वैज्ञानिकों ने अल्जाइमर के इलाज के लिए ढूंढी 'संजीवनी', रिसर्च में मिली कामयाबी
कई बार आपने देखा होगा कि कुछ लोग सामान रखकर भूल जाते हैं
कई बार आपने देखा होगा कि कुछ लोग सामान रखकर भूल जाते हैं. कभी किसी का नाम भूल जाते हैं, कभी जगह या फिर किसी का चेहरा भी. सामान्यत: यह कोई बड़ी समस्या नहीं लगती, लेकिन जब ऐसा बार-बार हो और गंभीर हो तो भूलने की यह बीमारी चिंता बढ़ा देती है. इसे ही अल्जाइमर (Alzheimer) कहते हैं. यह एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है, जो ज्यादातर बढ़ती उम्र के साथ होती है.
यह दिमागी विकार उन कोशिकाओं को खत्म कर देता है जो मस्तिष्क में एक दूसरे को जोड़ती हैं. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति सोचने में सक्षम नहीं रह पाता और सामान्य काम पूरा करने की क्षमता भी खत्म होने लगती है. अल्जाइमर रोग का अभी तक कोई पुख्ता इलाज (Alzheimer Treatment) नहीं है, लेकिन कुछ उपचारों के जरिये इसे नियंत्रित किया जा सकता है. हालांकि अब वैज्ञानिकों को इस दिशा में एक बड़ी कामयाबी मिली है.
अल्जाइमर की दवा बनाने की ओर एक कदम
वैज्ञानिकों ने एक छोटा अणु विकसित किया है, जो उस प्रक्रिया को बाधित कर सकता है जिसके माध्यम से अल्जाइमर बीमारी (एडी) में न्यूरॉन निष्क्रिय हो जाते हैं. यह अणु दुनिया भर में डिमेंशिया (70-80 फीसदी) की प्रमुख वजह को रोकने या उसके उपचार में काम आने वाली संभावित दवा बनाने में मदद कर सकता है.
बता दें कि अल्जाइमर से पीड़ित व्यक्ति के मस्तिष्क में, प्राकृतिक रूप से बनने वाले प्रोटीन के पिंड असामान्य स्तर तक जमा होकर फलक तैयार करते हैं, जो न्यूरॉन्स के बीच जमा हो जाता है और कोशिका के कार्य को बाधित करता है. ऐसा ऐमिलॉयड पेप्टाइड (एबीटा) के निर्माण औरजमा होने के कारण होता है, जो केंद्रीय तंत्रिका प्रणाली में जमा हो जाता है. मल्टी डाइमेंशनल एमिलॉयड विषाक्तता के चलते अल्जाइमर बीमारी (एडी) की बहुक्रियाशील प्रकृति ने शोधकर्ताओं को इसके प्रभावी उपचार के विकास से रोका हुआ है.
JNCASR के वैज्ञानिकों को मिली कामयाबी
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान जवाहरलाल नेहरु सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (JNCASR) में प्रोफेसर टी गोविंदराजू की अगुआई में वैज्ञानिकों के एक दल ने एक नए छोटे अणुओं के समूह को तैयार और संश्लेषित किया है. वैज्ञानिकों ने एक प्रमुख उम्मीदवार के रूप में पहचान की है, जो एमिलॉयड बीटा (एबीटा) की विषाक्तता कम कर सकता है.
रिसर्च जर्नल एडवांस्ड थेरेप्युटिक्स में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक, TGR63 नाम का यह अणु न्यूरोनल कोशिकाओं को एमिलॉयड विषाक्तता से बचाने के लिए एक प्रमुख उम्मीदवार सिद्ध हुआ है. आश्चर्यजनक रूप से, यह अणु कोर्टेक्स और हिप्पोकैम्पस, या टेम्पोरल लोब में गहराई में मौजूद जटिल हिस्से पर एमीलॉयड के बोझ को घटाने और संज्ञानता में कमी की स्थिति पलटने में भी कारगर पाया गया था.
चूहों के दिगाम का किया गया उपचार तो मिली कामयाबी
वर्तमान में उपलब्ध उपचार सिर्फ अस्थायी राहत उपलब्ध कराता है, और इसकी ऐसी कोई स्वीकृत दवा नहीं है जो सीधे अल्जाइमर्स बीमारी के रोग तंत्र के उपचार में काम आती हो. इस प्रकार, अल्जाइमर बीमारी को रोकने या उपचार के लिए एक दवा का विकास बेहद जरूरी है.
अल्जाइमर से प्रभावित चूहों के मस्तिष्क का जब टीजीआर63 से उपचार किया गया तो एमिलॉयड जमाव में खासी कमी देखने को मिली. इससे उपचार संबंधी प्रभाव की पुष्टि हुई है. अलग व्यवहार से जुड़े परीक्षण में चूहों में सीखने का अभाव, स्मृति हानि और अनुभूति घटने की स्थिति में कमी आने का पता चला है. इन प्रमुख विशेषताओं से एडी के उपचार के लिए एक भरोसेमंद दवा के उम्मीदवार के रूप में टीजीआर63 की क्षमताएं प्रमाणित हुई हैं.
एडी मरीजों, परिवारों, देखभाल करने वालों को गंभीर रूप से प्रभावित करती है और इसलिए यह वैश्विक स्तर पर बड़ी सामाजिक और आर्थिक बोझ है. जेएनसीएएसआर के दल द्वारा विकसित एक नए दवा उम्मीदवार टीजीआर63 में एडी के उपचार के लिए एक भरोसेमंद दवा बनने की संभावनाएं हैं.