दवाई-सर्जरी छोड़िए, इन 4 योगासन से घर पर ही करें खूनी बवासीर का इलाज
बवासीर का इलाज
जो लोग हरी सब्जियां खाना पसंद करते हैं वे तोरई का सेवन बहुत अधिक मात्रा में करते हैं। तोरई में बहुत से पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें डाइटरी फाइबर, आयरन और विटामिन बी6, विटामिन ए, विटामिन सी, मैग्नीशियम, काफी मात्रा में होता है। इसके साथ ही प्राकृतिक रूप से इसमें बहुत कम कैलरी पाई जाती है। तोरई पचने में आसान होती है साथ ही कफ और पित्त को शांत करने वाली, वात को बढ़ाने वाली होती है। इसका सेवन वीर्य को बढ़ाता है। साथ ही पीलिया, तिल्ली (प्लीहा) रोग, सूजन, गैस, कृमि, गोनोरिया, सिर के रोग, घाव, पेट के रोग, बवासीर में भी तोरई उपयोगी मानी जाती हैं। अगर आप भी गर्मियों में अपनी हेल्थ को ठीक रखना चाहते हैं तो डाइट में तोरई को शामिल करें। आज हम आपको बताएंगे तोरई को आहार में शामिल करने से सेहत को क्या-क्या फायदे होने वाले हैं...
वजन घटाने में कारगर है तोरई
तोरई का सेवन वेट लॉस को बढ़ावा देता है। कैलोरी में कैलोरी काउंट कम होता है साथ ही फाइबर की मात्रा अधिक रहती है। फाइबर के चलते आपका पेट लम्बे समय तक भरा रहता है। और आपको भूख कम लगती है।
ब्लड शुगर नियंत्रण
तोरई इंसुलिन को नियंत्रित कर खून में शुगर लेवल को बढ़ने नहीं देती। तोरी में पेप्टाइड और एल्कलॉइड होते हैं जिससे मेटाबॉलिज्म बढ़ जाता है। इससे शरीर में शुगर लेवल एकदम से बढ़ता नहीं है, बल्कि धीरे-धीरे अब्सॉर्ब होता है।
इम्युनिटी करती है मजबूत
तोरई में विटामिन सी, आयरन, मैग्नीशियम, थियामिन, रिबोफ्लेविन और जिंक होता है जो आपकी इम्युनिटी बढ़ाता है। यही नहीं तोरई इंफ्लामेशन को कम करने में भी कारगर साबित होती है।
एनीमिया
महिलाओं में एनीमिया की परेशानी अधिक रहती हैं। एनीमिया यानी आयरन की कमी जिसके कारण खून में हीमोग्लोबिन कम हो जाता है। एनीमिया में थकान और कमजोरी हर वक्त रहती है। तोरई के सेवन से आयरन की कमी को पूरा किया जा सकता है। इसके अलावा, तोरई में विटामिन-बी6 भरपूर मात्रा में होता है, जो आयरन के साथ-साथ शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
त्वचा में चमक लाती है तोरई
पेट खराब होने पर चेहरे पर दाने, मुंहांसे, बेजान त्वचा इत्यादि समस्या होती हैं। पेट के लिए तोरी बहुत फायदेमंद है। हफ्ते में दो बार तोरी खाने से पेट साफ रहता है और चेहरे पर कोई स्किन प्रॉब्लम नहीं होती। दो से तीन हफ्तों में आपको यह फर्क खुद नजर आएगा।
भरपूर मात्रा में कैल्शियम
तोरई में मौजूद कैल्शियम हडि्डयों को मजबूत बनाने में मदद करता है। इसके अलावा इसमें मैग्नीशियम भी भरपूर मात्रा में होता है। मैग्नीशियम मसल्स संकुचन में सुधार के लिए कैल्शियम के साथ काम करता है।
कोलेस्ट्रॉल को कम करें
तोरई में कोलेस्ट्रॉल बिल्कुल भी नहीं होता हैं, इससे ब्लड में खराब कोलेस्ट्रॉल यानी एलडीएल को कम करने में मदद मिलती है। अगर आप कोलेस्ट्रॉल को कम करना चाहते हैं तो डाइट में इसे शामिल करे।
आंखों के लिए
तोरई का सेवन आँखों के लिए अच्छा माना जाता है। यह ल्यूटिन और ज़ेक्सैंथिन नामक एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होते है। इसके अलावा तोरई विटामिन ए का एक अच्छा स्रोत है जो आंखों की रोशनी में सुधार करने में मदद करता है।
सिर दर्द में
सिरदर्द की समस्या को दूर करने में मददगार हैं ये हरी सब्जी। तोरई में एनाल्जेसिक और एंटीइंफ्लामेटरी गुण होते हैं। यह दोनों गुण दर्द को कम करने और राहत दिलाने मदद कर सकते हैं।
कैंसर से बचाती है
तुरई की सब्जी हमारे शरीर में कैंसर जैसी घातक बीमारियों को होने से रोकती है इसमें एंटी कैंसर गुण पाए जाते हैं। इसलिए यदि आप कैंसर जैसी बीमारी से बचना चाहते हैं तो आपको तोरई की सब्जी का इस्तेमाल करना चाहिए।
बवासीर का इलाज
तोरई के चूर्ण को बवासीर के मस्सों पर लगाएं या गुड़ के साथ चूर्ण की बत्ती बनाकर गुदा में रखने से बवासीर समाप्त हो जाता है। कड़वी तुम्बी, इंद्रवारुणी तथा तोरई चूर्ण में गुड़ मिलाकर उसकी बत्ती बनाकर गुदा में रखने से बवासीर में लाभ होता है।
ये भी पढ़े :बवासीर एक आम बीमारी है। यह बीमारी मलाशय और गुदा हिस्से को प्रभावित करती है। बवासीर की समस्या होने पर गुदा के अंदर और आसपास सूजन हो जाती है। इस दौरान मलाशय के मुंह में एक टीशू जमा हो जाता है जिसके चलते मल त्याग करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा जब आंतरिक बवासीर होता है तब मलाशय के अंदर की ब्लड वेसेल्स सूज जाती हैं और उखड़ जाती हैं। पर जब बाहरी बवासीर होता है तो गर्भावस्था, लंबे समय तक बैठे या खड़े रहने, खांसने, छींकने और जोरदार शारीरिक मेहनत के दौरान दर्द बढ़ जाता है। बवासीर की शुरुआत होने पर मलाशय में लगातार जलन और सूजन होने लगती है। इसमें मांसपेशियों में सूजन रहती है, जो कि रह-रह कर जलन पैदा करती है। यह सूजन दर्द और परेशानी का कारण बनती है और यहां तक कि उठने-बैठने के दौरान भी समस्या बन जाती है। ये आंतरिक बवासीर और बाहरी बवासीर, दोनों के दौरान हो सकता है। बवासीर को ठीक ना करवाने पर फिशर की नौबत आ सकती है। जिसके इलाज के लिए सर्जरी करवानी पड़ सकती है। लेकिन इस सर्जरी से बचने के लिए योगासनों की मदद ली जा सकती है।
बवासीर का मुख्य कारण कब्ज को माना जाता है। जो कि डायजेशन खराब होने की निशानी है। इसके मरीज को मल त्यागने के लिए जोर लगाना पड़ता है, जिससे गुदाद्वार की नसों पर दबाव पड़ता है और सूजन-दर्द होता है। इसलिए बवासीर को सही करने के लिए सबसे पहले पाचन को सही करना पड़ता है। पाचन को दुरुस्त करने के लिए कुछ योगासन करने चाहिए जिसकी मदद से पेट आसानी से साफ हो जाए।
- योगा मैट पर घुटनों के बल बैठ जाएं।
- पंजों की उंगलियां मिलाएं और एड़ियों के बीच में थोड़ा गैप रखें।
- अब कूल्हों को एड़ियों पर टिकाएं और कमर सीधी करें।
- हाथों को घुटनों के ऊपर रखें।
- अब आंखें बंद करें और शरीर को रिलैक्स होने दें।
पश्चिमोत्तानासन
- मैट पर बैठ जाएं और दोनों पैर सामने की तरफ फैला लें।
- दोनों पैर के बीच में दूरी ना रखें और घुटनों को सीधा रखें।
- अब पीठ, गर्दन और सिर को सीधा रखते हुए कमर को झुकाएं।
- दोनों हाथों को सामने पंजों की तरफ लेकर जाएं।
- जितना हो सके, धड़ को घुटनों के पास लाएं।
- इस स्थिति में कुछ देर रहें और सामान्य सांस लें।
उष्ट्रासन
- उष्ट्रासन योगा करने के लिए वज्रासन की स्थिति में आएं।
- अब घुटनों के बल खड़े हो जाएं।
- इसके बाद सांस भरते हुए कमर मोड़ें और सिर को पीछे की तरफ ले जाएं।
- दोनों हाथों से दोनों पैरों के टखने पकड़ने की कोशिश करें।
- कुछ देर इसी स्थिति में सामान्य सांस लें।
पवनमुक्तासन
- मैट पर कमर के बल लेट जाएं।
- अब दोनों घुटनों को मिलाकर पेट की तरफ लाएं।
- घुटनों को पेट के बिल्कुल पास लाना है।
- फिर दोनों हथेलियों को लॉक करके घुटनों को पकड़ें और छाती से लगाने की कोशिश करें।
- अब सिर को उठाएं और नाक से घुटनों को छुएं।
- इसी स्थिति में 10 से 15 सेकेंड रहें।