फरवरी 2022 से जबसे रूस के राष्ट्रपति पुतिन द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण किया गया, तबसे अब तक अमरीका और उसके सहयोगी देशों सहित लगभग 50 देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। इन आर्थिक प्रतिबंधों के अनुसार वस्तुओं की आवाजाही और वित्तीय लेनदेन समेत आर्थिक, व्यवहारों को प्रतिबंधित करने का प्रावधान शामिल है। इतिहास गवाह है कि कुछ मामलों को छोडक़र पश्चिम के ये देश इन प्रतिबंधों के माध्यम से अपनी बातें शेष विश्व से मनवाने का काम करते रहे हैं। यही नहीं, कई बार प्रतिबंध लगाने की धमकी मात्र से भी अमरीका और उसके सहयोगी पश्चिम के देश विश्व में अपना दबदबा बनाते रहे हैं। फरवरी 2022 से पूर्व भी अमरीका द्वारा रूस पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए जा रहे थे। लेकिन फरवरी 2022 के बाद और अधिक प्रतिबंध लगाए गए हैं। अमरीका ने अपने सहयोगी राष्ट्रों जैसे यूरोपीय संघ, इंग्लैंड, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया आदि के साथ रूस को युद्ध के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी के निर्यात पर प्रतिबंध तो लगाया ही है, साथ ही साथ रूसी बैंकों को भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। यही नहीं रूस के सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों के ऋणों को भी प्रतिबंधित किया गया है। रूस से तेल एवं गैस के आयात को भी प्रतिबंधित किया गया है। यही नहीं रूसी जहाजों के लिए भी अमरीकी बंदरगाहों में आने से रोक लगा दी गई है। यह बात समझते हुए पुतिन ने अपने हालिया बयान में कहा है कि यूरोपीय देश रूस पर प्रतिबंध लगाकर अपने ही नागरिकों के जीवन स्तर की बलि तो चढ़ा ही रहे हैं, दुनिया के गरीब मुल्कों की खाद्य सुरक्षा को भी खतरे में डाल रहे हैं। रूस पर प्रतिबंधों के चलते गरीब मुल्क जो खाद्य पदार्थों के लिए शेष दुनिया पर निर्भर करते हैं, उनके लिए न केवल खाद्य आपूर्ति प्रभावित हो रही है, बल्कि बढ़ती खाद्य कीमतों के चलते खाद्य पदार्थ गरीब मुल्कों की पहुंच से भी बाहर हो रहे हैं। गौरतलब है कि अमरीकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के चलते बड़ी संख्या में अमरीकी और यूरोपीय कंपनियां रूस को छोड़ रही हैं। हालांकि रूस ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए जर्मनी को जाने वाली गैस पाईप लाईन 'नॉर्द स्ट्रीम' बंद कर दी है और इसके चलते यूरोपीय देश रूसी गैस और तेल पर अपनी निर्भरता घटाने की बात कर रहे हैं। लेकिन यह भी सही है कि तेल और आवश्यक कच्चे माल के अभाव में यूरोपीय कंपनियां ठप्प हो रही हैं और यूरोप में रोजगार प्रभावित हो रहा है। यूक्रेन विदेश मंत्री ने भी यह कहा है कि रूस, यूरोप के गृहस्थों के कुशलक्षेम को बर्बाद कर रहा है। गौरतलब है कि 'स्विफ्ट' नाम की भुगतान प्रणाली के माध्यम से वैश्विक लेनदेन संपन्न होता रहा है। प्रतिबंधों से पूर्व स्विफ्ट से अलग होकर भुगतानों की कल्पना नहीं की जा सकती थी। फरवरी 2022 के बाद रूस को इस स्विफ्ट प्रणाली से बेदखल कर दिया गया। अमरीका एवं उसके सहयोग राष्ट्रों को यह उम्मीद थी कि चूंकि रूस अपने निर्यातों के भुगतान को प्राप्त नहीं कर पाएगा, तो उसे उनके सामने झुकना ही पड़ेगा। लेकिन अमरीका और उसके सहयोगी देश अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सके। रूस के निर्यात घटने की बजाय पहले से भी ज्यादा बढ़ गए। ताजा जानकारी के अनुसार रूस को तेल और गैस से निर्यातों से ही इस साल 38 प्रतिशत अधिक प्राप्तियां होने वाली हैं। गौरतलब है कि रूस की निर्यातों की आधी आमदनी तेल और गैस के निर्यात से प्राप्त होती है। रूस द्वारा पहले से अधिक मात्रा में गैस और तेल ने निर्यातों और साथ ही साथ गैस को तेल की बढ़ती वैश्विक कीमतों के चलते रूस को इस वर्ष मात्र गैस और तेल के निर्यात से ही 332.5 अरब डालर के बराबर प्राप्त होने वाली है। कहा जा सकता है कि रूस को अमरीकी प्रतिबंधों से नुकसान कम फायदा ज्यादा हो रहा है। एक ओर जहां यूरोप बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है, रूस पहले से भी अधिक मजबूत दिखाई दे रहा है। आज अमरीका और यूरोपीय देश भयंकर मंदी के खतरे और महंगाई से गुजर रहे हैं और इसमें रूस एक प्रमुख कारण बताया जा रहा है। अमरीका में पिछली दो तिमाहियों में जीडीपी घटी है और यूरोपीय देशों की भी हालत कुछ ऐसी ही है। लेकिन कहा जा रहा है कि यूरोप में ऊर्जा संकट और धीमी ग्रोथ के कारण अब मंदी का चित्र स्पष्ट रूप से उभर रहा है। हालांकि फिलहाल अमरीका की हालत यूरोप जैसी नहीं है, लेकिन पिछली दो तिमाहियों में जीडीपी के संकुचन, तेजी से बढ़ रही मंहगाई (जो अगस्त 2022 में 8.3 प्रतिशत रही है) और खासतौर पर ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के चलते, फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों को बढ़ाने की नीति के चलते, अमरीका भी मंदी की चपेट में आ सकता है। समझना होगा कि यूरोप अपनी तेल की जरूरतों के लिए 25 प्रतिशत तक रूस पर निर्भर करता है। पिछले साल यूरोप के लिए 40 प्रतिशत गैस की आपूर्ति रूस से हुई थी। अब जब यूरोप और रूस के बीच तनातनी के चलते रूस से तेल और गैस की आपूर्ति बाधित हो रही है, यूरोप भयंकर ऊर्जा संकट में जाने वाला है। यूरोपीय देशों ने अपने कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को फिर से चलाने का निर्णय लिया है, लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा। ऐसे में यह भी चिंता व्यक्त की जा रही है कि पहली बार यूरोप को इन सर्दियों में ऊर्जा की कमी के चलते तापीकरण में कठिनाई हो सकती है। समझना होगा कि हालांकि अमरीका और यूरोपीय देश ही नहीं उनके अन्य सहयोगियों को भी प्रतिबंधों और युद्ध के अन्य परिणामों से जूझना पड़ रहा है, लेकिन निकट भविष्य में यूरोप को ही इस संकट का ज्यादा असर होने वाला है। यूरोपीय देशों की मुद्राओं में भी भारी अवमूल्यन हो रहा है, वहां महंगाई भी बढ़ रही है और अर्थव्यवस्थाओं में असंतुलन भी बढ़ रहे हैं। यह पहली बार हुआ है कि अमरीकी ब्लॉक के देशों को प्रतिबंधों का इतना नुकसान हो रहा है। यूक्रेन युद्ध और उससे होने वाली समस्याओं की जड़ में यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाना है। ऐसे में आवश्यक है कि ये देश अपने नागरिकों को आने वाली समस्याओं से बचाएं। दुनिया में शांति स्थापित करने की जरूरत है, लेकिन उसके लिए नाटो को दूसरे मुल्कों की शांति भंग करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। रूस द्वारा यूक्रेन पर युद्ध थोपना गलत है, लेकिन नाटो देशों द्वारा यूक्रेन में प्रवेश की कोशिश उसके मूल में है। यदि यूक्रेन और नाटो देश अपनी हठधर्मिता छोड़ दें तो शांति भी स्थापित हो सकती है और आर्थिक संकट भी दूर हो सकते हैं।
डा. अश्वनी महाजन
कालेज प्रोफेसर
By: divyahimachal