जानें कि होली के रंग किस तरह हमारे शरीर के कई अंगों को करते है प्रभावित

होली के यह रंग शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकते हैं।

Update: 2022-03-18 08:10 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। होली का त्योहार आ चुका है और इसे इस बार बड़े जोश के साथ मनाया भी जाएगा, क्योंकि पिछले दो साल कोविड महामारी की वजह से लोग इस त्योहार को मना नहीं पाए थे। होली का पर्व खूब सारे रंगों के साथ मनाया जाता है। आमतौर पर बाज़ार में मिलने वाले रंगों में कैमिकल्स मौजूद होते हैं, जो स्किन और बालों को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह नुकसान सिर्फ बालों और त्वचा तक ही सीमित नहीं है। आपको यह जानकर हैरानी होगी लेकिन होली के यह रंग शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकते हैं।

मुंबई के ग्लोबल हॉस्पिटल में आंतरिक चिकित्सा की वरिष्ठ सलाहकार, डॉ. मंजूषा अग्रवाल का कहना है, "होली के मौके पर पेस्ट रंग, सूखे रंग, गीले रंग जैसे कई तरह के रंग उपलब्ध होते हैं। औद्योगिक रंगों का काफी उपयोग किया जाता है क्योंकि वे सस्ते और चमकीले होते हैं। इन रंगों का मनुष्यों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है क्योंकि ये कभी होली खेलने के लिए नहीं बने थे। इसके अलावा मेटैलिक पेस्ट का भी खूब उपयोग होता है। सिल्वर, गोल्डन और काले रंग के मेटैलिक पेस्ट आपने खूब देखे होंगे। इनसे आंखों में एलर्जी, गंभीर मामलों में अंधापन, स्किन में जलन, स्किन कैंसर और कई बार किडनी फेलियर जैसे समस्या भी देखी गई है। इस तरह के रंग युवाओं में काफी पॉपुलर होते हैं, लेकिन इसके हानिकारक प्रभावों को देखते हुए इसके उपयोग से बचना चाहिए।
तो आइए जानें कि होली के रंग किस-किस तरह हानि पहुंचा सकते हैं।
मुंबई के मसीना अस्पताल में सलाहकार पल्मोनोलॉजिस्ट, डॉ. सुशील जैन ने बताया कि होली के रंग किस तरह शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
स्किन एलर्जी: कुछ केमिकल युक्त रंगों की वजह से त्वचा पर इंफेक्शन, चकत्ते या जलन पैदा हो सकती है।
आंखों में एलर्जी: कुछ विदेशी रसायन आंखों में घुस जाते हैं और एलर्जी का कारण बनते हैं। इससे आंखों में रेडनेस हो सकती है, जो आगे चलकर कन्जंगक्टीवाइटिस और यहां तक कि अंधेपन का कारण भी बन सकती है।
कार्सिनोजेनिक: रंगों में मौजूद रसायन त्वचा के कैंसर के साथ-साथ किसी भी अन्य आंतरिक कैंसर का कारण बन सकता है।
किडनी को नुकसान: रंग सामग्री जिसमें लेड ऑक्साइड होता है जैसे काला रंग गुर्दे की क्षति और विफलता का कारण बन सकता है।
अस्थमा: होली के रंगों में क्रोमियम होता है, जो सांस के ज़रिए फेफड़ों में पहुंच जाता है और ब्रोन्कियल अस्थमा का कारण बन सकता है। रसायन फेफड़ों में प्रवेश करता है और श्वसन वायुमार्ग को अवरुद्ध करता है।
हड्डियों पर असर: जब छोटे बच्चे होली के दौरान रंगों में भारी मात्रा में कैडमियम के संपर्क में आते हैं, तो यह हड्डियों के निर्माण को बाधित करना शुरू कर देता है और हड्डियों को कमज़ोर कर सकता है।
निमोनिया: रंगों में निकल के कण जब फेफड़ों में सांस लेते हैं, तो विशेष रूप से बच्चों को निमोनिया हो सकता है।
उन रसायनों के प्रभाव कितने ख़तरनाक हैं, यह देखते हुए प्राकृतिक या हर्बल रंगों का उपयोग करना सबसे अच्छा है। हैप्पी एंड सेफ होली!


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