क्या सेहत के लिए ठीक है रंगों से खेलना? जानिए ये वैज्ञानिक कारण

भारतवर्ष में होली का त्यौंहार रंग और गुलाल लगाकर हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है

Update: 2021-12-02 14:17 GMT
भारतवर्ष में होली का त्यौंहार रंग और गुलाल लगाकर हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। एक ओर जहां होली मनाने के पीछे कई धार्मिक कारण हैं वहीं, रंगो से होली खेलने के पीछे भी कई वैज्ञानिक कारण छिपें हैं जिनका सीधा सा मतलब शरीर की सेहत को लेकर निकलता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक गुलाल या अबीर शरीर की त्वचा के लिए कई तरह से काम करते हैं। ये चीजें त्वचा को उत्तेजित करते हैं। ये त्वचा की पोरों में समाकर शरीर के आयन मंडल को मजबूती देते हैं और स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं। रंगो से होली खेलने के पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी हैं जिन्हें जानकर आपको हैरानी होगी। हालांकी बहुत ही कम लोग इन कारणों को जानते हैं।
होली का त्यौंहार हर साल ऐसे समय में आता है जब मौसम में बदलाव के कारण लोग उनींदे और आलसी से होते हैं। ठंडे मौसम के गर्म रुख करने के कारण शरीर का कुछ थकान और सुस्ती महसूस करने लगता है।शरीर की इस सुस्ती को दूर भगाने के लिए ही लोग फाग के इस मौसम में जोर से गीत गाते हैं। इसी कारण इस मौसम में बजाया जाने वाला संगीत भी तेज होता है जिससे शरीर में नई उर्जा मिलती है।
होली पर शरीर पर ढाक के फूलों से तैयार किया गया रंगीन पानी, विशुद्ध रूप में अबीर और गुलाल डालने से शरीर को सुकून और ताजगी देता है। रंगो से होली खेलने के पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। गुलाल औऱ अबीर से त्वचा की सुदंरता में निखार भी आता है।
इस नदी में सालभर बहता है उबलता हुआ गर्म पानी, लोग चावल पकाकर खाते हैं
भारत समेत दुनिया के कई देशों में कई तरह की नदियां हैं जिनके बारे में अजब-गजब बाते हैं। जैसे कोई नदी बहुत लंबी होती है तो कोई बहुत चौड़ी यानी किसी का पानी बिल्कुल साफ होता है तो किसी का मटमैला। इन सभी नदियों में सूर्योदय से पहले गर्म और सूर्योदय के बाद ठंडा पानी मिलता है। लेकिन इस दुनिया में एक ऐसी अनोखी नदी भी है जिसमें 24 घंटे और साल के 365 दिन उबलता हुआ पानी बहता है। यह नदी दक्षिण अमरीका के अमेजन बेसिन में स्थित है जिसको बॉयलिंग रिवर के नाम से भी जाना जाता है। इस अनोखी नदी की खोज आंद्रेज रूजो ने साल 2011 में की थी। इस उबलते हुए पानी की नदी की लंबाई 6.4 किलोमीटर, चौड़ाई 82 फीट और गहराई 20 फीट है।
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