जानिए शलजम की सब्जी से जुड़ी दिलचस्प बातें
शलजम एक ऐसी जड़ीली सब्जी है, जिसने अपने ‘स्टेटस’ में सुधार किया है. कभी इस सब्जी को जानवरों के चारे के लिए उगाया जाता था.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शलजम एक ऐसी जड़ीली सब्जी है, जिसने अपने 'स्टेटस' में सुधार किया है. कभी इस सब्जी को जानवरों के चारे के लिए उगाया जाता था. गुलामों को भी खाने के लिए शलजम दी जाती थी, लेकिन आज यह पूरी दुनिया की प्रमुख सब्जी बन चुकी है. इसका कारण है कि इसमें गुणों की भरमार है. शलजम शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता को तो बढ़ाती ही है, साथ ही वजन कम करती और हड्डियों में भी मजबूती लाती है.
भूमध्यसागरीय क्षेत्र की पैदावार है यह सब्जी
कई प्राचीन ग्रंथों व रिसर्च रिपोर्ट में शलजम का वर्णन है. वहां इसके बारे में विस्तार से जानकारी है, लेकिन इस बात के पुख्ता प्रमाण नहीं हैं कि आखिर शलजम की उत्त्पत्ति कहां से हुई है. ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी (अमेरिका) की वनस्पति विज्ञान व प्लांट पैथॉलोजी विभाग की प्रोफेसर सुषमा नैथानी ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट में यह तो कन्फर्म किया है कि शलजम की उत्पत्ति भूमध्यसागरीय क्षेत्र (कैलिफोर्निया, मध्य चिली, न्यूजीलैंड के आसपास या दक्षिण-पश्चिम ऑस्ट्रेलिया) में हुई है, लेकिन इसका जन्मदाता देश कौन सा है और इसकी उत्पत्ति का काल कौन सा है, उसको लेकर वह मौन रही हैं.
भारत के प्राचीन ग्रंथों में इसका जिक्र नहीं है
शलजम कहां पैदा हुई और कब अस्तित्व में आई, उसे लेकर कई चर्चाएं है लेकिन एकमत नहीं है. इसे रूस और उत्तरी यूरोप की सब्जी माना जाता है. कुछ वनस्पति शास्त्री कह रहे हैं कि ईसा पूर्व 2000 में यह साइबेरिया में पैदा हुई. एक पक्ष यह भी कहता है कि यह मध्य और पूर्वी एशिया में पैदा हुई. यह भी कहा जा रहा है कि यूनान इसका उद्दगम स्थल है. एक पक्ष का दावा है कि 1500 ईसा पूर्व में भारत में इसका उपयोग हो रहा था. लेकिन देश के प्राचीन धार्मिक व आयुर्वेदिक ग्रंथों में कहीं भी शलजम का वर्णन नहीं है. ईसा पूर्व सातवीं-आठवीं शती में लिखे 'चरकसंहिता' में जड़ वनस्पति सब्जी में सिर्फ मूली का ही जिक्र है.
पशुओं के चारे से लेकर गुलामों के भोजन तक
अब शलजम पूरी दुनिया के लिए विशेष सब्जी बन चुकी है. सलाद के तौर पर भी इसका प्रयोग होता है, लेकिन कभी वह समय था, जब कई देशों में इसकी बहुत वैल्यू नहीं थी. यूरोपीय देशों में हजारों सालों तक किसानों ने गायों व सूअरों के चारे के लिए शलजम की खेती की. प्राचीन मिस्र और ग्रीस में इसे दासों को भोजन के लिए दिया जाता था. मिस्र के पिरामिड बनाने वाले गुलामों को भी खाने के लिए शलजम दी जाती थी. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब भोजन की कमी हुई तो ब्रिटिश नागरिको ने बड़ी अनिच्छा से शलजम को खाना शुरू किया. इसके बावजूद शलजम के चाहने वालों की भी कमी नहीं रही है.
रोमन साम्राज्य में जन्मे (पहली शताब्दी ईस्वी) लेखक व वनस्पति शास्त्री प्लिनी द एल्डर (Pliny The Elder) ने अपनी पुस्तक नेचुरल हिस्ट्री (Natural History) में शलजम को विशेष सब्जियों में शुमार किया है और कहा है कि सभी आयोजनों में मकई, बीन्स के तुरंत बाद शलजम को पेश करना चाहिए.
ज्यूरिख में शलजम महोत्सव है शानदार
वैसे इस सब्जी को लेकर स्विट्जरलैंड में एक विशेष उत्सव बहुत ही मशहूर है. यहां के शहर ज्यूरिख में हर साल नवंबर के दूसरे शनिवार को रिर्चेसच्विल (Richterschwil) मनाया जाता है. इसका अर्थ
है शलजम महोत्सव, जिसमें परेड भी शामिल है. यह उत्सव सालों से जारी है. उस दिन शाम को शहर की सड़कों और घरों को शलजम से बनी हजारों लालटेनों से सजाया और जगमगाया जाता है और इसकी विभिन्न डिश भी बनाई जाती है. सबसे अंत में युवा परेड निकालते हैं, उनके हाथ में शलजम की लालटेन, दीप आदि होते हैं.
मार्चिंग बैंड भी खूब होते हैं. बताते हैं कि इस उत्सव के लिए करीब 25 टन शलजम का उपयोग किया जाता है. पूरी दुनिया में शलजम को लेकर ऐसा कोई त्योहार आयोजित नहीं होता है. यह अनूठा है.
विटामिन, फाइबर, पोटेशियम इसे खास बनाते हैं
सब्जी के रूप में शलजम में काफी गुण भरे हुए हैं. आहार विशेषज्ञ व न्यूट्रिशयन कंसलटेंट्स का कहना है कि शलजम में विटामिन-सी, विटामिन-ई, फाइबर और पोटेशियम जैसे कई जरूरी पोषक तत्व खूब हैं. इसके पत्ते भी बहुत फलकारी है. शलजम यह शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाता है, वजन भी कम करता है और हड्डियों में भी मजबूती लाता है. इसका सेवन ब्लडप्रेशर के लिए लाभकारी है. यह हार्ट को भी सामान्य बनाए रखता है और पाचन तंत्र में भी सुधार करता है. इससे एनीमिया दूर रहता है. गठिया रोगी के लिए शलजम फायदेमंद है. यह शरीर की सूजन भी कम करता है. यह स्किन को भी हेल्दी रखता है और झुर्रियों को दूर रखता है. अधिक मात्रा में शलजम खाने से गैस ओर पाचन से जुड़ी समस्या हो सकती है. थायराइड से ग्रस्त लोगों को इसके सेवन से बचना चाहिए.