Bioscope S2: इस शख्स ने बहाया पानी की तरह पैसा, चार दिन तक लगी टिकट की कतार

जिस जमाने में पौने पांच रुपये का एक डॉलर हुआ करता था, उस जमाने में सिनेमा की टिकट रूपये, डेढ़ रुपये की हुआ करती थी

Update: 2021-08-05 13:47 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जिस जमाने में पौने पांच रुपये का एक डॉलर हुआ करता था, उस जमाने में सिनेमा की टिकट रूपये, डेढ़ रुपये की हुआ करती थी। लेकिन, फिल्म 'मुगले आजम' की टिकट सिर्फ टिकट नहीं यादों का पूरा गुलदस्ता होता था। इसमें फिल्म की एक टिकट होती, फिल्म के फोटोग्राफ्स होते, फिल्म के गानों की बुकलेट होती और होतीं दूसरी कई यादगार चीजें। और कीमत, पूरे सौ रुपये। जी हां, सुनकर आप चौंक सकते हैं कि भला सन 60 में सौ रुपये की सिनेमा टिकट किसने खरीदी होगी। तो जनाब जान लीजिए कि फिल्म की एडवांस बुकिंग जिस दिन खुली उस दिन आसपास के शहरों के लोग भी बंबई पहुंच गए थे मराठा मंदिर के सामने फिल्म की टिकट के लिए लाइन लगाने। बवाल हो गया था मुंबई में फिल्म 'मुगले आजम' का सिनेमाघरों में रिलीज होना। किसी फिल्म का एक साथ देश के डेढ़ सौ सिनेमाघरों में रिलीज होना उस वक्त का रिकॉर्ड था। मराठा मंदिर इस फिल्म के लिए ही रंग रोगन करके फिर से चमकाया गया था। प्रीमियर पर प्रिंट हाथियों पर लदकर आया। सिनेमा के बाहर भव्य सेट सा बनाया गया। फिल्म के सारे पोस्टर एक जैसे रंग में छापे जा सकें, इसके लिए के आसिफ ने उन दिनों की एक मशहूर पेंट कंपनी का पूरास्टॉक खरीद लिया था।

चार दिन तक लोग लाइन में लगे

इधर, मराठा मंदिर में एक शो में हजार लोगों से कुछ ही ऊपर लोगों के बैठने की जगह थी और बाहर टिकट खरीदने वाले इकट्ठा हो गए थे कोई एक लाख। थिएटर वालों को पुलिस बुलानी पड़ी। लेकिन लोग भागे नहीं। वहीं डटे रहे। दिन में चार शोज में चार हजार, हफ्ते के 28 हजार के हिसाब से चार हफ्तों के टिकट बिके और उसके बाद अगले एक महीने तक थिएटर पर बुकिंग ही बंद रही। हाल फिलहाल के बरसों में आपने एपल आईफोन खरीदने वालों की लाइनें देखी होंगी। 'मुगले आजम' की रिलीज के समय ये भारत में हो चुका है कि लोग तीन चार दिन तक लाइन में लगे रहे। घर से खाना बनकर आता। रिलीवर फ्रेश होने के लिए रिलीव करता और लोग फिर आकर लाइन में लग जाए।

इधर, मराठा मंदिर में एक शो में हजार लोगों से कुछ ही ऊपर लोगों के बैठने की जगह थी और बाहर टिकट खरीदने वाले इकट्ठा हो गए थे कोई एक लाख। थिएटर वालों को पुलिस बुलानी पड़ी। लेकिन लोग भागे नहीं। वहीं डटे रहे। दिन में चार शोज में चार हजार, हफ्ते के 28 हजार के हिसाब से चार हफ्तों के टिकट बिके और उसके बाद अगले एक महीने तक थिएटर पर बुकिंग ही बंद रही। हाल फिलहाल के बरसों में आपने एपल आईफोन खरीदने वालों की लाइनें देखी होंगी। 'मुगले आजम' की रिलीज के समय ये भारत में हो चुका है कि लोग तीन चार दिन तक लाइन में लगे रहे। घर से खाना बनकर आता। रिलीवर फ्रेश होने के लिए रिलीव करता और लोग फिर आकर लाइन में लग जाए।

एक साथ तीन भाषाओं में हुई शूटिंग

फिल्म 'मुगले आजम' हिंदी सिनेमा के लिए एक फिल्म नहीं बल्कि कहानी है। हिंदुस्तानी (हिंदी व उर्दू) के अलावा अंग्रेजी और तमिल में भी फिल्म की शूटिंग होना तय हुई थी। हर सीन तीन बार शूट होता। लेकिन जिसका डर था बेदर्दी वही बात हो गई। अकबर के नाम से रिलीज फिल्म का तमिल संस्करण फ्लॉप रहा और के आसिफ ने इसके बाद उन सारे अंग्रेज एक्टर्स को वापस भेज दिया, जिन्हें उन्होंने मुंबई बुलाया था इस फिल्म की डबिंग करने के लिए। के आसिफ की इस फिल्म पर शपूरजी पल्लोनजी समूह ने बतौर निर्माता दिल खोलकर पैसा बहाया। लेकिन फिल्म मे काम करने वाले कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें पैसा काटता था, जैसे कि संगीतकार नौशाद।  

ऐसे राजी हुए बड़े गुलाम अली खां

हुआ यूं कि फिल्म के लिए बड़े गुलाम अली खान को राजी करने के लिए पैसों की चमक ही काम आई थी। जिस जमाने में लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी जैसे काबिल सिंगर एक गाने का चार- पांच सौ रुपये लिया करते थे, बड़े गुलाम अली खान ने के आसिफ को भगाने के लिए एक गाने के 25 हजार रुपये मांग लिए थे। के आसिफ तब एक ब्रीफकेस लेकर चलते थे। नोटों से भरा हुआ। उन्होंने वहीं ब्रीफकेस खोला और 25 हजार रुपये बड़े गुलाम अली खां को थमा दिए। दो गाने तय हुए। फिफ्टी परसेंट एडवांस थमाकर के आसिफ वहां से आ गए। बड़े गुलाम अली खान फिल्मों में गाने को तौहीन समझते थे लेकिन पैसा देख वह अब कैसे मना करते, मांग उन्होंने ही रखी थी, पूरी के आसिफ ने कर दी।

नौशाद ने खिड़की से बार फेंक दिया ब्रीफकेस

ये अलग बात है नोटों का ऐसा ही एक ब्रीफकेस लेकर के आसिफ जब संगीतकार नौशाद के घर पहुंचे तो मामला उल्टा पड़ गया था। के आसिफ ने नौशाद के घर पूरी इज्जत से एंट्री ली, कुर्सी पर बैठे और कहा कि फिल्म 'मुगल ए आजम' के गाने उन्हें ही कंपोज करने हैं और ये कहकर उनके सामने ब्रीफकेस खोल दिया। के आसिफ इटावा के रंगबाज थे तो नौशाद भी ठहरे लखनऊ के नवाबी अंदाज वाले संगीतकार। उन्होंने नोटों से भरा ब्रीफकेस उठाया और खिड़की से बाहर फेंक दिया। बेगम उनकी ये देख के सन्न। के आसिफ को काटो तो खून नहीं।

20 गानों में से फिल्म में सिर्फ 12

नौशाद ने उस दिन उनसे बात तक नहीं की। उनको इस बात का ताप कि इसने कैसे पैसे को उनके हुनर का मालिक समझ लिया। नौशाद की बेगम ने बाद में दोनों में सुलह कराई। के आसिफ ने कान पकड़कर माफी मांगी और तब जाकर काम आगे बढ़ा। फिल्म के लिए कुल 20 गाने नौशाद ने बनाए थे। सारे गाने के आसिफ ने शूट भी किए लेकिन फिल्म की एडीटिंग के बाद फिल्म में कुल गाने बचे बारह। इन गानों में से हर गाना बेमिसाल। 'प्यार किया तो डरना क्या'…., बनाने के लिए नौशाद के घर की छत पर पूरी राज रतजगा हुआ था। कन्हैया जी वाले गाने को लेकर भी तमाम जिरह और बहसे हुईं।

Full View

इम्तियाज अली के नाटक से निकला किस्सा

फिल्म 'मुगले आजम' एक काल्पनिक कथा पर आधारित फिल्म बताई जाती है। इसका जिक्र इतिहास की किताबों में कम और किस्सों की किताबों में ज्यादा मिलता है। पहले पहल इस कहानी का जिक्र मिलता है इम्तियाज अली ताज के नाटक में। ये नाटक साल 1922 में लिखा गया। सलीम और अनारकली की इस कहानी पर अर्देशिर ईरानी ने 1928 में 'अनारकली' नाम से फिल्म बना दी। तब तक सिनेमा बोलता नहीं था। परदे पर आवाज आई तो ईरानी ने सात साल बाद इस पर फिर से फिल्म बना डाली। के आसिफ की फिल्म 'मुगले आजम' अपने जमाने की बेहतरीन फिल्म रही। भारत सरकार ने भी इसे बेस्ट फिल्म का नेशनल फिल्म अवार्ड दिया था।

अनारकली का रोल मिला नरगिस को

'अनारकली' की इस कहानी ने निर्माता शिराज अली हकीम पर इतना असर किया कि उन्होंने इसके लिए के आसिफ को साथ लिया और इस पर नए सिरे से फिल्म बनाने का फैसला किया। इस फिल्म का नाम रखा गया, 'मुगले आजम' और इसी के लिए पहली बार चार मशहूर राइटर एक साथ आए। इनमें शामिल थे, जीनत अमान के पिता अमान, वजाहत मिर्जा, कमाल अमरोही और एहसान रिजवी। हिंदी पट्टी की बोलियों, गीतों, भजनों, लोकगीतों और मुहावरों से इन लोगों ने सलीम और अनारकली की प्रेम कहानी को सजाया और के आसिफ ने तब तक अकबर के रोल के लिए अभिनेता चंद्र मोहन, सलीम के रोल के लिए डी के सप्रू और अनारकली के रोल के लिए नरगिस को तैयार कर लिया। फिल्म 'मुगले आजम' की पहली शूटिंग बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो में 1946 में यानी आजादी के कुछ ही महीनों पहले शुरू हुई।

पहले निर्माता चले गए पाकिस्तान

शूटिंग शुरु हुए कुछ ही महीने हुए थे कि बंटवारे का एलान हो गया। शिराज अली जो फिल्म में अब तक पैसा लगा रहे थे वह पाकिस्तान चले गए। के आसिफ को समझ नहीं आ रहा था कि करें तो क्या करें। इस बीच चंद्र मोहन को भी दिल का दौरा पड़ा और 1949 में वह गुजर गए। शिराज ने एक बार यूं ही के आसिफ से जिक्र किया था कि बंबई में कभी अगर पैसे की तंगी हुई इस फिल्म के लिए तो दोनों मिलकर मुंबई की तमाम जमीन पर मालिकाना हक रखने वाले बिल्डर शपूरजी पल्लोनजी से मिलकर पैसे की दरख्वास्त करेंगे। के आसिफ उन्हीं के पास जा पहुंचे। पल्लोनजी को फिल्म प्रोडक्शन के बारे में तो कुछ नहीं पता था लेकिन अकबर के चलाए धर्म दीन ए इलाही के वे बहुत बड़े फैन थे, बस अकबर के नाम पर उन्होंने इस फिल्म के लिए अपनी तिजोरी खोल दी।

कमाल अमरोही को के आसिफ की पड़ी डांट

ये उन दिनों की बात है जब शहर के लोग एक तरफ से दूसरी तरफ तक सफर करने से भी कतराते थे। कमाल अमरोही भी इसी झंझावात में किनारे हो गए। के आसिफ से उनका राब्ता न रहा तो उन्होंने सोचा कि फिल्म बंद हो गई है। उन्होंने 'अनारकली' नाम से एक फिल्म शुरू कर डाली। ये बात के आसिफ को पता चली तो वे जा धमके कमाल अमरोही के घर। अपने घर के आसिफ को देख कमाल हक्के बक्के। के आसिफ ने उनको तगड़ी डांट लगाई। कमाल अमरोही को बात समझ आ गई। उन्होंने उस्ताद से माफी मांगी और अपनी फिल्म बंद कर दी। लेकिन, जो फिल्म बंद नहीं हुई वह थी नंदलाल जसवंतलाल की 'अनारकली'। प्रदीम कुमार और बीना राय को लेकर बनी ये फिल्म 1953 में रिलीज हुई और सुपरहिट रही। लेकिन, के आसिफ ने ये फिल्म देखने के बाद भी यही तय किया कि उनकी फिल्म बंद नहीं होगी।

दिलीप कुमार प्रीमियर से रहे गैरहाजिर

फिल्म 'मुगले आजम' का जब बंबई के मराठा मंदिर में प्रीमियर हुआ तो दिलीप कुमार उस दिन प्रीमियर में नही गए थे। वजह था उनका गुस्सा जो इस बात पर था कि के आसिफ ने उनकी बहन से बिना उनकी रजामंदी के शादी कर ली। दिलीप कुमार को गुस्सा इस बात पर भी कि उनकी बहन अख्तर ने भी कभी इसके बारे में उन्हें नहीं बताया। के आसिफ ने इस निकाह के बाद दो शादियां और कीं। एक मशहूर नृत्यांगना सितारा देवी से और तीसरी मशहूर अभिनेत्री निगार सुल्ताना से जिन्होंने फिल्म ''मुगले आजम'' में बहार का किरदार किया। वही बहार जो सलीम पर मरती है और एक दिन हिंदुस्तान की मल्लिका बनने का ख्वाब देखती है। लेकिन, जब सलीम को अनारकली पर फिदा देखती है तो जाकर जिल्लेइलाही से इसकी शिकायत कर देती है। लेकिन ऊपरवाले के रंग देखिए कि जब इसी 'मुगल ए आजम' को शपूरजी पल्लोनजी की कंपनी ने रंग रोगन के साथ 12 नवंबर 2004 को दोबारा रिलीज किया तो उस प्रीमियर के चीफ गेस्ट बने दिलीप कुमार। ये पहली भारतीय फिल्म रही जिसके ब्लैक एंड व्हाइट प्रिंट्स को डिजिटल तकनीक से रंगीन बनाकर फिर से सिनेमाघरों में रिलीज किया गया।

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