यासीन मलिक ने एक समय खुद को कहना शुरू कर दिया था गांधीवादी, सत्ता भी हो गई थी मेहरबान!
जेल से बाहर आकर उसने खुद को गांधीवादी कहना शुरू कर दिया
आखिरकार एनआइए की एक अदालत ने आतंकी यासीन मलिक को आतंक से जुड़े विभिन्न मामलों में दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुना दी, लेकिन उसे उसके किए की सजा देने में जरूरत से ज्यादा जो देरी हुई, वह कई गंभीर सवाल खड़े करती है। ये सवाल आतंकवाद से लड़ने में हमारी प्रतिबद्धता की कमजोरी ही बयान करते हैं। यासीन मलिक ने जैसे एनआइए अदालत के समक्ष आतंकी फंडिंग के मामले में अपने पर लगे आरोपों को स्वीकार किया, वैसे ही एक समय उसने यह माना था कि जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के एरिया कमांडर के रूप में उसने वायु सेना के चार जवानों को मारा था और वीपी सिंह सरकार के समय गृहमंत्री रहे मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी का अपहरण भी किया था। इसके बावजूद वह कुछ समय ही जेल में रहा।
किन्ही अज्ञात कारणों से 1994 में यासीन मलिक जेल से बाहर आ गया। जेल से बाहर आकर उसने खुद को गांधीवादी कहना शुरू कर दिया। हैरानी की बात यह रही कि कश्मीर से लेकर दिल्ली तक कई प्रभावशाली लोग उसे सचमुच गांधीवादी बताने में जुट गए। इनमें सरकारी एजेंसियों के साथ-साथ सिविल सोसायटी के भी लोग थे और नेता भी।
उसे न केवल विभिन्न मंचों पर शांति के मसीहा के रूप में आमंत्रित किया जाने लगा, बल्कि युवाओं के लिए प्रेरणास्नोत भी कहा जाने लगा। यह सब काम खुद को सेक्युलर, लिबरल और मानवाधिकारवादी कहने वाले लोग यह जानते हुए भी बिना किसी शर्म-संकोच कर रहे थे कि यासीन मलिक ने कश्मीर को आतंक की आग में झोंकने का काम किया और उसके कारण कश्मीरी हिंदुओं का वहां रहना दूभर हो गया।
हर तरह की आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के बावजूद यासीन मलिक का जिस तरह महिमामंडन किया गया, उसका परिणाम यह हुआ कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग भी उस पर मेहरबान हो गए। वे उससे मेल-मुलाकात करने लगे। उसके अतीत की अनदेखी कर उसे पासपोर्ट दे दिया गया और पता नहीं किसकी आर्थिक मदद से वह अमेरिका, ब्रिटेन, पाकिस्तान की यात्र करने लगा। इससे एक ओर जहां कश्मीर में सक्रिय आतंकियों को बल मिलने लगा, वहीं आतंकवाद से लड़ने में भारत का संकल्प भी थोथा दिखने लगा।
यह सही समय है कि उन सबकी पहचान की जाए, जिनके चलते एक आतंकी का गुणगान करने के साथ कश्मीरी हिंदुओं के जख्मों पर नमक छिड़का जाता रहा। ध्यान रहे कि इनमें वे लोग भी थे, जिनका काम आतंकवाद से लड़ना था। यह ठीक है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद यासीन मलिक फिर से जेल पहुंचा और उसके खिलाफ अदालती कार्यवाही शुरू हुई, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इसमें भी अच्छा-खासा समय लग गया।
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय