काबुल में खड़ा हुआ ब्लैकआउट का संकट, नए तालिबान सरकार ने नहीं किया बिजली बिलों का भुगतान
देश के सकल घरेलू उत्पाद का 43 प्रतिशत और सिविल सेवा में भुगतान किए गए वेतन का 75 प्रतिशत विदेशी सहायता से आया था।
अफगानिस्तान में कठोर सर्दियों के मौसम से पहले देश की राजधानी काबुल में ब्लैकआउट का संकट खड़ा हो गया है। नए तालिबान शासकों द्वारा मध्य एशियाई बिजली आपूर्तिकर्ताओं के बकाया का भुगतान न करने के कारण लोगों को अंधेरे में रहने पर मजबूर होना पड़ सकता है।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल (डब्ल्यूएसजे) की रिपोर्ट के अनुसार, दा अफगानिस्तान ब्रेशना शेरकट (डीएबीएस) के मुख्य कार्यकारी के पद से इस्तीफा दे चुके दाउद नूरजई ने चेतावनी दी है कि ऐसी स्थिति मानवीय आपदा का कारण बन सकती है। 15 अगस्त को तालिबान के अधिग्रहण के लगभग दो सप्ताह बाद नूरजई ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। नूरजई फिलहाह इस संकट को लेकर डीएबीएस अधिकारियों के साथ संपर्क में है।
नूरजई ने कहा कि इस संकट का परिणाम राजधानी काबुल समेत देश भर में देखने को मिलेगा। यह अफगानिस्तान को अंधेरे के युग में वापस ले जाएगा। जो की वास्तव में एक खतरनाक स्थिति होगी। उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से अफगानिस्तान बिजली खपत का आधा हिस्सा है आयात करता है।
डब्ल्यूएसजे के मुताबिक, इस साल के सूखे से घरेलू उत्पादन प्रभावित हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में राष्ट्रीय बिजली ग्रिड का अभाव है और काबुल लगभग पूरी तरह से मध्य एशिया से आयातित बिजली पर निर्भर करता है। कई संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और अन्य विश्व निकायों ने देश में गंभीर आर्थिक स्थिति के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की है।
यूरोपीय संघ की विदेश नीति के प्रमुख जोसेप बोरेल ने रविवार को कहा कि अफगानिस्तान एक गंभीर मानवीय संकट का सामना कर रहा है। जो इस क्षेत्र और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। बोरेल ने लिखा, 'अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है, जिसकी एक तिहाई से अधिक आबादी प्रतिदिन 2 अमरीकी डालर से कम पर जीवन यापन करती है। वर्षों से यह विदेशी सहायता पर बहुत अधिक निर्भर रहा है। 2020 में अंतरराष्ट्रीय सहायता का देश के सकल घरेलू उत्पाद का 43 प्रतिशत और सिविल सेवा में भुगतान किए गए वेतन का 75 प्रतिशत विदेशी सहायता से आया था।