पैनक्रियाज की गड़बड़ी से टाइप-1 डाइबिटीज होता है। आमतौर पर यह किशोर उम्र में होता है।इसमें पैनक्रियाज से या तो इंसुलिन बनता ही नहीं है या बनता भी तो इतना कम बनता है कि यह ग्लूकोज का अवशोषण नहीं कर पाता है। इसलिए टाइप 1 डायबिटीज में रोजाना इंसुलिन लेना पड़ता है।
इंसुलिन इंजेक्शन के सिवा इसका कोई विकल्प नहीं है। एक नए अध्ययन में पाया है कि पर्किंसन की दवा टाइप 1 डायबिटीज की बीमारी में कारगर हो सकती है।अध्ययन में पाया गया है कि पर्किंसन की दवा टाइप 1 से पीड़ित लोगों को हार्ट डिजीज के कारण होने वाली मौतों से जरूर बचा सकती है।एक वेबसाइटके मुताबिक जो लोग टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित हैं उनमें हार्ट डिजीज होने का खतरा ज्यादा रहता है।बच्चों में यह खतरा और ज्यादा रहता है।टाइप 1 डायबिटीज के बाद हार्ट डिजीज होने से मौत का जोखिम बढ़ जाता है।
इस लिहाज से देखा जाए तो यह अध्ययन उन किशोरों को लिए जीवन देने वाला साबित हो सकता है जिनकी टाइप 1 डायबिटीज के बाद हार्ट डिजीज से मौत हो जाती है।शोधकर्ता इस प्रयास में लगे हुए थे कि कैसे टाइप 1 से पीड़ित बच्चों में हार्ट डिजीज के जोखिम को कम किया जाए।इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित किशोरों को पर्किंसन की दवा ब्रोमोक्रिप्टीन दी गई तो एक महीने बाद उसमें बीपी और धमनियों की स्टीफनेस बहुत कम हो गई।यह दवा टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों को भी दिया जा सकता है।
प्रमुख शोधकर्ता और यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो स्कूल ऑफ मेडिसीन के शोधार्थी माइकल स्केफेर ने बताया कि हम यह पहले से जानते थे कि अगर कम उम्र में टाइप 1 डायबिटीज हो जाए तो हार्ट के आसपास की खून की नलियां और धमनियों में कई तरह की दिक्कतें आने लगती है।इसे कम करने लिए हमने ब्रोमोक्रिप्टीन का इस्तेमाल किया।टाइप 1 डायबिटीज का इलाज करा रहे 12 से 21 साल के चार मरीजों पर हमने यह परीक्षण किया।इन लोगों का एचबीए1सी 12 प्रतिशत तक कम था।इसके लिए हमने इनका दो समूह बनाया।एक ग्रुप को ब्रोमोक्रिप्टीन दिया गया जबकि दूसरे ग्रुप को प्लेसिबो दिया गया।अध्ययन के नतीजे चौंकाने वाले थे।