बच्चियों को मासिक धर्म के बारे में करें जागरूक, सेहत से न हो कोई समझौता

महिलाओं के जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है-पीरियड्स। एक ऐसी प्रक्रिया जिसके बारे में जानते हुए भी इसे छुपाया जाता है,

Update: 2021-10-21 04:11 GMT

महिलाओं के जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है-पीरियड्स। एक ऐसी प्रक्रिया जिसके बारे में जानते हुए भी इसे छुपाया जाता है, इसके बारे में बात करने से हिचकिचाया जाता है। जबकि पीरियड्स के बारे में खुलकर बात करने की जरूरत है, खासकर तब जब किशोरियों में इस प्रक्रिया की शुरुआत हो। पहली बार पीरियड्स के होने पर बच्चियों के मन में घबराहट, असमंजस, डर और चिंता भी उपजती है। इस समय होने वाला असंतुलन उन्हें और भी डरा देता है क्योंकि वे इसके बारे में कम जानती हैं। ऐसे में उन्हें सही और उचित जानकारी देना न केवल इस प्राकृतिक प्रक्रिया को लेकर उनके मन से असमंजस को हटा देता है, बल्कि उसे पीरियड्स के दौरान सामान्य जीवन जीने में भी मदद करता है।

ऐसी कई स्थितियां हैं जो पहली बार पीरियड्स शुरू होने के बाद बनती हैं और जिनके बारे में सही जानकारी किशोरियों तक पहुंचानी आवश्यक हैं। यह जानकारी उन्हें उनकी माँ, टीचर, बड़ी बहन या घर की कोई भी महिला दे सकती है। 

बच्चियों को पीरियड्स के बारे में दें जानकारी

आजकल कई कारणों से बच्चियों में पीरियड्स के आने की उम्र पीछे खिसक कर 10-11 वर्ष तक आ गई है। पहले यह उम्र 13- 16 वर्ष तक भी हुआ करती थी। जाहिर है कि कम उम्र में पीरियड्स का आना बच्चियों के सामान्य रूटीन में हलचल तो पैदा करता है। कम उम्र में यह बच्चियों को बंधन जैसा भी लग सकता है। उसपर दर्द, असहजता, मूड स्विंग्स आदि और परेशानी पैदा कर सकते हैं लेकिन यही वह महत्वपूर्ण समय होता है जब उनको हेल्थ, फिटनेस और आने वाले समय के लिए मजबूत शरीर तैयार करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। कुछ पॉइंट्स इस मामले में आपकी मदद कर सकते हैं।

पीरियड्स के बारे में किशोरियों को दें जरूरी सलाह

सबसे पहले तो बच्ची को पीरियड्स के बारे में सामान्य जानकारी दें। जैसे कि ये क्या है, किस समय शुरू होता है, इसके लिए क्या तैयारी होनी चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात- पीरियड्स शर्माने या छुपाने की बात नहीं हैं।

शुरुआत में पहले पीरियड से दूसरी बार पीरियड के आने के बीच के समय में कई बार अनियमितता हो सकती है। इसमें घबराने की कोई बात नहीं, यह चीज बच्ची को बताएं। सबसे पहले पीरियड और उसके एकदम बाद के दूसरे पीरियड के बीच में कई बार 2-6 माह तक का अन्तर भी हो सकता है, जैसा कि मीनोपॉज के दौरान होता है। सामान्यतौर पर 35-40 दिन के भीतर दूसरा पीरियड आ जाता है। ऐसी बच्चियों का प्रतिशत 8-10 प्रतिशत तक होता है जिनमें दिनों का अंतर 2 महीने या इससे ज्यादा का हो सकता है। विशेषज्ञ इसे भी नॉर्मल मानते हैं लेकिन अगर दूसरे पीरियड में यह अंतर 3 महीने से ज्यादा का टाइम ले तो एक बार किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

बच्ची का मासिक चक्र समय पर रहे तो कोई समस्या नहीं लेकिन अगर कई बार पीरियड्स में लम्बा गैप होने या इसके असंतुलित होने के पीछे बॉडी मास इंडेक्स, स्ट्रेस या एंग्जायटी, थाइरॉइड डिजीज, पीसीओएस जैसी स्थितियां भी हो सकती हैं। इसलिए यदि असंतुलन हो तो तुरन्त डॉक्टर से बात करें।  

पीरियड्स को लेकर हर टीनएजर का अनुभव अलग हो सकता है। किसी को इसके होने से बहुत ज्यादा तकलीफ हो सकती है जैसे पेट दर्द, उल्टी, घबराहट, डायरिया, एक्ने, बदन दर्द आदि, जबकि कुछ लोगों के लिए यह एकदम सामान्य होता है।

अगर पहली बार के बाद लगातार तीन-चार बार ज्यादा ब्लीडिंग हो कमजोरी महसूस हो, पेट-दर्द, उल्टी जैसी तकलीफें दिखें तो भी डॉक्टर से सलाह अवश्य लें। सबसे खास बात यह कि बिना डॉक्टर की सलाह के पेट दर्द की गोली न लें।

ताकि सहेत से न हो खिलवाड़

पीरियड्स मतलब बीमारी नहीं है, इस बात को शुरू से बच्ची को समझाएं। कई बार शुरुआत में ज्यादा ब्लीडिंग के बाद धीरे धीरे चक्र नियमित और सामान्य होने लगता है। इस दौरान बच्ची को लगातार काउंसिल करती रहें।

टीनएज लड़के-लड़कियों दोनों में हार्मोनल परिवर्तन तेजी से हो रहे होते हैं। इनके कारण वे अपने शरीर को लेकर कई सवालों से घिरे रहते हैं। ऐसे में पीरियड्स के आना जो कि इन्हीं परिवर्तनों का हिस्सा होता है, बच्चियों के मन पर भी असर डालता है। इसलिए उनकी शारीरिक व मानसिक स्थिति को समझें और उसके हिसाब से उन्हें सलाह दें। जैसे पेट दर्द के लिए गर्म पानी की थैली से सेकाई या हॉट चॉकलेट, हल्दी दूध आदि का सेवन करने की सलाह या अपने मन की बात शेयर करने की सलाह।  

पीरियड्स के दौरान शरीर को और भी पौष्टिक खुराक की जरूरत होती है। ताजा भोजन, हरी सब्जियां, फल, दूध, ताजा दही, अंडे, सूखे मेवे इस समय शरीर को ताकत देते हैं, साथ ही भरपूर पानी पीते रहना भी जरूरी होता। इस दौरान बच्चियों को बहुत ज्यादा मीठा, तला- गला, मैदा युक्त तथा बहुत मिर्च-मसालेयुक्त खाद्य से बचने की सलाह देनी चाहिए।

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