न्यायालय ने अपने फैसले में लिखा है कि यासीन मलिक का उद्देश्य न सिर्फ भारत के मूल आधार पर प्रहार करना था, बल्कि जम्मू कश्मीर को भारत से जबरदस्ती अलग करना था। अपराध इसलिए और गंभीर हो जाता है क्योंकि यह विदेशी ताकतों और नामी आतंकवादियों की सहायता से किया गया था। यासीन की गिरफ्तारी के बाद ही अभियान चला था कि 1994 में उसने हथियार छोड़ दिया और तब से किसी भी आतंकवादी संगठन को न सहायता दी और न किसी हिंसा में भाग लिया। न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि उनकी राय में मलिक में कोई सुधार नहीं हुआ था। फैसले के अनुसार हिंसा का रास्ता छोड़ने पर मलिक को सरकार ने सुधार का मौका देने के साथ ही बातचीत में शामिल करने की कोशिश की, लेकिन वह हिंसा से बाज नहीं आया और सरकार के नेक इरादों के साथ उसने विश्वासघात किया।
अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का पालन करने वाले दोषी ने एक हिंसक आंदोलन को नियोजित किया था। गांधी ने तो हिंसा की एक छोटी-सी घटना के कारण असहयोग आंदोलन खत्म कर दिया था, जबकि घाटी में बड़े पैमाने पर हिंसा के बावजूद दोषी ने न तो हिंसा की निंदा की और न ही उस विरोध को वापस लिया जिसके कारण हिंसा हुई थी। इसके बाद यह बताना आवश्यक नहीं है कि यासीन मलिक किस तरह झूठ बोलकर स्वयं को अहिंसक और गांधीवादी साबित करने की कोशिश कर रहा था। जुर्माने पर न्यायालय ने कहा है कि यासीन ने 2015 में जहूर बताली से 10 लाख रुपये लिए थे, जिनका इस्तेमाल आतंक फैलाने के लिए किया गया। इसीलिए न्यायालय ने कहा कि जितनी धनराशि आतंक फैलाने के लिए ली थी, उतनी ही धनराशि जुर्माने के तौर पर भुगतान करना होगा। ध्यान रखिए, बताली भी आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में आरोपित है। एनआईए का आरोप पत्र और न्यायालय का फैसला पढ़ने के बाद पता चलता है कि बताली ने अलग-अलग शेल कंपनियां बनाकर पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआईएस से धन प्राप्त किया। यह धन अलगाववादी नेताओं और पथराव करने वालों के साथ आतंकवादियों को हस्तांतरित की गई।
वास्तव में न्यायालय के फैसले को देखने पर यासीन मलिक और ऐसे अन्य आतंकवादियों की पूरी असलियत सामने आ जाती है। यासीन उन चार आतंकवादियों में से एक है, जो सबसे पहले आतंकवादी प्रशिक्षण लेने पाकिस्तान गया था। यासीन मलिक वही व्यक्ति है, जिसने 25 जनवरी, 1990 को श्रीनगर में स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना सहित वायु सेना के चार अधिकारियों की सरेआम हत्या कर दी थी। कुल मिलाकर, यासीन मलिक की सजा के साथ जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को भारी चोट लगने की उम्मीद की जा सकती है। इससे एक संदेश साफ है कि चाहे आप कितने भी बड़े क्यों न हों, यदि आपने भारत के खिलाफ षड्यंत्र किया, तो भारतीय कानून से बचना संभव नहीं है।