मन को निर्मल, नियंत्रित और नियमित करने का सबसे अच्छा और सरल माध्यम है योग
मालिक और नौकर के हमने कई रिश्ते देखे। हम भी कभी न कभी उस भूमिका से गुजरे होंगे
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
मालिक और नौकर के हमने कई रिश्ते देखे। हम भी कभी न कभी उस भूमिका से गुजरे होंगे, जब कहीं मालिक तो कहीं नौकर रहे होंगे। यह एक बाहरी दृश्य है। आप अपने कारोबार, नौकरी-धंधे में इन भूमिकाओं में जी रहे होंगे। अब इसका एक आत्मिक दृश्य भी देखिए कि हमारा मालिक कौन है। इस दृष्टि से पाएंगे कि अधिकांश मौकों पर हमारा मालिक हमारा मन होता है, जो हमारी बुद्धि को निर्देश देता रहता है और हम उसी के अनुसार काम करने लगते हैं।
कभी-कभी तो कुछ काम न चाहते हुए भी करते हैं, क्योंकि मन को गलत में रुचि होती है और वह ऐसे ही आदेश देता भी है। कुल मिलाकर हम मन के गुलाम हो जाते हैं, उसके अनुसार चलने लगते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि मन हमारा गुलाम हो, वह हमारे अनुसार चले। हमारे ऋषि-मुनियों ने कहा है कि मन को निर्मल किया जाए। मन को न तो आप मार सकते हैं और न ही उसे बहुत अधिक खुला छोड़ सकते हैं।
इसलिए उसकी निर्मलता पर काम करिए। जब मन निर्मल होता है तो हम अनुभूति में जीते हैं, क्योंकि जीवन में कई घटनाएं अनुभूति से ही संचालित होती हैं। उनकी कोई व्याख्या नहीं हो सकती। नियंत्रित मन हमें अच्छाई की ओर ले जाता है और नियमित मन अनुभव देता है। मन को निर्मल, नियंत्रित और नियमित करने का सबसे अच्छा, सरल माध्यम है योग।