगर आप गॉड गिफ्ट हो, बच्चों से ऐसा कहना भी सही नहीं है। साइकोलॉजिस्ट निमिषा के अनुसार, “इस तरह की ग़लत जानकारी बच्चों के व्यवहार को प्रभावित करती है। ख़ुद को गॉड गिफ्ट जानने के बाद वो ख़ुद को सबसे ख़ास महसूस करते हैं और बाकी बच्चों को कम आंकने लगते हैं।”
मैं बस पहुंच रही/रहा हूं
आप यहां कब तक पहुंचने वाले हैं? दूसरों के ऐसा पूछने पर भले आप ये झूठ कह दें कि मैं बस पहुंच रहा/रही हूं या पहुंचने वाला/वाली हूं, मगर जब कभी घर में मौजूद आपका बच्चा आपसे ये सवाल करे, तो उससे आपका इस तरह झूठ कहना बिल्कुल भी सही नहीं है। बच्चों को इस तरह का झूठा आश्वासन देना सही नहीं है। जब आप बच्चे से कोई वादा करते हैं, तो बच्चे उम्मीद लगाकर बैठ जाते हैं और जब आप उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते, तो वो निराश हो जाते हैं। आपके बार-बार ऐसा करने से बच्चे चिड़चिड़े या ग़ुस्सैल भी बन
जाते हैं।
मैं पढ़ने में बहुत अच्छा था/अच्छी थी
पढ़ाई में बच्चों की रुचि बढ़ाने के लिए आप उन्हें बेशक़ ये कह सकते हैं कि मैं पढ़ने में बहुत अच्छा था/अच्छी थी, मगर तब जब वाक़ई ये सच हो। इस तरह का झूठ कहना सही नहीं, जिसका सच कभी न कभी सामने आ ही जाए। हो सकता है, कभी आपके पैरेंट्स या फ्रेंड्स बच्चों के सामने आपकी पोल खोल दें या फिर बच्चों के हाथ ही आपका रिज़ल्ट आदि लग जाए। कहते हैं, झूठ तभी बोलना चाहिए, जब आपकी याददाश्त तेज़ हो, वरना पकड़े जाने पर मुसीबत में पड़ना स्वाभाविक है। अतः बच्चे से ऐसा झूठ न कहें जो पकड़ा जाए। अगर ऐसा हुआ तो बच्चे आपको झूठा समझेंगे।
मैं बचपन में बहुत बहादुर था/थी
जब बच्चे किसी चीज़ से डरते हैं, तो पैरेंट्स अक्सर उन्हें अपने बारे में ये कहते हैं कि जब मैं तुम्हारे जितना छोटा था/छोटी थी, तब बहुत बहादुर था/थी, किसी भी चीज़ से नहीं डरता था/डरती थी ताकि बच्चे हिम्मती बनें। फिर चाहे पैरेंट्स बचपन में बहादुर हों या न हों। आपका ये झूठ कुछ हद तक आपके बच्चे पर असर कर सकता है, लेकिन आपका बच्चा अगर थोड़ा भी साहसी है और आप उसे और बहादुर बनाने के लिए बार-बार इस तरह से परेशान करते रहे, तो हो सकता है, इससे आपके बच्चे का आत्मविश्वास कमज़ोर हो जाए।
मैं तुम्हारे लिए फलां चीज़ लाऊंगा/लाऊंगी
जब बच्चे पैरेंट्स के साथ कहीं चलने की ज़िद्द करते हैं, तो आमतौर पर पैरेंट्स उन्हें उनकी पसंद की चीज़ दिलाने का लालच देते हैं। कई बार अपनी बात मनवाने के लिए भी पैरेंट्स बच्चों से कहते हैं कि वो अगर उनकी बात मान जाएगा, तो वे उसके लिए फलां चीज़ लेकर आएंगे। बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए ऐसा करना ग़लत नहीं है, मगर उनसे झूठा वादा करना यानी उनकी मनपसंद चीज़ लाने को कहना और फिर न लाना, बच्चों के मन में पैरेंट्स के प्रति विश्वास कमज़ोर कर देता है। ऐसा करने पर बच्चा पैरेंट्स की किसी बात पर यक़ीन नहीं करेगा।
लंबे नाख़ून वाली औरत तुम्हें उठा ले जाएगी
बच्चों को कुछ ग़लत करने से रोकने के लिए तो कभी उन्हें डराने के लिए भी पैरेंट्स बच्चों से बड़ी आसानी से ये कह देते हैं कि तुमने अगर ऐसा किया या मेरी बात न मानी, तो लंबे नाख़ून वाली औरत तुम्हें उठा ले जाएगी। इसी तरह वो बच्चों को और भी कई काल्पनिक नाम या एहसास से डराने की कोशिश करते हैं। अगर बच्चों को कुछ बुरा करने से रोकना है, तो उन्हें ये बताएं कि ऐसा करने पर उसका बुरा असर क्या होगा, न कि उन्हें किसी इंसान या जानवर का डर बताएं। इससे बच्चों के मन में डर समा जाता है और बच्चे अंदर ही अंदर कमज़ोर हो जाते हैं।