रिफाइंड तेल: हर बार बदलकर करें उपयोग, घटता है कोलेस्ट्रॉल व मोटापे का खतरा, अधिक मिलता है न्यूट्रिशन
मोटापे का खतरा, अधिक मिलता है न्यूट्रिशन
तेल भारतीय भोजन का जरूरी हिस्सा है, लेकिन सेहत की जब भी बात होती है तो तेल की मात्रा और उसके प्रकारों को लेकर चर्चा जरूर होती है। इसका कारण यह है कि मोटापा, कोलेस्ट्राल, हृदय रोग जैसी बीमारियों के लिए तेल को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है। इ बीमारियों के अतिरिक्त भी तेल को शरीर की कई अन्य बीमारियों का कारण माना जाता है। सवाल यह उठता है कि आखिर कौन सा तेल खाना चाहिए। कौन सा तेल सेहत के लिए फायदेमन्द है और कौन सा खराब है। इसकी सही मात्रा और तरीका क्या है।
हाल ही में हुए एक शोध में पता चला है कि खाने में अलग-अलग तेलों का उपयोग करने से शरीर में फैट और एंटीऑक्सीडेंट का बेहतर सन्तुलन होता है। दरअसल हर तेल में कुछ गुण और कुछ कमियाँ होती हैं। इन्हें बदलते रहने से कमियों को दूर कर गुणों को बढ़ाया जा सकता है। आज हम अपने पाठकों को यह बताने जा रहे हैं कि हमारी सेहत के लिए कौन सा तेल ज्यादा फायदेमन्द है।
सरसों, नारियल और तिल का तेल बेहतर
भोजन पकाने के लए कौन-सा तेल बेहतर है इस सवाल के जवाब में यह कहा जा सकता है कि भोजन पकाने के लिए सरसों, नारियल और तिल का तेल बेहतर है। वैसे किसी भी प्रकार के तेल को रिफाइन करने के लिए 6 से 7 केमिकल्स का उपयोग किया जाता है। जब इसे डबल रिफाइन किया जाता है तो केमिकल की संख्या 12 से 14 हो जाती है। ये केमिकल बेहद हानिकारक होते हैं। सनफ्लावर, राइस ब्रान, ग्राउंडनट, सोयाबीन, कुछ ऑलिव ऑइल भी रिफांइड होते हैं। सरसों, नारियल, जैतून और तिल का तेल कोल्ड प्रेस तकनीक से निकाले जाते हैं।
180 डिग्री से अधिक आंच में पका तेल नुकसानदायक होता है। स्मोकिंग पॉइंट के आधार पर तेलों के दो वर्ग हैं। पहला है-हाई स्मोकिंग पॉइंट यानी जिन्हें 204 डिग्री सेल्सियस तक पका सकते हैं, इनमें एवोकाडो, कैनोला, कॉर्न व मूंगफली का तेल शामिल है। दूसरा है-लो स्मोक पॉइंट, इन्हें 107 डिग्री सेल्सियस तक गर्म कर सकते हैं। इनमें फ्लैक्स सीड्स, पंपिकन सीड्स, वॉलनट्स ऑयल शामिल हैं, लेकिन इनका उपयोग भोजन पकाने के लिए नहीं होता।
क्यों नहीं खाना चाहिए भोजन में अधिक तेल
इंसानी शरीर अधिक फैट नहीं पचा सकता। शरीर में फैट जमा होने से बीमारियों का खतरा बढ़ता है। ऐसे में तेल से मिला फैट हमारे शरीर में जमा होने लगता है, जिससे दिल सम्बन्धी बीमारियाँ और ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है। दरअसल अनसैचुरेटेड फैट से निकला एसिड सीधे खून में मिलकर उसकी ऊर्जा की जरूरतों को बढ़ाता है जबकि सैचुरेटेड फैट वाले तेल से निकला एसिड सीधे हमारे लिवर में जाकर इकट्ठा होता है, जिससे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है।
भोजन में तेल की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह शरीर की ऊर्जा के लिए जरूरी फैट उपलब्ध कराता है। तेल में फैट की मात्रा काफी होती है। इसमें कई फैट जैसे सैचुरेटेड फैट, मोनोअनसैचुरेटेड फैट और पॉली अनसैचुरेटेड फैटी एसिड शामिल होते हैं। इसके अलावा खाद्य तेलों में कई एंटीऑक्सीडेंट जैसे टोकॉफेरोल्स, ओरीजानोल, कैरोटेनॉइड्स, टोकोट्रिनोल, फाइटोस्टेरोल और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स भी शामिल होते हैं। तेल में पाए जाने वाले फैट को शरीर ऊर्जा के लिए इस्तेमाल करता है। शेष अन्य मेटाबॉलिज्म को बेहतर करते हैं।
निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि शरीर तेल से मिले फैट को ज्यादा नहीं पचा पाता, यह शरीर में जमता है, मोटापा और रोग बढ़ाता है।