जीवन चलने का नाम है लेकिन विश्राम शरीर की आवश्यकता है। कुछ अंतराल या ब्रेक जीवन में नवीनता की प्रेरणा बन जाती है। शरीर का कोई भी अंग सदा चलायमान नहीं रह सकता। दिल जो सारी उम्र धडक़ता है, वह भी काम करने के समय से दुगुना आराम करता है। यह दो धडक़नों के बीच 'अंतराल' है जिसमें दिल को आराम मिलता है। पेशियां जब थक जाती हैं तो उनमें लैक्टिक अम्ल इकठा हो जाता है जिसे थकावट कहते हैं। जब यह अम्ल जिगर तक धमनियों द्वारा पहुंचता है तो यह दोबारा ग्लाइकोजन और ग्लूकोज में बदल जाता है लेकिन इसके लिए विश्राम या अंतराल काल निकालना पड़ेगा अन्यथा बीमार पड़ जाएंगे।
हम सदा काम नहीं कर सकते। दिन के बाद रात्रि का आगमन होता है और रात के बाद दिन। रात को सारा संसार जीव जन्तु मानव सो जाते है। सोना विश्राम करने के लिए प्राकृतिक एवं स्वाभाविक क्रि या है।
विश्राम सिर्फ शरीर के लिए ही नहीं, दिमाग एवं आत्मा के लिए भी होता है। मानव प्रकृति के अनुरूप एकरूपता एवं एकरसता से ऊब जाता है। जीवन में विविधिता लाना जीवन को रंगीन बनाना है। विश्राम करने के कई ढंग हैं। कोई संगीत सुनता है तो किसी को सो जाना अच्छा लगता है। कोई पेंटिंग करता है तो कोई टहलता एवं गप्पें मारता है। कोई तैरता है और कोई घण्टों मछली पकडऩे में आनन्दित होता है। ज्यादा टहलना थका सकता है। फिर आराम के लिए संगीत सुनें पर ज्यादा संगीत भी थका सकता हैं। फिर गप्पे मारें। किसी भी चीज की अति थका देने वाली होती है। आराम करने से मनोरंजन होता है। जीवन को जीने की नई चेतना मिलती है, उत्साह मिलता है। अत: बीच-बीच में ब्रेक अवश्य लगायें और जीवन से एकरसता दूर भगायें।