विश्व योगा दिवस: भारतीय संस्कृति का नाद है योग
उदात्त जीवन मूल्यों से जुड़ी हमारी इस महान परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सवे भवन्तु सुखिनः को जन-मन में व्याप्त करें।
योग शब्द संस्कृत की 'युज' धातु से बना है, जिसका अर्थ है, जोड़ना। योग से संबद्ध शास्त्रों में योग को स्वस्थ जीवन यापन की कला एवं विज्ञान से ही अभिहित किया गया है। हमारे यहां पहले-पहल महर्षि पतंजलि ने विभिन्न ध्यान-पारायण अभ्यासों को सुव्यवस्थित कर योग सूत्रों को संहिताबद्ध किया। वेदों की भारतीय संस्कृति में जाएंगे, तो वहां भी योग की परंपरा से साक्षात् होंगे। हिरण्यगर्भ ने सृष्टि के आरंभ में योग का उपदेश दिया। पतंजलि, जैमिनी आदि ऋषि-मुनियों ने बाद में इसे सबके लिए सुलभ कराया। हमारे यहां योग को आरंभ से ही स्वस्थ तन और स्वस्थ मन के अंतर्गत आदर्श जीवनशैली के रूप में स्वीकार किया गया है। महर्षि अरविंद ने समग्र जीवन-दृष्टि हेतु योगाभ्यास को बहुत महत्वपूर्ण बताया है। मैं यह मानता हूं कि योग चिकित्सा नहीं, योग आत्मविकास का सबसे बड़ा माध्यम है। ऐसे दौर में जब भौतिकता की अंधी दौड़ में निरंतर मन भटकता है, मानसिक शांति एवं संतोष के लिए योग सर्वथा उपयोगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर यूनेस्को ने भारत की इस महान परंपरा को विश्व भर के लिए उपयोगी मानते हुए बाकायदा विश्व योग दिवस की घोषणा की। यह हमारी परंपरा और संस्कृति की वैश्विक स्वीकार्यता है।
सोर्स: अमर उजाला