फास्ट फूड के नाम पर जिस तरह के खाद्य पदार्थों ने निराले स्वादों का मुलम्मा चढ़ाकर मनुष्य की दिनचर्या में अपनी व्यावसायिक घुसपैठ बढ़ाई है, उसके सर्वाधिक शिकार हो रहे हैं बच्चे।
जन्म लेते ही बच्चों की खाद्य और पेय पदार्थों के सेवन की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता। शिशुओं को दुग्धपान कराने के महत्त्व को अनेक माताओं द्वारा अपनी शारीरिक सुडौलता बनाये रखने की वजह से या बाहर के वर्किंग कल्चर के कारण जब तरजीह नहीं दी जाती तो बच्चे के खान-पान की जरूरतें ऊपरी पदार्थों से की जाती हैं।
यहीं से बच्चों की जीभ पर खाने-पीने की बाहरी चीजों का स्वाद चढ़ जाता है। यही स्वाद लत बनकर बच्चों की आवश्यकता बन जाता है।
भारतीय परिवारों में जीवन शैली में तेजी से आ रहे बदलाव के चलते बच्चे अपने जीवन की शुरूआत इसी बदलाव के मुकाम से शुरू कर रहे हैं। अत: वे ऐसे जीवन चक्र में आ गये हैं जहां वे भारतीय खान-पान के लुप्त होते व्यंजनों से परिचित नहीं हो पा रहे हैं।
पारिवारिक जीवन शैली के बदलाव ने घरों में तैयार होने वाले खाद्य पदार्थों के रिवाजों को बदला है। अब कपड़ों और जूतों की तरह पर्वों उत्सवों और त्योहारों के अवसर पर बाजार से रेडीमेड खाद्य पदार्थों की भी खरीदारी की जाने लगी है। ऐसे खाद्य पदार्थों में जंक फूड की बहुलता ने बड़ों से कहीं ज्यादा बच्चों को बड़ी संख्या में अपनी गिरफ्त में लिया है। यूं कहा जा सकता है कि जंक फूड के सेवन का बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
बच्चे अपने लंच बाक्स में फास्ट फूड ले जाना ही पसंद कर रहे हैं। जंक फूड के सेवन की लत में फंसे बच्चे मुख्यत: मोटापे के शिकार, चिड़चिड़े, असहनशील और उग्र अनैतिकता के शिकार होते जा रहे हैं।
पालकों को सतर्कता बरत कर अपने बच्चों को स्वास्थ्यवर्द्धक चीजों के फायदों के बारे में अवगत कराते रहना चाहिए और बच्चों में नींबू पानी, छाछ फलों के जूस के सेवन की आदत डालनी चाहिए। बच्चों के खाने पीने का शौक पूरा करने के लिये बाजारों से फास्ट फूड खरीदकर बच्चों की इच्छा पूरी कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं किंतु बच्चों की जीभ के स्वाद उन्हें एडिक्ट बना देते हैं और वे तब तक जिद करते रहते हैं जब तक उन्हें ये बाजारू पैकेट उपलब्ध नहीं कराये जाते। आगे चलकर ये फास्ट फूड ही बच्चों के तन और मन के बहुत बड़े दुश्मन बन जाते हैं।
आज के शिक्षण में भी जंक फूड से होने वाले नुकसानों से बच्चों को सचेत रहने के संदेश मिलने चाहिए और पालकों को भी अपने बच्चों की फूड हैबिट्स पर गंभीरतापूर्वक ध्यान देना चाहिए। समाज का दायित्व है कि बच्चों को स्वास्थ्यवर्द्धक पौष्टिक आहार मिले और वे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहकर समाज और देश का भविष्य बनाने के लिए अपने आप को संपूर्ण रूप से तैयार कर सकें।