अमृत फल आंवला को माना जाता है औषधीय गुणों से भरपूर ,जाने इसकी खूबियां
अमृत फल आंवला को माना जाता है औषधीय गुणों से भरपूर
आंवले जैसा उत्तम एंटी ऑक्सीडेंट फल कोई नहीं है. यह हानिकारक कोलेस्ट्रॉल को घटाने और इंसुलिन बनाने की प्रक्रिया में मदद करता है. यह पीलिया का निषेध करता है, रक्त को भी साफ रखने में मदद करता है. इसके सेवन के आंखों की रोशनी भी बेहतर रहती है. आंवले का मुरब्बा तो और भी गुणकारी है.
पूरे विश्व में एक ही ऐसा फल है जिसे 'अमृत' समान माना जाता है. विशेष बात यह है कि इस फल का अवतरण भारत में हुआ और इसे देवताओं के बेहद करीब माना जाता है. इसका धार्मिक महत्व है और पुराणों तक में इसका वर्णन है. यह इतना लाभकारी है कि इसके वृक्ष तक की विशेष पूजा की जाती है. इस फल की विशेषता इसलिए है कि यह मनुष्य को जवान बनाए रखने के साथ-साथ निरोगी भी बनाए रखता है. इस 'अमृत-फल' का नाम है आंवला, जिसे इंग्लिश में Indian gooseberry कहा जाता है.
आंवला के अंग्रेजी नाम ने ही स्पष्ट कर दिया है कि इसकी उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में हुई है. इस फल का वर्णन जब उपनिषदों, पुराणों के अलावा भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में हैं तो हम मान सकते हैं कि यह फल कितना प्राचीन है और अब तो इसका महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है. इसका वर्णन जैमिनीय उपनिषद स्कंद पुराण और पद्म पुराण में भी है. मान्यता है कि सृष्टि के सृजन के क्रम में सबसे पहले आंवले का वृक्ष ही उत्पन्न हुआ था. इन ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जहां-जहां, विष की हल्की बूंदें टपकी वहां पर भांग-धतूरा जैसी बूटियां पनपी और जहां अमृत की बूंदें छलकीं, वहां आंवला, पीपल, बेल, बरगद, अशोक आदि पेड़ पैदा हुए.
एक मान्यता यह भी है कि आंवले की उत्पत्ति ब्रह्माजी के आंसुओं से हुई. जैमिनीय उपनिषद में आंवले के पेय का वर्णन किया गया है. पद्म पुराण के सृष्टि खंड में इस पवित्र फल बताते हुए कहा है कि इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. भारत में आंवले का वृक्ष को ही यह विशिष्टता प्रदान है कि वर्ष में दो बार इसकी पूजा होती है. एक बार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन, जिसे आंवला एकादशी कहते हैं. दूसरा, कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन जिसे आंवला नवमी कहा जाता है. माना जाता है कि आंवले के पेड़ को पूजने से घर में धन-धान्य का आगमन रहता है और परिवार विपदाओं से बचता है.
भारत के धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी आंवला को मानव शरीर के लिए विशेष लाभकारी बताया गया है. ग्रंथ 'चरकसंहिता' में वर्णन है कि आंवले में लवण रस (नमकीन स्वाद) को छोड़कर बाकी अन्य पांच रस कटु, अम्ल, तिक्त, कषाय, मधुर होते हैं. यह त्रिदोषनाशक है और कफ-पित्त का अत्यधिक शत्रु है. अन्य ग्रंथ 'सुश्रुत संहिता' में वर्णन है कि आंवला शरीर के दोषों को मल के द्वारा बाहर निकाल देता है और यह आयुवर्धक है.
मुंबई यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन वैद्यराज दीनानाथ उपाध्याय कहते हैं कि आंवले को अमृतफल इसलिए कहा गया है कि यह मनुष्य को निरोगी रखता है और उसकी आयु बढ़ाता है. यही एक ऐसा फल है जो त्रिदोष नाशक है. आंवले जैसा उत्तम एंटी ऑक्सीडेंट फल कोई नहीं है. यह हानिकारक कोलेस्ट्रॉल को घटाने और इंसुलिन बनाने की प्रक्रिया में मदद करता है. यह पीलिया का निषेध करता है, रक्त को भी साफ रखने में मदद करता है. इसके सेवन के आंखों की रोशनी भी बेहतर रहती है. आंवले का मुरब्बा तो और भी गुणकारी है. उपाध्याय के अनुसार सामान्य तौर पर आंवला को खाने से कोई हानि नहीं है लेकिन अधिक खाए जाने पर एसिडिटी व कब्ज की समस्या हो सकती है, साथ ही यूरिन में जलन हो सकती है. जिसको किडनी की समस्या है, उसे आंवले से परहेज करना चाहिए.
भारत की अन्य भाषाओं में आंवले का नाम- आसामी में आमलुकी, उड़िया में औंला, कन्नड़ में नेल्लिकाय, तमिल में नेल्लिमार, तेलुगु में उसरीकाय, मलयालम में नेल्लिमारम, बंगाली में आमलकी, मराठी में आवलकाठी, गुजराती में आमला, इंग्लिश में Indian Gooseberry.