जानें अमृत बेल से जुड़ी कुछ खास बातें
भारतवासियों के लिए गिलोय अब एक जाना-पहचाना नाम है. यह देश की एक प्राचीन जड़ी-बूटी है
भारतवासियों के लिए गिलोय अब एक जाना-पहचाना नाम है. यह देश की एक प्राचीन जड़ी-बूटी है जो शरीर के विष को खत्म करने के अलावा कायाकल्प, शरीर की प्रतिरक्षा बढ़ाने और गठिया जैसे रोग के लिए बेहद लाभकारी है. जब भारत में डेंगू का गंभीर प्रकोप फैलता है, तब इसके काढ़े का प्रचलन बेहद बढ़ जाता है. कोविड के प्रकोप के दौरान भी इसकी विशेषताओं के चर्चे आम थे. आखिर क्यों न हों, इसे अमृत बेल इसीलिए कहा जाता है. देश का आयुष मंत्रालय इसे राष्ट्रीय औषधि बनाने के प्रयासों में लगा हुआ है.
'अमृत बेल' गिलोय है गुणों से भरपूर
भारत के प्राचीन आयुवेर्दिक ग्रंथों में गिलोय का गुणगान है. इसे 'रसायन' कहा गया है, जिसका अर्थ है जीवन काल को लंबा करने और शरीर को स्फूर्तिदायक बनाने की तकनीक. यह कभी न सूखने वाली एक बड़ी लता है और इसे पनपने में सूर्य की रोशनी की आवश्यकता भी नहीं होती. इसका पतला तना देखने में रस्सी जैसा लगता है. आयुर्वेद के अलावा देश की अन्य कुछ भाषाओं में इसे अमृता, अमृतवल्ली, अमृतलता, अमृत बेल, अमृतु भी कहा जाता है. इस पर पीले व हरे रंग के फूलों के गुच्छे लगते हैं और इसके पत्ते कोमल तथा पान के आकार के होते हैं.
giloyनीम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय सबसे अच्छी मानी जाती है.
यह जिस पेड़ पर चढ़ती है, उस वृक्ष के कुछ गुण भी इसके अन्दर आ जाते हैं. इसीलिए नीम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय सबसे अच्छी मानी जाती है. आप देखेंगे कि 'संकटकाल' में लोग नीम चढ़ी गिलोय को ढूंढते नजर आएंगे.
देवताओं के अमृत से जुड़ा है इसका नाता
गिलोय भारत की ही बूटी है और यह श्रीलंका, बांगलादेश, म्यांमार आदि देशों में भी पाई जाती है. आयुर्वेदिक चिकित्सा को लेकर इस बेल का जबर्दस्त सिक्का है, लेकिन पश्चिमी देशों में शायद ही यह कहीं नजर आती हो या इसके गुणों के चर्चे-आम हों. चूंकि यह अमृत बेल है तो इसकी उत्पत्ति को लेकर भी अलग प्रकार के मिथक हैं. पुराणों में वर्णन है कि देवताओं और दानवों के बीच हुए समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला और उसको पाने की होड़ में अमृत की बूंदें जहां-जहां छलकीं, वहां-वहां अमृत बेल (गिलोय) की उत्पत्ति हुई. एक अन्य मान्यता है कि लंका युद्ध के दौरार भगवान राम ने इंद्रदेव से प्रार्थना की कि इस युद्ध के दौरान बंदर, भालू आदि जितने भी जानवर मारे गए हैं, उन्हें वह
जीवित कर दें. इंद्रदेव ने उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए उन पर स्वर्ग से अमृत की वर्षा की. वे सब जीवित हो गए और जहां-जहां अमृत बूंदें गिरी, वहां अमृत बेल उत्पन्न हो गई.
आयुर्वेदिक ग्रंथों में है गिलोय का जिक्र
गिलोय बेल की डंडियों का काढ़ा, पत्तों का रस मुख्य तौर पर शरीर के लिए लाभकारी माना जाता है. देश के आयुर्वेदाचार्य, आयुर्वेद से जुड़ी कंपनियां बेहतरीन गुणों के चलते अनेक दवाओं में इसका प्रयोग करते हैं तो देश का आयुष मंत्रालय भी इस पर न्यौछावर है. कोरोना काल में शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए उसने जिस काढ़े को पीने की सलाद दी थी, उसमें गिलोय भी शामिल रहा था. मंत्रालय इस प्रयास में भी है कि इसे राष्ट्रीय औषधि के रूप में प्रमोट किया जाए. इसमें पाए जाने वाले चमत्कारी गुण शरीर के विष का ताप तो कम करते ही हैं, अब तो यह भी शोध हो रहा है कि सर्दी व फ्लू के अलावा स्किन इन्फेक्शन, गठिया, लिवर दोष में भी गिलोय लाभकारी हो सकती है.
giloyगिलोय की बेल भूख बढ़ाती है और शरीर के विषों का नष्ट करती है.
भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ 'चरकसंहिता' के 'शाकवर्ग' अध्याय में गिलोय (वत्सादनी) को वात व कफनाशक बताया गया है. इसके अलावा कई प्रकार के रोगों के उपचार में विस्तारपूर्वक इसका वर्णन किया गया है. 'चरकसंहिता' के आसपास औषधीय पादकों की जानकारी देने वाले 'निघंटु' ग्रंथों में भी इस अमृतबेल का गुणगान है और इसे पित्त-दोष, जलन और रक्त विकारों को कम करने वाला बताया गया है. यह भी जानकारी दी गई है कि यह बेल भूख बढ़ाती है और शरीर के विषों का नष्ट करती है.
एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-एजिंग भी है बेल
जानी-मानी आयुर्वेदाचार्य डॉ. वीना शर्मा का कहना है कि जब इसका नाम ही अमृत से जुड़ा है तो विशेषताएं भी उस जैसी ही होंगी. गिलोय एक प्रभावी एंटी-एजिंग (बढ़ती उम्र में त्वचा विकार) जड़ी बूटी है. यह फ्लेवोनोइड्स (एंटीऑक्सीडेंट) से भरपूर है जो शरीर की कोशिकाओं को स्वस्थ रखने के लिए कार्य करती है. इसमें बढ़ती उम्र को कम करने के लिए कोलेजन (रेशेदार प्रोटीन जो हड्डियों, मांसपेशियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है) बढ़ाने की विशेषताएं भी हैं. डॉ. शर्मा के अनुसार गिलोय के पत्ते और डंडियां स्वाद में कसैले, कड़वे और तीखे होते हैं. इसके आम उपयोग से वात-पित्त और कफ को ठीक किया जा सकता है. यह भूख बढ़ाती है. विशेष बात यह है कि गिलोय यूरिन सिस्टम में तो सुधार करती ही है, साथ ही दिमाग को भी कूल रखती है.
ब्लड शुगर कम करने में है मददगार
इसकी एक चमत्कारी विशेषता यह है कि इसमें शरीर के ब्लड में शुगर को कम करने की अद्भुत क्षमता है. यदि किसी व्यक्ति के शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध या हाइपोग्लाइसीमिया (शुगर की कमी) है और वह ग्लूकोज़ के स्तर को सुधारने के लिए कोई दवा लेते हैं तो उसे इस अमृत बेल के किसी भी प्रकार के सेवन से बचना चाहिए. यह ब्लड शुगर को खतरनाक हद तक कम कर सकती है, जिसके चलते एकदम से कमजोरी, थकान, चक्कर आना और बेहोशी छा सकती है. यानी डायबिटीज वाले बंदे को इससे दूर ही रहना होगा.
इसमें गजब की प्रतिरोधी क्षमता भी है, जो शरीर की क्षतिग्रस्त होती कोशिकाओं को लगातार रिपेयर करती रहती हैं. यह नुकसानदायक बैक्टीरिया से लेकर पेट के कीड़ों पर भी प्रहार करती हैं. साथ ही आंत और यूरिन सिस्टम के साथ-साथ पूरे शरीर को प्रभावित करने वाले रोगाणुओं को भी यह खत्म करती है. यह ध्यान रखें कि इस बूटी की तासीर गर्म होती है. इसका अधिक मात्रा में सेवन किया गया तो पेट मे जलन व गैस जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ सकता है.