आशा पारेख को दादा साहेब फाल्के सम्मान, जानें इनके बारे में...

Update: 2022-09-27 11:02 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: हिंदुस्तान

नई दिल्ली: केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने मंगलवार को कहा कि दिग्गज अभिनेत्री आशा पारेख को 2020 के दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। बता दें कि दादा साहब फाल्के पुरस्कार को भारतीय सिनेमा के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान माना जाता है। भारतीय सिनेमा जगत आज जिस मुकाम पर है इसे वहां तक लाने में आशा पारेख का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने मंगलवार को घोषणा की कि इस साल दादा साहब फाल्के पुरस्कार बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री आशा पारेख को दिया जाएगा। यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त करने वाली वह 52वीं हस्ती होंगी। अनुराग ठाकुर ने कहा, 'आशा भोंसले, हेमा मालिनी, उदित नारायण झा, पूनम ढिल्लों और टीएस नागभरण की सदस्यता वाली दादा साहब फाल्के समिति ने 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में आशा पारेख को पुरस्कार देने का फैसला किया है।'
आशा पारेख अपने दौर की हाइएस्ट पेड ऐक्ट्रेसेज में से एक रही हैं। उन्होंने पंजाबी, गुजराती और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया। उन्होंने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी भी लॉन्च की थी और टीवी शोज भी बनाए। उन्हें साल 1992 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। अनुराग ठाकुर ने आशा के बारे में कहा, 'उन्होंने 95 से ज्यादा फिल्मों में काम किया और 1998 से 2001 तक केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) की अध्यक्ष रहीं।'दादा साहब फाल्के पुरस्कार वितरण कार्यक्रम
सिनेमा के क्षेत्र का यह सर्वोच्च पुरस्कार (दादा साहब फाल्के पुरस्कार) हर साल राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में प्रदान किया जाता है। इस साल यह कार्यक्रम 30 सितंबर को आयोजित किया जाएगा जहां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ऐक्ट्रेस आशा पारेख को पुरस्कार प्रदान करेंगी। सुपरस्टार रजनीकांत को पिछले साल इस अवॉर्ड से नवाजा गया था।
79 वर्षीय आशा पारेख ने 'दिल देके देखो', 'कटी पतंग', 'तीसरी मंजिल' और 'कारवां' जैसी हिट फिल्मों में काम किया है। उन्हें हिंदी सिनेमा की आइकॉनिक ऐक्ट्रस माना जाता है। इससे पहले 2019 का दादा साहब फाल्के अवॉर्ड साउथ सुपरस्टार रजनीकांत को दिया था। पारेख ने 1990 के दशक के आखिर में प्रशंसित टीवी धारावाहिक 'कोरा कागज' का निर्देशन किया था। एक निर्माता और निर्देशक के तौर पर भी उनका काम अभूतपूर्व रहा।
आशा पारेख ने बतौर बाल कलाकार अपने करियर की शुरुआत की थी। तब इंडस्ट्री में लोग उन्हें बेबी आशा पारेख नाम से जानते थे। सिनेमा जगत में उनका सफर बहुत लंबा रहा है। आशा की जिंदगी तब बदली जब फेमस फिल्म डायरेक्टर बिमल रॉय ने उन्हें इवेंट में डांस करते देखा और उन्हें अपनी फिल्म मां (1952) में काम दिया। उस वक्त आशा सिर्फ 10 साल की थीं।
इसके बाद बिमल ने साल 1954 में आई फिल्म 'बाप बेटी' में आशा को मौका दिया लेकिन फिल्म हिट नहीं हुई तो वह निराश हो गए। आशा ने फिल्मों में बतौर बाल कलाकार काम करने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और सोलह साल की उम्र में उन्होंने लीड ऐक्ट्रेस के तौर पर शुरुआत की। कहते हैं कि विजय भट्ट की फिल्म 'गूंज उठी शहनाई' में किए गए काम के लिए उन्हें खारिज कर दिया गया था।
फिल्ममेकर का दावा था कि आशा पारेख एक स्टार ऐक्ट्रेस बनने के काबिल नहीं थी। मगर ठीक 8 दिन बाद वो हुआ जिसने सबको हैरान कर दिया। फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने उन्हें शम्मी कपूर के अपोजिट फिल्म 'दिल देके देखो' (1959) में साइन किया और फिस फिल्म ने आशा पारेक को स्टार बना दिया। इसके बाद उन्होंने करियर में कभी मुड़कर नहीं देखा।
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