बदलेगी राजधानी की हवा, वायु गुणवत्ता का स्तर सुधारने की दिशा में उठे कदम
राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता का स्तर सही करने के लिए वायु प्रबंधन आयोग
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता का स्तर सही करने के लिए वायु प्रबंधन आयोग विधेयक 2021 संसद से पारित होने के बाद इस दिशा में एक नई उम्मीद जगी है। इस विधेयक द्वारा प्रस्तावित आयोग की अध्यक्षता केंद्रीय वन एवं पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री करेंगे। इस आयोग में अन्य केंद्रीय मंत्रियों (जैसे सड़क परिवहन और राजमार्ग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय आदि) तथा कैबिनेट सचिव की भी भागीदारी होगी।
यह आयोग मूल रूप से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता के लिए किए गए कार्यो में समन्वय स्थापित करेगा। यह आयोग योजना और उसके क्रियान्वयन दोनों में सक्रिय भूमिका निभाएगा। प्रस्तावित आयोग न केवल वायु प्रदूषक तत्वों को चिन्हित कर उनकी रोकथाम के लिए कार्य को बढ़ावा देगा, बल्कि अन्य तकनीकी संस्थानों के द्वारा भी वायु प्रदूषण से जुड़े मसले पर अनुसंधान और विकास में सहायता करेगा। इस विधेयक में यह भी प्रस्तावित है कि प्रशिक्षण द्वारा एक विशेष कार्यबल बनाया जाएगा जो वायु प्रदूषण से जुड़े मामले को देखेगा।
इस विधेयक का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि विगत कई वर्षो से लगातार राष्ट्रीय राजधानी और उसके निकटतम क्षेत्र में वायु गुणवत्ता बहुत ही बुरे हाल में रही है और साल में कई माह दिल्लीवासी ऐसी हवा में सांस लेते हैं जो स्वास्थ्य के नजरिये से खतरनाक की श्रेणी में आती है। ऐसा नहीं है कि प्रदूषण से निपटने के प्रयास नहीं हुए। वर्ष 2001 में सार्वजनिक परिवहन में ईंधन के तौर पर सीएनजी का उपयोग शुरू किया गया, प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों के नियंत्रण को लेकर कदम उठाए गए, परंतु हालात बदतर ही होते गए। निजी वाहनों की संख्या में बढ़ोतरी के कारण दिल्ली में वाहनों की संख्या का आंकड़ा एक करोड़ पार कर चुका है। ऐसे में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के तमाम उपाय नाकाफी साबित हुए। इसका एक कारण इन उपायों का अव्यवहारिक होना भी रहा।
दुर्भाग्य से प्रदूषण का मामला आरोप- प्रत्यारोप और दोषारोपण में बदलने लगा। यह सर्वविदित है कि दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण की समस्या का प्रमुख कारण यहां निरंतर बढ़ता यातायात है, फिर भी सरकार की ओर से यह दर्शाने का प्रयास किया जाता रहा है कि इसका कारण आसपास के राज्यों में किसानों द्वारा फसलों के अवशेष का जलाया जाना रहा है। इस वजह से यह मसला पर्यावरण से ज्यादा राजनीतिक बन गया। इस राजनीतिकरण के साथ-साथ राष्ट्रीय राजधानी और उसके आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता की बुरी दशा का दूसरा सबसे बड़ा कारण 'शिफ्टिंग बेसलाइन सिंड्रोम' है। पर्यावरण विज्ञान में इस सिंड्रोम का मतलब होता है कि हम पर्यावरण की उसी हालत को 'पर्यावरण की दहलीज' मान लेते हैं जिस हालत में वह हमें प्राप्त हुई है और हम उसका पतन उस दहलीज से देखना शुरू करते हैं। आज जिस तरह से पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण हुआ है, वह हमारी इसी सोच और प्रकृति के साथ बिगड़ते संबंधों का नतीजा है। अगर 'शिफ्टिंग बेसलाइन सिंड्रोम' को दिल्ली के वायु गुणवत्ता स्तर के संदर्भ में सरल शब्दों में समझा जाए तो दिल्लीवासी यहां की कम गुणवत्ता स्तर वाली वायु को ही मानक स्तर मान चुके हैं और उसमें पतन भी वहीं से देखते हैं जिस कारण स्थिति बदतर हो रही है। जब वायु गुणवत्ता अपने निचले पायदान पर होती है तभी लोग इसकी गंभीरता को समझते हंै और वह भी कुछ दिनों के लिए ही। इस कारण से अक्सर यह होता है कि बात सुधार तक न जाकर और बुरी होती जाती है।
अब अगर इन मामलों को इस नए आयोग के आलोक में देखें तो केंद्रीय स्तर पर होने के कारण राज्यों के बीच दोषारोपण और समन्वय के अभाव की समस्या तो इसके गठन के साथ ही दूर हो जाती है। लेकिन असल चुनौती दिल्ली की हवा को संतोषजनक नहीं, बल्कि अच्छे के स्तर तक साफ करने तथा उसी स्तर पर बनाए रखने की होगी और यह तभी संभव हो पाएगा जब समन्वित प्रयास हो। जहां तक पराली जलाने की बात है तो बेशक यह एक समस्या है, लेकिन यह भी सत्य है कि इस पर नियंत्रण की कोशिश भी होती रही है। उम्मीद है कि यह आयोग इस दिशा में भी ठोस कदम उठाएगा। साथ ही, इस दिशा में जो भी प्रयास हो वह किसान और पर्यावरण दोनों के हित में होना चाहिए, ताकि प्रदूषण की समस्या भी कम हो जाए और किसान को नुकसान भी न हो।
पिछले कुछ वर्षो में दिल्ली की वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले मुख्य प्रकार के प्रदूषक कारणों को देखें तो ऐसे तत्व सबसे महत्वपूर्ण हैं जिनका व्यास 2.5 माइक्रोन से कम है। ये बहुत खतरनाक होते हैं, क्योंकि उनकी मानव शरीर में अंदर जाने की क्षमता (भेद्यता) अधिक होती है और ये हमारी श्वसन प्रणाली को नुकसान पहुंचाते हैं। ये तत्व वायुमंडल में वाहनों के टायरों से उड़ने वाले धूलकणों के कारण बढ़ते हैं। ऐसे में यह समझना होगा कि वायु प्रदूषण संपूर्ण उत्तर भारत की समस्या है। अगर दिल्ली की हवा को साफ बनाना है तो नीति केवल एक शहर को केंद्रित करते हुए नहीं, बल्कि उत्तर भारत के सभी इलाकों को इसमें शामिल करना होगा। दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता को सुधारने के लिए संसद ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग विधेयक 2021 को मंजूरी दे दी है, लेकिन इस संदर्भ में समग्र कार्ययोजना बननी चाहिए।